City Post Live
NEWS 24x7

“बिहार चुनाव परिणाम विशेष” महागठबंधन में तेजस्वी यादव ने की शर्मनाक और बेशर्म राजनीति !

-sponsored-

-sponsored-

- Sponsored -

“बिहार चुनाव परिणाम विशेष” महागठबंधन में तेजस्वी यादव ने की शर्मनाक और बेशर्म राजनीति !

सिटी पोस्ट लाइव : 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान विभिन्य पार्टियों के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच गहरे विवाद, जूतम-पैजार और झड़प से भी अधिक खतरनाक किरदार “शीतवार” का रहा। शीतवार ने अपनी सारी मर्यादाएं और सीमाएं तोड़ डालीं। इस चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप में शालीनता के लिए कहीं कोई जगह ही नहीं थी। बिहार वैसे भी कई मायनों में बदनामी का सेहरा बांधकर घूमने वाले सूबा की श्रेणी में रहा है। इस चुनाव में पूरे देश की नजर बिहार महागठबन्धन पर थी। जिस तरीके से बिहार में महागठबन्धन हो रहा था,उससे लग रहा था कि इस महागठबन्धन कि गहरी छाप देश के विभिन्य राज्यों पर पड़ेगी। लेकिन इस महागठबन्धन की सारी ताकत और चमक को लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने अपने दम्भ और अहंकार की आंधी में कहीं का भी नहीं छोड़ा। परिणाम यह हुआ कि तेजस्वी यादव जातीय आधार पर राजनीति करने वाले सुपर फ्लॉप नायक की जगह खलनायक बनकर रह गए।

महागठबन्धन में शामिल कांग्रेस को कोई तवज्जो नहीं देकर तेजस्वी यादव ने बहुत बड़ी राजनीतिक भूल की ।महागठबन्धन में शामिल रालोसपा,हम और भीआईपी के सभी बड़े नेता तेजस्वी यादव के इशारे पर बंदर नाँच करते रहे ।कांग्रेस 11 सीट मांग रही थी लेकिन तेजस्वी यादव ने 9 सीटें देकर कांग्रेस की बोलती बंद कर दी ।कांग्रेस,शिवहर से बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को चुनाव लड़ाना चाहती थी लेकिन राजनीतिक अपरिपकत्ता की वजह से तेजस्वी यादव ने कांग्रेस की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया ।वैसे ऊंची कीमत में टिकट बेचने की भी बात चर्चा में है ।करोड़ों में टिकट बेचने का एक बड़ा ट्रेंड इस चुनाव में बना,जो आगामी राजनीति में काफी मुश्किलें खड़ी करेगी ।बिहार में एनडीए ने एकतरफा बहुमत हासिल किया और महागठबंधन को करारी हार का सामना पड़ा है ।

इस चुनाव में करारी हार के बाद अब महागठबंधन के अंदर बवाल मच गया है और महागठबंधन की राजनीति गरमाती नजर आ रही है ।महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी और सीएम नीतीश को चुनाव जीतने की बधाई तो दी है,लेकिन पार्टी की हार पर वे कुछ भी नहीं बोल रहे हैं ।बड़ा हास्यास्पद है कि 40 में से 39 सीटों पर एनडीए ने जीत दर्ज की जबकि एकमात्र किशनगंज की सीट पर कांग्रेस जीतने में सफल हुई ।राजद की बदनसीबी देखिए कि उसके एक प्रत्याशी भी संसद नहीं पहुंच सके ।राजद की बोहनी तक नहीं हुई और राजद पूरी टीम शून्य पर आउट हो गयी ।वैसे कांग्रेस को छोड़कर,महागठबन्धन के सभी साथी रालोसपा,हम और भीआईपी भी अपना खाता खोलने में कामयाब नहीं हो सकी और चुनावी मैदान में उतरे उनके सारे प्रत्याशी शून्य पर आउट होकर पैवेलियन लौट आये ।

