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बिहार चुनाव “विशेष” : बहुत कठिन है डगर पनघट की, आखिर किसके सिर बंधेगा जीत का सेहरा

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बिहार चुनाव “विशेष” : बहुत कठिन है डगर पनघट की, आखिर किसके सिर बंधेगा जीत का सेहरा

सिटी पोस्ट लाइव : लोकसभा चुनाव में अब राजनीति अपने पूरे परवान पर दिखने लगी है। हर इलाका अब गर्माहट से लवरेज है।खासकर के इस चुनाव के तीन चरण के लिए 11, 18 और 23 अप्रैल को होने वाले मतदान के लिए जमकर राजनीतिक रस्साकसी और पहलवानी हो रही है। इस राजनीतिक विश्लेषण में हम कोसी के दो सीट मधेपुरा और सुपौल की तटस्थ पड़ताल से साफ होती तस्वीर को आपसे रूबरू कराने जा रहे हैं। सबसे पहले हम बिहार की सबसे महत्वपूर्ण और गरम सीट मधेपुरा की बात कर रहे हैं।बताना लाजिमी है कि गणतंत्र भारत के आमसभा चुनाव में,पहले सहरसा लोकसभा हुआ करता था लेकिन परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा बना डाला गया और उसी के अंदर सहरसा के अधिकांश हिस्सों को रखा गया ।मंडल कमीशन के प्रणेता बी.पी. मंडल की धरती रही मधेपुरा समाजवाद के प्रहरी स्थल के रूप में चिन्हित और विख्यात है ।मधेपुरा सीट से लालू प्रसाद यादव और शरद यादव सांसद रह चुके हैं ।

इस बार मधेपुरा से अपनी पार्टी लोजद बनाने के बाद भी शरद यादव,राजद का लालटेन हाथ में लिए चुनावी समर में हैं ।एनडीए ने अपना उम्मीदवार जदयू के वरिष्ठ नेता तो दिनेश चन्द्र यादव को उम्मीदवार बनाया है,जो अभीतक पांच बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं ।तीसरे उम्मीदवार हैं जाप से पप्पू यादव ।पप्पू यादव 2014 में राजद से मधेपुरा से सांसद चुने गए थे लेकिन राजद से वैचारिक मतभेद होने की वजह से उन्होंने अपनी खुद की पार्टी जन अधिकार पार्टी (जाप) बना ली ।पप्पू यादव 1 बार विधायक और 5 बार सांसद रह चुके हैं ।मधेपुरा में त्रिकोणीय मुकाबला है ।पप्पू यादव अभी जनता के बीच में मधेपुरा का बेटा और सेवक पप्पू के रूप में जनता के बीच जा रहे हैं ।जनता उन्हें सुन रही है और गहराई से समझने की कोशिश भी कर रही है ।पप्पू यादव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे सदैव जनता के बीच रहते हैं और हर तबके के लोगों के लिए सुलभ हैं ।

कोई भी उनसे आसानी से मिलकर अपनी बातें साझा कर लेता है ।क्षेत्र में किसी दुर्घटना के बाद वे पीड़ित परिवार से मिलकर दुःख जाहिर करने के साथ-साथ आर्थिक मदद भी करते हैं ।गरीबों की बेटी की शादी में भी वे लगातार आर्थिक मदद करते रहे हैं ।दिल्ली का उनका सरकारी आवास जनता सेवा सदन में तब्दील हैं जहां हजारों मरीज,अपने परिजन के साथ रहकर ईलाज करवाते हैं ।यहाँ सभी को सम्मान के साथ खाना भी मुफ्त में मिलता है ।पप्पू यादव गरीब मरीजों की आर्थिक मदद भी करते हैं ।बिना जात-धर्म जाने पप्पू यादव की यह सेवा उन्हें निसन्देह आम से बेहद खास बनाता है ।लेकिन पप्पू यादव 1990 के दशक में अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह थे और उनकी पहली पहचान अभीतक एक बाहुबली की ही है ।

