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देवी नवरात्र के अवसर पर स्त्री विमर्श – सिटी पोस्ट लाइव – 2 : स्त्री की निगाह में स्त्री 

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देवी नवरात्र के अवसर पर स्त्री विमर्श – सिटी पोस्ट लाइव – 2 : स्त्री की निगाह में स्त्री 

सिटी पोस्ट लाइव : कई आधुनिक‚ स्त्रीवादी‚ स्वयंसिद्धा महिलाएं मानती हैं कि वे स्वयं को महिला होने के नाते किसी अलग निम्न श्रेणी में नहीं रखना चाहतीं। वे स्वतन्त्र नागरिक हैं‚ पुरुष के कन्धे से कन्धा मिला कर चलती हैं। उनका होना वैसा ही शाश्वत सत्य है‚ जैसे पुरुष का होना। एक हद तक यह बात सच हो सकती है। किन्तु यहां औरत होना ‘निम्नतर’ होना नहीं है‚ ‘विशिष्ट’ होना है। विशिष्ट महिलाएं स्वयं के ‘औरत’ होने पर गर्व करती हैं। पर महज पढ़ी–लिखी आधुनिक महिलाओं की सार्थकता पूर्ण नहीं होती। वे ग्रामीण महिलाओं‚ गरीबी रेखा से नीचे पिस रही महिलाओं‚ परम्पराओं के घूंघट में आज इक्कीसवीं सदी में भी घुट रही पढ़ी-लिखी‚ अधपढ़ी‚ अनपढ़ महिलाओं को भूल जाती हैं और एक छोटा सा झुण्ड बना कर स्वयं को आज़ाद महसूस करती हैं।

 माना, ‘देवी नवरात्र’, छठ, या ‘महिला दिवस’ स्त्री के दलन को‚ पिछड़े अतीत को‚ मुसीबतों और पिछड़ेपन को याद करने के लिये नहीं बने। पर क्या यह विशिष्ट महिलाओं का दायित्व नहीं कि अपने महिला होने के ‘उत्सव’ को मनाते हुए सड़क के किनारे पर चूल्हा जलाए दिन भर की थकी-मांदी मजदूरिनों को न भूलें? वे महिलाएं मिल कर अन्य महिलाओं को ऊपर उठाने का बीड़ा उठाएं? और जहां तक उत्सव मनाए की बात है – “औरत अपने आप में एक सम्पूर्ण उत्सव है। वह उत्सवों की जननी है। उसके होने से रीतियां हैं‚ परम्पराएं हैं‚ उत्सव हैं‚ समारोह हैं बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता है।”

आज बहुत सी महिलाएं‚ संस्थाएं इस दिशा में निरन्तर प्रयासरत हैं। पर अभी प्रयासों में और ज़ोर लाने की आवश्यकता बाकी है। सम्पूर्ण महिला वर्ग सार्थक‚ स्वतन्त्र‚ विकसित महसूस कर सके उसी में महिला होने की और देवी ‘नवरात्र’ उत्सव मनाने की सार्थकता है। इसे पूरे स्त्री-परिदृश्य को स्त्री की निगाह से देखने-समझाने के लिए ‘सिटी पोस्ट लाइव’ की ओर से डॉ. प्रभा खेतान की ‘कृतियों’ के कुछ अंश साभार प्रस्तुत किए जा रहे हैं।)

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