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क्यों नीतीश कुमार को भाव नहीं दे रही बीजेपी, क्या हैं इसके राजनीतिक मायने

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क्यों नीतीश कुमार को भाव नहीं दे रही बीजेपी, क्या हैं इसके राजनीतिक मायने

सिटी पोस्ट लाइव : जिस तरह से जेडीयू ने शुरू में तीन तलाक बिल और जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के विरोध में स्टैंड लिया था राजनीतिक गलियारे में जेडीयू के बीजेपी से अलग हो जाने की अटकलें लगाईं जाने लगी थी. आरजेडी के तेवर भी बदल गए थे. हमेशा नीतीश कुमार पर हमला करनेवाले तेजस्वी यादव ने चुप्पी साध ली थी और आरजेडी के नेता नीतीश कुमार के महागठबंधन में आने का इंतज़ार करने लगे थे.

लेकिन जिस तरह से तीन तलाक पर बीजेपी ने नीतीश कुमार को इग्नोर किया और वगैर उन्हें विश्वास में लिए बिल पास करा लिया और फिर धारा 370 को समाप्त कर दिया, महागठबंधन के नेताओं को उम्मीद थी कि अब नीतीश कुमार जरुर कोई स्टैंड लेगें. लेकिन तीन तलाक और धारा 370 पर विरोध में वोट करने की जगह सदन से वाक्आउट करने की जो रणनीति अपनाई, महा-गठबंधन के नेताओं की उम्मीद कमजोर हो गई. धारा 370 को लेकर जिस तरह से नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली और इसके विरोध में बयान देनेवाले नेताओं को पार्टी द्वारा जिस तरह से फटकार लगाईं गई, उससे साफ़ हो गया कि भले बीजेपी नीतीश कुमार को भाव न दे रही हो लेकिन अभीतक नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होने का फैसला नहीं ले पाए हैं या फिर नहीं ले पा रहे हैं.

बीते 4 अगस्त को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू पटना विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे. इसी मंच से संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह दर्द एक बार फिर छलक आया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरे मंच से नीतीश कुमार की उस मांग को खारिज कर दी थी जिसमें उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की बात कही थी. वाकया 14 अक्तूबर 2017 की है जब पीएम मोदी पटना आए थे. पीएम ने केवल नीतीश कुमार की एक मांग खारिज नहीं किया बल्कि वो नीतीश कुमार को  महत्व भी नहीं दे रहे.धारा 370 और तीन तालक बिल इसके उदहारण तो हैं ही साथ ही 30 मई को जब पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने शपथ ली तो जेडीयू इसमें शामिल नहीं हुई. जानकारी आई कि बीजेपी अपने सहयोगी दलों की सांकेतिक भागीदारी के तहत एक पद देना चाह रही थी, लेकिन जेडीयू तीन सीटों पर अड़ी थी. हालांकि बाद में बैकफुट पर आई और दो पद पर मान गई लेकिन उसकी दो मंत्री पद की मांग को भी मोदी ने ठुकरा दिया. जाहिर है केंद्र की मोदी सरकार नीतीश की हर मांग को खारिज कर दे रही है. महत्वपूर्ण मसलों पर उनसे कोई सलाह नहीं ले रही मानो ये कहना चाहती है, रहना है तो रहो, जाना है तो जाओ.

वर्ष 2015 के चंद महीनों को छोड़ दें तो वर्ष 2005 से ही बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है. तब से ही नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के मुद्दे को अपना मुख्य एजेंडा बना रखा है. लेकिन उनकी इस मांग को भी मोदी सरकार ने ठुकरा दिया.केंद्र सरकार द्वारा लगातार नीतीश कुमार की उपेक्षा की जा रही है और नीतीश कुमार लगातार सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन बात बन नहीं पा रही. धारा 370 के बाद तो इस साल होनेवाले पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में बीजेपी की जीत तय मानी जा रही है. अगर ऐसा हुआ तो शायद बीजेपी अगले चुनाव में नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का नेता मानने स भी इंकार कर सकती है.

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