पूर्व सांसद आनंद मोहन फैक्टर

मधेपुरा और सुपौल लोकसभा सीट पर जेल में बन्द पूर्व सांसद आनंद मोहन के जनाधार का बेहद असर पड़ने वाला है ।वैसे आनंद मोहन अपनी पत्नी लवली आनंद को कांग्रेस द्वारा शिवहर से टिकट नहीं दिए जाने से काफी खफा हैं ।वैसे उन्होंने अभीतक अपना पत्ता नहीं खोला है ।विश्वस्त सूत्रों से हमें मिली जानकारी के मुताबिक आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद या फिर उनके बड़े बेटे चेतन आनंद शिवहर या काराकट से निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं ।पप्पू यादव ने एक बयान में कहा है कि अगर आनंद मोहन के परिवार से कोई भी शिवहर से खड़े होंगे,तो वे तन,मन और धन से कैम्प कर के उनके लिए चुनाव प्रचार करेंगे ।इधर दिनेश चन्द्र यादव अलग से आनंद मोहन को अपने पाले में लेने की हर तरह की कोशिश में जुटे हुए हैं ।हमसे हुई बातचीत में आनंद मोहन ने कहा है कि 10 अप्रैल को शाम में वे सारी तस्वीर साफ कर देंगे ।राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कोसी के मधेपुरा और सुपौल सीट पर आनंद मोहन का जिसको समर्थन मिलेगा,उसकी जीत तय है ।यानि आनंद मोहन फैक्टर अभी संजीवनी की भूमिका में है ।देखते हैं 10 अप्रैल को आनंद मोहन सारे रहस्यों पर से कैसे पर्दा उठाते हैं ?विशेष सूत्र से मिल रही जानकारी के मुताबिक यह सच है कि पूर्व सांसद आनंद मोहन 10 अप्रैल की शाम में अपने राजनीतिक पत्ते खोलेंगे ।बड़ी जानकारी यह मिल रही है कि कांग्रेस द्वारा टिकट नहीं मिलने की वजह से लवली आनंद के साथ चेतन आनंद भी निर्दलीय प्रत्यासी हो सकते हैं ।शिवहर और काराकट सीटों पर इनदोनों की दावेदारी हो सकती है ।बताना लाजिमी है कि शिवहर आनंद मोहन,उनकी पत्नी लवली आनंद और चेतन आनंद की कर्मभूमि रही है ।

90 के दशक में बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन और पप्पू यादव के बीच खूनी संघर्ष में कई लोगों की जान गयी थी ।दोनों के बीच लंबे समय तक रंजिश और खूनी अदावत रही थी ।लेकिन आज के समय में पप्पू यादव और आनंद मोहन के बीच काफी मधुर संबंध हैं और पप्पू यादव,आनंद मोहन को अपना बड़ा भाई मानते हैं ।शरद यादव 7 बार लोकसभा से सांसद और 4 बार राज्यसभा से सांसद रह चुके हैं ।शरद यादव को समाजवादी सोच का पुरोधा माना जाता है ।लेकिन ये मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं ।हांलांकि मधेपुरा में भी इन्होंने अपना आवास बना लिया है ।इनपर बाहरी होने का ठप्पा लगा हुआ है ।लालटेन थामे शरद के प्रचार में उनका बेटा शांतनु बुंदेला भी मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में जमकर प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं ।कभी लालू से दोस्ती,तो कभी दुश्मनी ।लालू को हासिये पर लाने के लिए शरद ने जमकर राजनीतिक षड्यंत्र किये हैं ।

लेकिन यह कड़वा सच है कि राजनीति में कभी कोई किसी का दोस्त और दुश्मन बन सकते हैं ।हमें याद है कि जदयू के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान चारा घोटाले में लालू को सजा सुनाई गई थी ।उस सजा की जानकारी शरद यादव को मंच पर ही मिली ।मंच पर से शरद यादव ने लालू यादव की सजा पर दुःख जताते हुए कहा था कि लालू प्रसाद यादव आज उनके साथ होते,तो उन्हें कभी भी सजा नहीं मिलती ।जदयू के प्रत्यासी दिनेश चंद्र यादव,शरद यादव के काफी करीबी रहे हैं ।लेकिन चुनावी मैदान में इसबार एक दूसरे के सामने हैं ।दिनेश चंद्र यादव लोगों का रुख अपनी ओर मोड़ने में दिन-रात एक किये हुए हैं ।

दिनेश चंद्र यादव का इस क्षेत्र में अपना जनाधार है और उसके बाद जदयू और बीजेपी का कैडर वोट उनके साथ है ।इसबार मधेपुरा चुनाव में राजपूत,ब्राह्मण और सवर्ण वोट ना केवल महत्वपूर्ण भूमिका में है बल्कि मधेपुरा में जीत का सेहरा सवर्ण ही बांधेंगे ।शरद यादव सदैव सवर्ण विरोधी बयानों के लिए खासा चर्चा में रहे हैं ।और 8 अप्रैल को जारी हुए राजद के चुनावी घोषणा पत्र में सवर्ण के लिए कुछ भी नहीं है ।यही नहीं राजद ने राज्यसभा से लेकर सड़क पर गरीब सवर्ण को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण का खुल्लम-खुल्ला और डंके की चोट पर विरोध किया था ।इस विरोध का असर इस चुनाव में दिखना तय है ।लेकिन शरद यादव अपनी तरफ से सवर्ण को शब्जबाग दिखाने और मनाने में जुटे हैं ।

