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“विशेष” : अर्ध सैनिकों और पुलिस को भी मिले शहीद का दर्जा

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“विशेष” : अर्ध सैनिकों और पुलिस को भी मिले शहीद का दर्जा

सिटी पोस्ट लाइव : भारत की आजादी के बाद कई चीजें ऐसी हुईं जिसपर दशकों से सवाल खड़े होते रहे हैं। जल, थल और वायु, तीनों सेना को देश हमेशा सेल्यूट करता रहा है। दुश्मन देशों से हम देशवासियों को सुरक्षित और महफूज रखने की जिम्मेवारी इन्हीं तीनों सेना के जिम्मे है। इसमें कोई शक नहीं है कि असली आजादी का सुखद अहसास और खुली हवा में आजादी से लवरेज सांसे हम इन सैन्य बलों के दम पर ही ले रहे हैं। इन्हें जितनी संवैधानिक अधिकार और सुविधाएं मिली हुई हैं, हम उसके मुरीद हैं और चाहते हैं कि इसमें और ईजाफा हो। हमारे तीनों सेना के जवान से लेकर हर स्तर के अधिकारी जब सैन्य कारवाई में वीरगति को प्राप्त होते हैं, तो इन्हें संवैधानिक तौर पर “शहीद” का दर्जा मिलता है। लेकिन दुर्भाग्य और संवैधानिक व्यवस्था का जाहिल और दोषपूर्ण रवैया देखिए कि देश की आंतरिक सुरक्षा में लगे अर्ध सैनिकों और उनके अधिकारियों से लेकर पुलिस के जवान और अधिकारी जब, आंतरिक सुरक्षा के दौरान मारे जाते हैं, तो उन्हें संवैधानिक रूप से “शहीद” का दर्जा नहीं मिलता है। यह बेहद दुःखद और निराशाजनक पहलू है, जो मौत को भी बांटता है।

सरकार को इस भूल को सुधारने की जरूरत है। किसी दूसरे की हिफाजत के लिए कोई अपनी जान गंवा रहा है। सरकार इन अर्ध सैनिकों और पुलिस वालों की मौत को फिर से जिंदगी में नहीं बदल सकती है। जब मौत हिफाजत के लिए लड़ते-लड़ते हुई है,तो ये भी “शहीद” के सम्मान के हकदार हैं। आमतौर पर सेना सिर्फ युद्ध के वक्त ही बॉर्डर पर मोर्चा संभालती है। हमारे यहां तमाम लोग गलतफहमी और जानकारी के अभाव में सेना और अर्धसैनिक बलों को एक ही मान लेते हैं। दशकों से लोग सेना के सैनिकों और अर्धसैनिक बलों के जवानों में ज्यादा फर्क नहीं कर पा रहे हैं। गौरतलब है कि इनके काम और सेवा शर्तें भी अलग-अलग होती हैं। ऐसे में सेना और अर्धसैनिक बलों के अंतर को समझना जरूरी है।

क्या और कैसे हैं सेना के काम करने के तरीके?

सेना में सिर्फ इंडियन आर्मी, एयरफोर्स और इंडियन नेवी शामिल हैं। सेना आमतौर पर युद्ध के वक्त मोर्चा संभालती है। शांति के समय सेना देश भर में सेना के लिए बनाई गईं छावनी में रहती है। आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के लिए अलग-अलग रिहायशी क्षेत्र बनाए गए हैं। आमतौर पर जब युद्ध नहीं होता है, तो सेनाएं वहीं रहकर आराम से रहती हैं। नेवी का काम समुद्री सीमाओं की सुरक्षा करने का होता है, इसलिए इनको शांति काल में भी समुद्री सीमाओं पर मुस्तैद रहना होता है। तीनों सेनाओं में सैनिकों की तायदाद करीब 13.50 लाख है। यह जानना बेहद जरूरी है कि तीनों सेनाएं रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करती है। सेना में लेफ्टिनेंट, मेजर, कर्नल, ब्रिगेडियर, मेजर जनरल और सेना प्रमुख के पद होते हैं। सैनिकों और सैन्य अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी मिलती है।

अर्ध सैनिक सुरक्षा बलों में CRPF, BSF, ITBP, CISF, Assam Rifles और SSB शामिल हैं। देश में अर्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या 9 लाख से ज्यादा है। अर्धसैनिक बल के जवानों को बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, चीन, भूटान और नेपाल से सटी सीमाओं पर ड्यूटी देनी पड़ती है। अर्धसैनिक बलों में सिविल पुलिस की तरह कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, एएसआई,असिस्टेंट कमांडेंट और कमांडेंट, डीआईजी, आईजी और डीजी के पद होते हैं। अर्धसैनिक बलों में रिटायरमेंट के बाद आर्मी की तरह पेंशन नहीं मिलती है। एक तरफ जहां तीनों सेना रक्षा मंत्रालय के अंदर काम करती है वहीँ दूसरी तरफ अर्धसैनिक बल गृह मंत्रालय के मातहत काम करते हैं। गौरतलब है कि अर्धसैनिक बल बीते कई सालों से सेना जैसी सहूलियतें मांग रहे हैं। उनकी शिकायत रहती है कि वे भी सेना जैसी परिस्थितियों में देश के भीतर और सीमाओं पर काम करते हैं।

ऐसे में उनको भी उसी तरह की सेवा शर्तें और सम्मान मिलना चाहिए, जैसा तीनों सेना को मिलता है ।कॉन्‍फेडरेशन ऑफ रिटायर्ड पैरा मिलिट्री एसोसिएशन के महासचिव रणवीर सिंह के मुताबिक सातवें वेतन आयोग में अर्धसैनिक बलों को सिविलयन का दर्जा दे दिया गया है। वन रैंक वन पेंशन की बात तो दूर,सातवें वेतन आयोग ने उनको भत्ता तक नहीं दिया है। जाहिर तौर पर अर्धसैनिक बलों के जवानों के साथ सरकार सौतेला व्यवहार करती रही है। ना केवल ये पेंशन से महरूम हैं बल्कि फौजियों की तरह इन्हें एमएसपी भी नहीं देती है। हद की इंतहा तो यह है कि सेना के कैंटीन में जीएसटी की छूट दी गई है लेकिन अर्धसैनिक बलों की कैंटीन में जीएसटी की कोई छूट नहीं मिली है।

इसमें को शक-शुब्बा नहीं है कि अर्धसैनिक बल भी सेना के कदम से कदम मिलाकर देश और देश के नागरिकों की हिफाजत कर रहे हैं। ऐसे में उनकी सेवा को कहीं से भी कम करके आंकना जायज नहीं है। सरकार को इनकी सुविधाओं के साथ-साथ इनके पेंशन पर त्वरित गति से समीचीन और सटीक फैसला लेना चाहिए। साथ ही सरकार को ऐसी संवैधानिक व्यवस्था करनी चाहिए जिससे अर्ध सैनिक बल और पुलिस के जवान और अधिकारियों को भी नागिरक सेवा के दौरान मारे जाने पर उन्हें भी “शहीद” का दर्जा मिले।सरकार की इस पहल के बाद निसन्देह इनकी कार्यशैली में बदलाव और साहस में भी अकूत ईजाफा होगा। वैसे दीगर बात यह है कि संविधान की बहुतों धाराओं में बदलाव और बहुतेरी धाराओं को अलग से जोड़ने की जरूरत है।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

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