“विशेष” : आखिर बिहार में क्यों बढ़ रहा अपराध, सरकार को चुनाव की फिक्र और नौकरशाह बेपटरी
सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : बिहार का हर जिला इनदिनों अपराध की मार से कराह रहा है। आमलोगों का सुख-चैन अपराधियों ने पूरी तरह से छीन लिया है। कब किसको गोलियों से छलनी कर दिया जाएगा और चाकू सहित अन्य धरदार हथियार से शरीर के विभिन्य हिस्सों को लहू से तर कर दिया जाएगा, कहना मुश्किल है। आपराधिक वारदातों में चोरी, छिनतई, लूट और राहजनी सहित बलात्कार की घटनाएं अभी के समय में दब सी गयी हैं। रोजाना बिहार के किसी ना किसी जिले से हत्या की खबर सुर्खियां बन रही हैं। आखिर जंग पड़े हथियारों में फिर से धार कहाँ से आ रही है और असलहे धुआं क्यों उगल रहे हैं? एक दशक पहले बड़े अपराधियों की हर जिले में एक बड़ी खेप थी, जिनके नाम का सिक्का चलता था। उन अपराधियों के नामपर व्यवसायी से रंगदारी वसूली जाती थी और सुपारी देकर हत्याएं कराई जाती थी। लेकिन वह परिपाटी अब खत्म हो चुकी है। अब कम उम्र के युवक बिना किसी प्लान के बलात और हठात किसी की हत्या कर डालते हैं।
शराबबंदी का साईड इफेक्ट है कि कम उम्र के युवा कोरेक्स, अन्य कोडीन युक्त सिरप, सनफिक्स, आयोडेक्स, सुलेशन, गांजा, भांग, अफीम, चरस,ब्राउन शुगर तक का सेवन करने लगे हैं। साक्ष्यों के आधार पर यह सच भी सामने आया है कि ये नशेड़ी युवा मासिक धर्म के दौरान लड़कियों और महिलाओं के द्वारा इस्तेमाल किये गए सैनेटरी पैड का इस्तेमाल भी नशे के लिए कर रहे हैं। अब कौन युवा सही है, यह ठोक-बजाकर कहना मुश्किल है। यानि अपराध की घटना अब कहाँ घटित होगी और घटना को अंजाम देने वाले कौन और कैसे होंगे, यह पहले से कयास लगाना बेमानी है। इधर सुशासन के नाम से अपनी सरकार का ढिंढ़ोरा पीटने वाली नीतीश कुमार की सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर है। इसमें कोई शक नहीं है कि अभी महाजंगल राज का आभास हो रहा है। नीतीश कुमार आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव को लेकर अपने तरकस के सारे तीर इस्तेमाल करने में लगे हैं।
नीतीश सरकार का ना तो कोई मंत्रालय सही ढ़ंग से काम कर रहा है और ना ही सरकार का तंत्र पर ही कोई नियंत्रण है। बढ़ते हुए अपराध की सबसे बड़ी वजह है बेलगाम हो चुके बड़े पुलिस अधिकारी। पुलिस अधिकारियों का सिर्फ इतना भर काम नहीं है कि अपराध हो जाने के बाद अपराधियों को पकड़ने के लिए अपने कनीय कर्मियों को गालियों की बरसात कर, अपना एकल गुस्सा बाहर निकाल लें। अपराध के बाद अपराधियों को गिरफ्त में ले लेना भर पुलिस के काम नहीं हैं। अपराध की घटना घटित ही ना हो, इसके लिए पुलिस पदाधिकारियों के पास कोई प्रभावशाली रणनीति होनी चाहिए, जो कहीं से भी नहीं है। वरीय पुलिस अधिकारी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर सेवा की जगह नौकरी कर रहे हैं। किसी भी वरीय पुलिस अधिकारी के संपर्क जिले के दस पढ़े-लिखे और सज्जन लोगों से नहीं हैं। इलाके के जानकार से इनके दूर-दूर तक कोई ताल्लुकात नहीं हैं।
जिले के तथाकथित पत्रकार, जिनका जीवन तंत्र के प्रसाद से चल रहा है, वे वरीय पुलिस अधिकारी के सलाहकार बन जाते हैं और अपना नफा-नुकसान देखकर सूचना का आदान-प्रदान करते हैं। आप राज्य मुख्यालय को छोड़कर बिहार के सभी जिलों का किसी तटस्थ जांच एजेंसी से जांच करवा लें, तो आपको पता चलेगा कि जिला मुख्यालय की जनता अपने पुलिस अधीक्षक को पहचानती ही नहीं है। अभी जाड़े का सर्द मौसम है, तो साहब अपने आवास अथवा ऑफिस में गर्म हीटर का लुत्फ लेते मिलेंगे।गर्मी महीने में एसी ऑफिस और एसी आवास से निकलना उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं रहता है। यानि सारा काम कनीय अधिकारियों के जिम्मे होता है। अब आप समझिये किसी भी खेल में, उस टीम के कप्तान की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। बढ़ते हुए अपराध के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार, बिना कोई शक-शुब्बा के उस जिले के एसपी होते हैं।
अभी सरकार के सभी महकमें में वसूली तंत्र हावी है। इसमें पुलिस विभाग नए कीर्तिमान बनाने की जिद पर अड़ा है। एसपी जनता का विरोध झेलने के बाद, समस्या का निदान नहीं करते हैं बल्कि चिन्हित कर के जनता पर पुलिस के निचले कर्मी द्वारा मुकदमे कराते हैं। लोगों के आक्रोश को कुचलने का बेहतरीन तरीका अपनाया है एसपी ने। पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त है।कुछ पुलिस वाले अपराध ना हो इसके लिए मुस्तैद भी दिखते हैं लेकिन बड़े अधिकारी उनका मनोबल बढ़ाने की जगह, उन्हें गालियों की शौगात देते हैं। फिर वसूली तंत्र अलग से अपना असर रखता है। कुल मिलाकर अभी की सरकार में नौकरशाही हावी है। जनता का मान-मर्दन हो रहा है। अपराधी बेखौफ हैं और अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं। हम ताल ठोंककर कहते हैं कि अभी की पुलिसिया व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं है।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप से सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट
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