पप्पू यादव ने लालू परिवार पर बोला हमला

मधेपुरा सीट से अपनी जमानत भी नहीं बचा पाने वाले पूर्व सांसद पप्पू यादव ने हमलावर होते हुए कहा है कि लालू परिवार से बिहार की जनता को नफरत हो गई है ।तेजस्वी यादव ने महागठबन्धन में उनके लिए नो एंट्री की तख्ती लगा दी थी और सुपौल से कांग्रेस प्रत्याशी उनकी पत्नी रंजीता रंजन को हराने के लिए दिनेश यादव को निर्दलीय खड़ा कर दिया था ।पिपड़ा के राजद विधायक यदुवंश कुमार यादव रंजीता रंजन को हराने के लिए डोर टू डोर कैम्पेन कर रहे थे ।तेजस्वी यादव ने पति-पत्नी दोनों को हराने का षड्यंत्र किया जिसमें वे कामयाब भी हुए ।लेकिन ईश्वर की लाठी बेआवाज होती है ।बिहार में राजद का सूपड़ा साफ हो गया ।आने वाले विधानसभा चुनाव में राजद का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा ।

जन अधिकार पार्टी के प्रमुख और पूर्व सांसद पप्पू यादव ने लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि बिहार में अब लालू यादव कोई विकल्प नहीं रह गए हैं और लालू परिवार से बिहार की जनता को घिन्न और बदबू आने लगी है ।इसके साथ ही पप्पू यादव ने दावा किया कि बिहार में कांग्रेस ही बड़ा विकल्प हो सकती है जिसमें शकील अहमद,अरुण कुमार,अली अशगर फातमी जैसे नेताओं को लाया जा सकता है ।उन्होंने कहा कि वो इसके लिए राहुल गांधी से भी मुलाकात करेंगे ।उनकी पत्नी रंजीत रंजन अब भी कांग्रेस में हैं और तीन महीने के भीतर वे मिलकर एक नया और बड़ा विकल्प देंगे ।आपको बता दें कि सुपौल संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रंजन की हार का जिक्र करते हुए पप्पू यादव ने कहा कि वहां जो हो रहा था वो लालू-तेजस्वी सबको पता था ।बिना उनकी जानकारी और सहमति के ऐसा नहीं हो सकता था ।लेकिन बात नहीं बनी और इसका खामियाजा रंजीता रंजन को भुगतना पड़ा ।

महागठबन्धन की करारी शिकस्त के लिए सिर्फ तेजस्वी हैं जिम्मेदार

मोदी मैजिक विरोधियों के लिए कहर तो साबित हुआ लेकिन बिहार में महागठबंधन को एक अंतहीन पाठ भी पढ़ा डाला ।बिहार में महागठबंधन को मिली करारी शिकस्त में नरेंद्र मोदी सुनामी की जितनी भूमिका है,उससे कहीं ज्यादा भूमिका तेजस्वी यादव के अहंकार और अमर्यादित भाषा की रही है ।पूरे चुनाव प्रचार में अहंकार में डूबे तेजस्वी यादव ना सिर्फ बड़बोलापन के शिकार रहे बल्कि अपने अहंकार में महागठबंधन की नैया भी डुबो डाली ।नीतीश कुमार,नरेंद्र मोदी,अमित शाह, राजनाथ सिंह,सुशील कुमार मोदी जैसे बड़े नेताओं के लिए जिस तरह की भाषा और शैली का तेजस्वी ने इस्तेमाल किया,वह मतदाताओं को कतई रास नहीं आया ।तेजस्वी यादव के भाषणों में अहंकार,नफरत और बड़बोलापन इस कदर झलकता था कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों को गली-मोहल्ले की भाषा में संबोधित करते थे ।कई सभाओं में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह कह कर ललकारा था कि मां का दूध पिया है तो ये करो,वो करो ।

जाहिर है ऐसी भाषा मतदाताओं को किसी सूरत में पसंद नहीं आ रही थी ।साइलेंट वोटर्स ने तेजस्वी यादव की इस भाषा को सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के अपमान के तौर पर लिया था ।नरेंद्र मोदी की योजनाओं,सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक जैसे मुद्दों के साथ-साथ उनके अहंकार और बड़बोलेपन से उपजी नाराजगी ने महागठबंधन में राजद को खाता तक खोलने नहीं दिया ।राजद की तो पूरी की पूरी नैया ही डूब गई । तेजस्वी यादव को इस चुनाव परिणाम से सबक लेने की जरूरत है ।लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद राजद का नेतृत्व उन्हें तोहफे में मिल गया ।लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में पूरी तरह विफल रहे ।क्रिकेट की दुनिया में जिस तरह मैदान से बाहर रहकर तेजस्वी टीम के लिए चीयर अप किया करते थे,राजनीति की पिच पर भी वो इसी भूमिका में आज नजर आ रहे हैं ।

