विशेष संपादकीय : आखिरकार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को समाज कल्याण मंत्री का इस्तीफा ले ही लिया. आज दोपहर मुख्यमंत्री आवास जाकर मंजू वर्मा ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंपा. गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर चिल्ड्रन होम में 34 नाबालिग लड़कियों के साथ रेप और शारीरिक यातना की खौफनाक दास्तान दुनिया भर में हेडलाइन बनी. सिविल सोसाइटी और विपक्षी खेमे ने जैसे ही दबाव बनाना शुरू किया कि नीतीश कुमार ने उसकी सीबीआई जांच की मंजूरी दे दी. बुधवार को ब्रजेश ठाकुर के साथ उनके पति के तार जुड़े होने का मामला सामने आया, मुख्यमंत्री ने बिना देर किये मंत्री से इस्तीफा मांग लिया. हालांकि दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने मंजू वर्मा को क्लीन चीट दे दी थी .लेकिन साथ ही ये चेतावनी भी दे दी थी कि जिस किसी की भूमिका इस मामले में सामने आयेगी, उसे छोड़ा नहीं जाएगा.
गौरतलब है कि राज्य सरकार बदस्तूर इस मामले को उजागर करने का क्रेडिट खुद लेने की कोशिश करती दिख रही थी. ये तर्क दिया जाता रहा कि बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग ने ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज को राज्य भर के शेल्टर होम का ‘सोशल ऑडिट’ (सामाजिक अंकेक्षण) करने का निर्देश दिया था. लेकिन सरकार का यह प्रयास नीतीश कुमार की छवि के अनुकूल बिल्कुल साबित नहीं हो रहा था. नीतीश कुमार के सातवीं बार राज्य की कमान संभालने के बाद पिछले एक साल में घपले-घोटाले के कई मामलों में खुद सरकार ‘पोलखोल या व्हिसल ब्लोअर’ की भूमिका अदा करने की मुद्रा में फ़टाफ़ट आती दिखी थी. जैसे, पिछले साल महागठबंधन से नाता तोड़ भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के कुछ ही दिनों बाद नीतीश कुमार ने सार्वजनिक मंच से ‘सृजन घोटाले’ का खुलासा किया, जिसमें सरकारी विभागों के पैसे को एक एनजीओ के खाते में सुनियोजित तरीके से ट्रांसफर किया जा रहा था.
फिर ‘शौचालय घोटाला’ सामने आया और संबंधित सरकारी विभाग ने इसका भी क्रेडिट खुद लेने की कोशिश की. लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर-काण्ड के खुलासे से यह स्पष्ट हुआ कि यह कोई तात्कालिक या आकस्मिक दुर्घटना नहीं है, किसी गुंडा गिरोह की आपराधिक करतूत नहीं है; यह शासन-प्रशांसन का संचालन-नियमन-नियन्त्रण करनेवाले ‘बड़े’ लोगों का सुनियोजित ‘दुष्कर्म’ है. सो यह सवाल उठना लाजिम था कि कोई स्कैम हो या स्कैंडल क्या हर बार सरकार खुद को ‘व्हिसल ब्लोअर’ बताकर अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच सकती है?वैसे मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में अबतक 10 लोग जेल भेजे जा चुकें हैं. एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी निलंबित हो चुके हैं. लेकिन इन फैसलाकुन-सी कार्रवाइयों से नीतीश-सरकार की राजनीतिक ‘ईमानदारी’ की खुशबू की बजाय ‘बेईमानी’ की यह ‘बदबू’ फ़ैल रही थी कि ये बड़ी मछलियों को बचाने के लिए छोटी मछलियों को फांसने के प्रमाण हैं. लेकिन आज मुख्यमंत्री ने मंत्री से इस्तीफा लेकर इस बदबू को आगे फ़ैलने से रोकने की कोशिश की है.
मुज़फ़्फ़रपुर-काण्ड के खुलासे के बाद देश के आमोखास में फैले आक्रोश-उत्तेजना के बीच शासन-प्रशासन के अधिकारियों की, क्रिकेट टेस्ट मैच के खिलाडियों जैसी उछल-कूद और नीतीश कुमार की, कोच-मैनेजर जैसी, हैरान करने वाली चुप्पी से यह ‘सवाल’ भी सतह पर आ गया कि, क्या यह सब ‘जहां घोटाला हो वही उसकी जांच करें’ थ्योरी का कमाल तो नहीं है? यह सर्वविदित है कि आज पटना से लेकर दिल्ली तक की सत्ता-राजनीति के खेल में ‘ईमानदारी’ की एक ही थ्योरी का बोलबाला है. “तुम बेईमान हो यह मेरी ईमानदारी का प्रमाण है.” नीतीश कुमार की सत्ता-राजनीति की पहली डेढ़ पारियां इस बात का संकेत करती थीं कि वह ईमानदारी की इस थ्योरी के कभी कायल नहीं रहे. लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल के घपले-घोटालों और अब मुज़फ़्फ़रपुर-काण्ड से आम जन में यह शंका घर करने लगी थी कि यह सब नीतीश कुमार पर ईमानदारी की उस थ्योरी के राजनीतिक असर का प्रमाण तो नहीं?
आमतौर पर नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी भी उनकी व्यक्तिगत ‘ईमानदारी’ पर शक नहीं करते, लेकिन आम जन में यह शंका पनपने लगी थी कि नीतीश कुमार की व्यक्तिगत ‘ईमानदारी’ भी देश के कई राजनीतिक दिग्गजों की तरह की है, जो ‘बेईमानी’ के बीच अपनी छवि को बचाने के प्रति सचेत रहती है, और इसलिए अपनी छत्र-छाया के नीचे पलती ‘बेईमानी’ का खुलकर विरोध करने से भी बचती है. ‘मरता क्या न करता’ की नौबत आने पर ही ऐसी ईमानदारी खुद को एक्टिव दिखाती है. ऐसी ईमानदारी की छत्र-छाया के नीचे कई बेईमानियाँ सूखने की बजाय पलती-पुसती हैं – घने पेड़ की छाया के नीचे की घास-पूस की तरह! मंत्री के खिलाफ कारवाई नहीं किये जाने को लेकर अमोखास के बीच नीतीश कुमार के प्रति इस तरह के कई सवाल और संदेह बनने-पनपने लगे थे जिसे रोकने के लिए आज मंत्री का नीतीश कुमार ने इस्तीफा ले लिया .
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