ध्रुवीकरण के डर से शाहीन बाग़ प्रदर्शन से केजरीवाल ने बना रखी है दूरी
सिटी पोस्ट लाइव : देश में इन दिनों दिल्ली से लेकर केरल तक, हर जगह नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ़ और समर्थन में प्रदर्शन चल रहा है. लेकिन छोटी छोटी बात पर धरना पर बैठ जानेवाले दिल्ली के मुख्यमंत्री इन प्रदर्शनों से दुरी बनाए हुए हैं. चुनावी राजनीति में कदम रखने के पहले और बाद में हमेशा से केजरीवाल की छवि ‘धरना कुमार’ की रही. लेकिन पिछले एक महीने से दिल्ली में सीएए को लेकर दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शन चल रहे हैं. आम आदमी पार्टी सीएए का खुल कर विरोध भी कर रही है. लेकिन केजरीवाल वहां अब तक नहीं गए हैं. इतना ही नहीं, न वो जेएनयू गए और न ही जामिया. हां, जेएनयू हिंसा को लेकर उन्होंने 5 जनवरी को एक ट्वीट ज़रूर किया था.
नागरिकता संशोधन क़ानून पर आम आदमी पार्टी का स्टैंड साफ़ है. वो इस क़ानून के ख़िलाफ़ हैं. 18 दिसंबर को एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में उन्होंने क़ानून को लेकर केन्द्र सरकार से कई सवाल पूछे.उन्होंने कहा, “बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में तीन करोड़ से चार करोड़ गैर-मुस्लिम लोग रहते हैं. इनमें से आधे भी हमारे देश में आ गए तो इनको नौकरी कौन देगा? इनको घर कहां से दोगे. कहां बसाओगे? “दिल्ली विधानसभा के लिए 8 फ़रवरी को मतदान होने हैं. अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से एक बार फिर से क़िस्मत आज़मा रहे हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि देश के हर मुद्दे पर मुखर राय रखने वाले अरविंद केजरीवाल का सीएए के विरोध प्रदर्शनों से गायब रहना क्या उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा है या फिर वाकई में केजरीवाल दिल्ली पर ही केवल फ़ोकस करना चाहते हैं? राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ये आप पार्टी की सोची समझी नीति का हिस्सा है. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से उन्होंने अपनी रणनीति को थोड़ा बदल दिया है. वे राष्ट्रीय मसलों से ख़ुद को अलग रखना चाहते हैं. और सिर्फ़ दिल्ली की राजनीति करना चाहते हैं.
2012 में केजरीवाल ख़ुद को युवाओं की आवाज़ बताते थे. उनकी पार्टी ने सबसे अधिक युवा और अनुभवहीन चेहरों को टिकट भी दिया था.ऐसे में जिस सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हो रहा हो, वहां से उन्होंने क्यों दूरी बनाने राखी है.दरअसल, शाहीन बाग़ के प्रदर्शन को एक बड़ा तबक़ा मुसलमानों का प्रदर्शन मानता है. मुसलमान केजरीवाल की पार्टी का एक बड़ा वोट बैंक ज़रूर है. उनको अपने साथ रखने के लिए केजरीवाल ने अपने पार्टी के दूसरे विधायक अमानतउल्ला को लगा रखा है.लेकिन केजरीवाल को लगता है कि अगर खुलकर सपोर्ट में गए, तो वोटों का ध्रुवीकरण होगा. उनका दूसरा बड़ा वोट बैंक हिंदू वोट बैंक, नाराज़ न हो जाए. चुनाव के इतने क़रीब वो ये जोख़िम मोल नहीं ले सकते. उनको जीत के लिए दोनों का वोट चाहिए.
लेकिन आप आदमी पार्टी के दिल्ली के सांसद संजय सिंह इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते.उनका कहना है, “इन चुनावों में सीएए, एनआरसी कोई मुद्दा नहीं है. असली मुद्दा है बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा. हमारी सरकार उन्हीं मुद्दों पर काम कर भी कर रही है. रही बात सीएए का विरोध किया तो संसद के दोनों सदनों में जो कुछ हमें बोलना था वहां हमने कहा. केवल राज्य सभा में नहीं लोकसभा में भी हमारी पार्टी ने स्टैंड साफ़ कर दिया है. दिल्ली में मुसलमान वोटरों की संख्या तक़रीबन 12-13 फ़ीसदी है. जिसमें क़रीब 76 फ़ीसदी वोट आम आदमी पार्टी को पिछले चुनाव में मिले थे.हिंदू वोटरों की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली के लगभग 50 फ़ीसदी हिंदू मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था.सेंटर फ़ॉर स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटी के संजय कुमार के मुताबिक़ सारा मामला टाइमिंग का है.वो कहते हैं “दिल्ली चुनाव के बाद आप थोड़े बदले बदले केजरीवाल देंखेंगे.
संजय कुमार कहते हैं, “अगर केजरीवाल सीएए का समर्थन करते हैं तो बीजेपी के साथ दिखेंगे. साथ ही मुस्लिम वोट गवांएगे. और अगर आप सीएए के विरोध में खुल कर धरने में शामिल होती है तो देश में एक नैरेटिव चल रहा है, सीएए के विरोधी एंटी नेशनल हैं. ऐसा करने से हिंदू नाराज़ होंगे.संजय कुमार के मुताबिक, “2015 में आप पार्टी को 70 में से 67 सींटों पर जीत मिली थी, तो ऐसा नहीं की केवल युवा वोटरों के सहारे इतनी बड़ी जीत मिली. उनको हर तबक़े का वोट मिला था. इस बार भी वो इतिहास दोहराना चाहते हैं तो किसी भी एक तबक़े की नाराज़गी उनको भारी पड़ सकती है. केजरीवाल इसी से बचना चाहते हैं.”
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