अपने पहले ही टेस्ट में बुरी तरह से विफल साबित हुए तेजस्वी यादव के लिए अब सामने बड़ी चुनौतियां हैं ।तमाम गलतियों के बाद भी,तेजस्वी यादव विफल राजनेता हैं,यह किसी सूरत में नहीं कहा जा सकता है ।उनमें अपार संभावनाएं भी हैं और क्षमता भी है ।लेकिन राजनीति में बड़बोलापन और अहंकार काम नहीं आते हैं ।तेजस्वी यादव को यह भी ध्यान रखना होगा कि अब पुराना बिहार नहीं है ।नब्बे के दशक में उलूल-जुलूल बातों, अगड़ा-पिछड़ा,आरक्षण की बात कर मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करना आसान था लेकिन अब वैसी बात नहीं है ।1990 के दशक में बिहार को हांकने के अंदाज में लालू प्रसाद यादव सभाओं को संबोधित किया करते थे ।तेजस्वी ने भी वही तरीका अपनाया और यही उनके लिए सबसे बड़ी भूल साबित हुई है ।

तेजस्वी यादव को इन चुनाव परिणामों से सबक लेकर और पूरी समीक्षा के बाद समाज के सभी तबकों को साथ लेकर चलने।की रणनीति बनाकर ही आगे चलना होगा ।नतीजों ने यह भी संकेत और संदेश दे दिया है कि मुस्लिम-यादव समीकरण नाम की कोई चीज बिहार में अब नहीं रह गई है और सिर्फ यादव और मुसलमान के सहारे राजनीति की नैया कभी भी पार नहीं लग सकती है ।यादव मतों में वैसे भी एनडीए की सेंधमारी हो चुकी है । यादव बहुल सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों की बड़ी जीत यह साबित करती है कि यादव मतदाताओं ने भी बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में वोट किया है ।यह वक्त तेजस्वी यादव के संभलने,सुधरने और खुद को मांजने का है ।अगर बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव को एक मजबूत पिलर बनना है,तो बचकानी हरकत बन्द कर,समाज की हर जाति और धर्म के लोगों को साथ लेकर चलने का हुनर पैदा करना होगा ।समाज के भीतर जातीय और धार्मिक उन्माद से अब राजनीतिक रोटी सेंकने का वक्त निकल चुका है ।

लालू परिवार के अंतःकलह ने भी राजद की भद पिटवाई

महागठबन्धन के निर्माण के समय से ही राजद परिवार के भीतर मचे घमाशान ने,राजद की दुर्गति के संकेत दे दिए थे ।अब चुनाव परिणाम ने राजद को हासिये पर ला दिया है ।ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि लालू परिवार के अंदरखाने लगी आग,क्या अब सतह पर भी दिखेगी ? बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कर रहे थे लेकिन वह अपनी पार्टी के एक भी प्रत्याशी को चुनाव नहीं जितवा पाए ।जाहिर सी बात है कि वह जितना दावा करते थे और जितना हांकते थे,नतीजे उसके बिल्कुल उलट आ गए ।इन नतीजों ने ना सिर्फ तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि लालू परिवार के बीच जारी खींचतान के बीच विरासत संभालने के लिए “कौन उपयुक्त चेहरा होगा”,इसके लिए भी घमासान की नौबत ला दी है ।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो इसमें कोई शक नहीं है कि तेजस्वी यादव ने पूरे लोकसभा चुनाव कैम्पेन को सेल्फ सेंटर्ड कर लिया था ।इससे उनके परिवार में भी काफी रस्साकसी दिखी । हालांकि कुछ समय के लिए यह गहराता विवाद,थम जरूर गया था लेकिन आने वाले समय में अंदरखाने लगी यह सियासी आग सतह पर भी दिख सकती है । इस कड़ी में यह बताना बेहद लाजिमी है कि इससे पहले लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने शिवहर और जहानाबाद सीट पर अपने उम्मीदवार अंगेश कुमार और चंद्रप्रकाश को टिकट देने के लिए तेजस्वी यादव को कहा था लेकिन तेजस्वी यादव नहीं माने और उन्होंने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था ।

