SC/ST ACT नहीं RESERVATION बनेगा तेजस्वी यादव का चुनावी हथियार
सिटी पोस्ट लाइव ( श्रीकांत प्रत्यूष ) : सवर्णों के भारत बंद में लगे नारे-“ जय सवर्ण-जय ओबीसी” के नारे ने सभी राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है. इसमे कोई शक नहीं कि राजनीतिक दलों के द्वारा की जानेवाली जातीय गोलबंदी के मुकाबले के लिए अब गैर राजनीतिक संगठनों ने जातीय गोलबंदी शुरू कर दी है. ये गैर-राजनीतिक संगठन अब जातियों को गोलबंद कर राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने लगे हैं. इसका असर राजनीति पर दिखने लगा है.
पहलीबार ST/AC एक्ट के बहाने दलित –ओबीसी आमने सामने खड़े दिख रहे हैं. ये भला कौन नहीं जानता कि नब्बे के दशक में लालू यादव ने हाशिए पर खड़ी जमात की जो लड़ाई शुरू की उससे अनुसूचित जातियों से ज्यादा सशक्तिकरण यादवों का हुआ. यादव एक नए सामंत के रूप में उभर कर सामने आये. उनके पास आज की तारीख में पैसा है, जमीन है और मान-सम्मान है.आज की तारीख में वो सवर्णों से ज्यादा ताकतवर हैं. दलितों के साथ सवर्णों की अपेक्षा उनका संघर्ष ज्यादा है. बिहार के बहुत ऐसे ईलाके हैं, जहाँ पर पासवान और यादवों के बीच संघर्ष चलता रहता है. ऐसे में ST/AC एक्ट सवर्णों से ज्यादा उन्हें डरा रहा है.यहीं कारण है सवर्णों के भारत बंद के दौरान एक नया जातीय समीकरण और गैर-राजनीतिक नारा सामने आया है.
इसलिए अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न विधेयक पर बीजेपी को कटघरे में खड़ा कर राजनीतिक फायदा उठाने की रणनीति आरजेडी के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है. राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टी जिसका राजनीतिक वजूद ही MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर टिका हुआ है, दलित वोट बैंक के चक्कर में यादव की नाराजगी है नहीं मोल लेना चाहेगा.
तेजस्वी यादव ने जिस तरह से एक वाक्य में SC/ST एक्ट पर अपने समर्थन का बयान देकर अपना सारा भाषण आरक्षण पर फोकस कर दिया ,उससे साफ़ है कि तेजस्वी यादव को भी इस बात का आभास है कि कि एससी-एसटी एक्ट के बेजा इस्तेमाल की जब बात होती है तो इसकी गैर जमानती धारा सिर्फ सवर्णों के लिए नहीं, बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल जातियों पर भी लागू होती है और यादव इसमें शामिल हैं. इसके ऊपर ज्यादा जोर देने से यादव नाराज हो सकते हैं.
दरअसल, तेजस्वी यादव 17 फीसदी अनुसूचित जातियों के वोट बैंक के प्रति खुद ही आश्वस्त नहीं है. दूसरी ओर SC/ST एक्ट पर ज्यादा मुखर होने से 15 प्रतिशत यादव आरजेडी के कोर वोट बैंक के नाराज हो जाने का खतरा है. बिहार की राजनीति में तेजस्वी की ओजस्वी इंट्री जातीयता की दीवार ध्वस्त नहीं कर पाई है. सर्वजन के मुद्दे उठाते हुए जातीय कोर वोट बैंक को साधना उनकी मजबूरी है. यही बात आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में निकल कर सामने आई. एससी-एसटी एक्ट पर 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से लेकर अब तक जारी राजनीतिक समर में पहली बार तेजस्वी यादव बोले. उन्होंने कहा कि कि नरेंद्र मोदी सरकार ‘दलितों और पिछड़ा वर्ग को लड़ाना चाहती है’.
साफ तौर पर तेजस्वी 2019 के चुनाव से पहले ये रिस्क नहीं ही लेना चाहेंगे कि द्वारका के यदुवंशियों की बात करने वाला देश का नेता एक बार फिर उनके कोर वोट बैंक में सेंध लगा जाए. उनकी कोशिश होगी कि एससी-एसटी एक्ट पर आरजेडी से ज्यादा जीतनराम मांझी बोलें. तेजस्वी के लिए एससी-एसटी एक्ट से ज्यादा कारगर हथियार है आरक्षण है.यहीं कारण है कि तेजस्वी भी SC/ST एक्ट से ज्यादा जोर आरक्षण पर देते दिखाई दे रहे हैं.तेजस्वी यादव बीजेपी –आरएसएस पर आरक्षण समाप्त कर देने की शाजिश का आरोप लगा रहे हैं. तेजस्वी यादव जातीय आधार पर हुई जनगणना की रिपोर्ट को उजागर करने और संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग को जोरशोर से उठा रहे हैं.
दरअसल, सच्चाई ये है कि इस SC /ST एक्ट से केवल वहीँ लोग प्रभावित होनेवाले हैं जो सामंती प्रवृति के हैं. दलितों को अपमानित और प्रताड़ित करने में ही अपनी शान समझते हैं. जो सभी हैं, दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना जानते हैं, उन्हें भला इस एक्ट से डरने की क्या जरुरत है. ये दीगर बात है कि इस एक्ट का कुछ लोग दुरुपयोग कर सकते हैं. लेकिन कौन ऐसा कानून है, जिसका दुरुपयोग अपने देश में नहीं होता. दुरुपयोग के डर से कानून ही न बने ये तो वाजिब नहीं है. सरकार और अधिकारी अगर ईमानदारी से कानून का पालन करवाएं, इसके दुरुपयोग पर नजर रखें तो कोई परेशानी नहीं.
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