City Post Live
NEWS 24x7

सब्जियां बेचकर कौशलेन्द्र कमा रहे हैं हर महीने 40 लाख रुपये, सालाना टर्नओवर 5 करोड़

-sponsored-

-sponsored-

- Sponsored -

सब्जियां बेचकर कौशलेन्द्र कमा रहे हैं हर महीने 40 लाख रुपये, सालाना टर्नओवर 5 करोड़

सिटी पोस्ट लाइव : क्या कोई शब्जी बेचकर भी हर महीने 40 से 50 लाख रुपये कम सकता है ? क्या कोई IIM अहमदाबाद से एमबीए के गोल्ड मेडल हाशिल करनेवाला स्टूडेंट करोड़ों रुपये के पॅकेज वाली नौकरी छोड़कर हरी शब्जी बेंचने का कारोबार करसकता है ? आपके ईन सभी सवालों के जबाब हैं नालंदा जिले के शब्जी विक्रेता कौशलेंद्र. कौशलेन्द्र ने MBA करने के बाद नौकरी करने की बजाय हरी शब्जी का कारोबार करना पसंद किया. बिहार के नालंदा जिले के मोहम्मदपुर गांव में जन्मे कौशलेंद्र के माता-पिता गांव में ही टीचर थे. जब कौशलेंद्र 5वीं क्लास में थे जब उनका दाखिला घर से 50 किलोमीटर दूर स्कूल में हुआ. स्कूल की खासियत ये थी कि वहां टेलेंटेड बच्चों को फीस, खाना, कपड़े, वहीं रहना और किताबों समेत सभी सुविधाएं फ्री मिलती थी.

स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद ने IIT से बीटेक करना चाहते थे. लेकिन यह जब मुमकिन नहीं  हो सका तो उन्होंने  इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च जूनागढ़, गुजरात से बीटेक किया. कोर्स के दौरान ही कौशलेंद्र ने गांव और शहर के लोगों के ज़िंदगी जीने के तरीके के फर्क को समझा और बिहार के लिए कुछ करने का फैसला किया. उन्होंने लोगों को रोज़गार देकर परिदृश्य भी बदला.कौशलेंद्र ने 2003 में B.Tech पास करने के बाद एक irrigation instruments बनाने वाली फर्म में 6000 रुपए महीना की नौकरी पाई. कुछ ही दिन बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर IIM अहमदाबाद में दाखिला लेने के इरादे से CAT एग्जाम की तैयारी की. उन्होंने टॉप पोजिशन हासिल की और एमबीए के आखिरी साल में गोल्ड मेडल जीता.

पढ़ाई पूरी करने के बाद 2007 में नौकरी करने के बजाय कौशलेन्द्र जब गावं लौट गए और हरी शब्जी के कारोबार करने की इच्छा जाहिर की तो सबने दांतों-तले उंगुली दबा ली. क्या IIM का गोल्ड मेडलिस्ट अब गावं में शब्जी बेचेगा? IIM अहमदाबाद से टॉप करने के बाद भी बेरोजगार होने पर लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया. पर कौशलेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी. लोक लाज की परवाह किये वगैर कौशलेन्द्र ने अपने भाई के साथ कौशल्या फाउंडेशन की स्थापना की. इस फाउंडेशन के जरिए उन्होंने संगठित सब्जी व्यवसाय बनाने के लिए किसानों और विक्रेताओं के बीच समन्वय बढ़ाने में मदद की.उन्होंने समृद्धि योजना शुरू की और वह हिट भी रही. वर्तमान में, कौशल्या फाउंडेशन के तहत 20,000 से अधिक किसान उनके मिशन में शामिल है और उनके लगभग 700 कर्मचारी हैं.

कौशलेंद्र पूरे बिहार में बिखरे सब्जी किसानों और विक्रेताओं के बीच खुदरा आपूर्ति श्रृंखला मॉडल में सब्जी उत्पादों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इस परियोजना से जुड़े कर्मचारी किसानों से सब्जियां एकत्र करते हैं और उन्हें विक्रेताओं तक पहुंचाते हैं. किसानों को खेती से जुड़ी हर संभव मदद और सलाह दी जाती है. कौशलेंद्र एक ऐसी फर्म बनाना चाहते हैं, जहां सब्जी किसान बाजार की प्रकृति को बदल को सकें, वे एफडीआई रीटेल में कर सकें ताकि सौदेबाजी में भी सक्षम हो.

सब्जियों को खेतों से इकट्ठा करने के बाद, इसकी ताजगी बनाए रखना जरूरी है. इसके लिए कौशल्या फाउंडेशन ने पटना और नालंदा की तंग गलियों में ice-cold push carts तैयार की हैं. कौशल्या फाउंडेशन का वार्षिक लाभ 5 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. कौशलेंद्र अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों और आईआईएम के दोस्तों को देते हैं, वे यह भी मानते हैं कि उनकी सफलता उनके साहस और मानसिक शक्ति के कारण है. . धन की कमी के कारण शुरुआती दिन बहुत मुश्किल थे.लेकिन आज धन की बारिश हो रही है और सैकड़ों लोग उनके लिए काम कर रहे हैं और हजारों किसानों की जिंदगी में खुशहाली आ गई है..

-sponsored-

- Sponsored -

Subscribe to our newsletter
Sign up here to get the latest news, updates and special offers delivered directly to your inbox.
You can unsubscribe at any time

- Sponsored -

Comments are closed.