अब नतीजा सबके सामने है और इन दोनों ही सीटोंं पर आरजेडी के प्रत्याशियों की बुरी तरह से हार हो गई है ।जाहिर तौर पर,लालू परिवार के बीच मचे घमाशान और अंदरुनी कलह तो टिकट बंटवारे के समय ही दिख गई थी । बड़े भाई तेजप्रताप यादव से तेजस्वी यादव की दूरी लगातार दिखती भी रही थी ।इसकी तकसीद इस बात से भी होती है कि बीते 13 मई को तेजस्वी के सामने ही तेजप्रताप ने मंच पर कहा,’हमेशा से हम व्याकुल रहे कि तेजस्वी जी के साथ,जो हमारे अर्जुन हैं,उनके कार्यक्रम में जाएं, लेकिन वे पहले ही हेलीकॉप्टर से उड़ जाते थे और हम जमीन पर ही रह जाते थे ।बीते 28 मार्च को अपनी मजबूरी गिनाते हुए कहा तेजप्रताप यादव ने कहा था कि वह सिर्फ तेजस्वी को सुझाव देने की हैसियत रखते हैं ।वे कहीं से भी,किसी निर्णायक भूमिका में नहीं हैं ।गौरतलब है कि तेजस्वी यादव ने चुनावी कैम्पेन को अपने तक ही सीमित रखा ।

मीसा भारती पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के अलावा कहीं चुनाव प्रचार में भी नहीं गईं ।राबड़ी देवी ने भी सिर्फ छः मीटिंग की ।जो संकेत मिल रहे हैं,उसके मुताबिक आने वाले समय में लालू परिवार में विरासत संभालने की एक बड़ी लड़ाई छिड़ सकती है ।वैसे बताते चलें कि लालू परिवार के बीच विरासत की जंग वर्ष 2016 की शुरुआत में ही काफी विस्तार पा चुका था । इसके बीच-बचाव के लिए लालू यादव,सीएम नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर ने पहल की थी । तेजस्वी को कमान सौंपने के बाद, मीसा भारती राजद की राजनीति में दखल देने लगी थीं ।इससे परेशान लालू प्रसाद यादव ने मीसा भारती को राज्यसभा में भेज दिया ।तब यह कहा गया था कि वह सिर्फ दिल्ली और लोकसभा चुनाव से जुड़ी बातें देखेंगी ।वहीं तेजस्वी यादव को तेजप्रताप के साथ बिहार की कमान सौंपी गई थी ।हालांकि तेजप्रताप यादव इससे संतुष्ट नहीं थे ।

दरअसल वह बड़ा बेटा होने के नाते,खुद को लालू यादव का उत्तराधिकारी मानते रहे हैं ।वे अक्सर अपने आपको दूसरा लालू भी कह कर जनता के बीच जाते रहे हैं ।राजनीतिक जानकारों की मानें,तो राजद पर तेजस्वी की पकड़ इतनी मजबूत हो गई है कि मीसा भारती और तेजप्रताप यादव को पाटलिपुत्र सीट के लिए बागी तेवर दिखाने पड़े,तभी मीसा को टिकट मयस्सर हो पाया ।अब जब लोकसभा चुनाव में तेजस्वी फेल साबित हुए हैं,तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में तेजप्रताप यादव यह बात कहने लगें कि अब वही पार्टी देखेंगे । ऐसे हमें जो जानकारी मिल रही है,उसके मुताबिक,लालू परिवार में स्पष्ट फूट नहीं होगी क्योंकि अब लालू यादव,स्वयं इस मसले को संभाल रहे हैं ।फिलहाल ऐसी हैसियत किसी की नहीं है जो लालू प्रसाद यादव की बातों का विरोध कर पाएं ।ऐसे में मामला लालू प्रसाद यादव के पास पहुंच चुका है और उम्मीद यह जताई जा रही है कि लालू प्रसाद यादव,हर विवाद को करीने से सुलझा लेंगे ।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह का “विशेष विश्लेषण”

-sponsored-

- Sponsored -

- Sponsored -

Comments are closed.