इधर जाप के उम्मीदवार पप्पू यादव के जनसंबोधन सभा और कार्यक्रम में काफी भीड़ उमड़ रही है ।इस भीड़ को देखकर पप्पू यादव गदगद हैं ।लेकिन यह भीड़,वोट में कितना तब्दील हो पाती है,यह राज ईवीएम ही खोलेगा । कोसी में सहरसा सबसे पिछड़ा इलाका है ।बीते लगभग ढ़ाई दशक से यहाँ के लोग सहरसा बंगाली बाजार में रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण की मांग करते रहे हैं ।लेकिन ओवरब्रिज का निर्माण आजतक शुरू नहीं हो सका है ।आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस ओवरब्रिज का पांच बार शिलान्यास हुआ है लेकिन निर्माण कार्य शुरू हो,इसके लिए किसी जनप्रतिनिधि ने ईमानदारी से कोई प्रयास नहीं किया है ।कोसी के पीएमसीएच कहे जाने वाले सदर अस्पताल को आजतक अपग्रेड नहीं किया जा सका है ।

चन्द्रायण के रेफरल अस्पताल को आजतक शुरू नहीं किया जा सका है ।1974 में करोड़ों की लागत से बना बैजनाथपुर पेपर मिल,बिना धुआं उगले ही बन्द पड़ा हुआ है ।इस पेपर मिल को चालू कराने की आजतक कोई मजबूत पहल नहीं हुई है ।मखाना की खेती को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता है ।इस इलाके में मक्के की खेती खूब होती है लेकिन मक्का आधारित कोई उद्द्योग इस इलाके में नहीं लगाए जा सका है ।सहरसा जिला मुख्यालय में ड्रैनेज सिस्टम नहीं है ।नगरपरिषद पर जदयू के प्रत्यासी दिनेश चन्द्र यादव का कब्जा है ।अभी उनकी पत्नी रेणू सिन्हा नगर परिषद की चैयरमैन हैं ।हमेशा दिनेश चंद्र यादव के इशारे पर ही उनके खास लोग नगरपरिषद के चैयरमैन की कुर्सी को संभालते रहे हैं ।नगर परिषद,पी.डब्लू.डी से लेकर एन.एच.और स्टेट हाईवे की कोई भी सड़क ठीक नहीं है ।बदहाल सड़के दुर्घटना की वजह बन रही हैं और लोग असमय मारे जा रहे हैं ।

ये स्थानीय मुद्दे भी लोग प्रत्यासियों के सामने बेहद तल्खी से रख रहे हैं ।मधेपुरा में 23 अप्रैल को चुनाव है ।इस लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला है जिसमें दिनेश चन्द्र यादव अभी काफी आगे और मजबूत दिख रहे हैं । सुपौल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रत्यासी पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन की सीधी टक्कर जदयू के दिलेश्वर कामत से है ।लेकिन बीजेपी के पूर्व सांसद विश्वमोहन कुमार को टिकट नहीं मिलने से उन्हें भीतर से नाराजगी है ।वैसे बीजेपी के बड़े नेताओं ने उन्हें लगभग मना लिया है ।यहाँ सबसे बड़ी मुश्किल रंजीता रंजन को राजद से है ।रंजीता रंजन का विरोध राजद कर रहा है ।राजद ने अंदर के समर्थन से एक यादव प्रत्यासी को निर्दलीय मैदान में उतार दिया है ।राजद भीतरघात से रंजीता रंजन को पटखनी देने के लिए जमकर प्रयास कर रहा है ।राजद के तेजस्वी यादव,पप्पू यादव की राजनीति को खत्म करने की जमकर साजिश कर रहे हैं ।गठबंधन धर्म का बिहार में कोई महत्व नहीं है ।ऐसी स्थिति में जदयू के प्रत्यासी दिलेश्वर कामत की स्थिति काफी मजबूत और जिताऊ है ।सुपौल में भी 23 अप्रैल को मतदान होने हैं ।

पीटीएन मीडिया न्यूज ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह का “विशेष चुनावी विश्लेषण”

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