एक स्त्री तन्मयता से बनाती है परिवार, पति, परिवार और प्रेम की अद्भूत कहानी
किसी भी महानगर में ऐसे नज़ारे आम हैं। अमीर नारी महंगें वस्त्र, आभूषणों से सज्जित वस्तुमात्र लगती हैं, जो परिवार चलाने का अनिवार्य तंत्र एवं पूरे दिन के बाद घर आने पर पुरुष के मन-बहलाव का साधन जैसी होती हैं। दूसरी तरफ समाज की पढ़ी-लिखी कामकाजी महिलाएं नजर आती हैं – शिक्षित और आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमानी स्त्री। परंतु स्त्री कहीं अधिक तो कहीं कम दमित एवं कुंठित हर जगह है।
स्त्रियों के घुटन भरे जीवन की इस स्थिति का कारण क्या है? शायद सबसे बड़ा कारण अशिक्षा और पैसा है। यदि स्त्री आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हो जाए तो एक हद तक वह स्वतंत्र हो सकेगी।आम तौर पर अपने प्रति होते व्यवहार को देख कर किसी भी लड़की को महसूस होता है मानो स्त्री होना ही अपने-आप में अपराध है। हालांकि जहां स्त्री को कमजोर साबित करने वाले हैं, वहीं स्त्री के स्वाभिमान को जागृत करने वाले भी मिलते हैं। इससे उनके अंदर की स्त्री का स्वाभिमान जागता भी है…जागा भी।…लड़की को बचपन से ही यह आभास कराया जाने लगता है कि तुम कमजोर हो, यह घर तुम्हारा नहीं, तुम्हें पति के घर जाना है और उसी घर को अपनाना है, पुरुष घर का मुखिया है वह कमाता है एवं स्त्री का जीवन उसी पर निर्भर करता है।
औरत अपने परिवार के प्रति पूर्णतया समर्पित हो जाती है और परिवार के अस्तित्व में ही अपना अस्तित्व डूबो देती है। परिवार को जब उसकी जरूरत नहीं रहती तब उसको पीछे धकेल दिया जाता है और वह पूर्णतया अकेली रह जाती है। तब वह अपने वजूद को टटोलती है मगर समय बहुत बीत चुका होता है। यह बात बहुत कम युवतियां समझ पाती हैं, हालाँकि अकसर उनके मन में यह बात उठती है कि “मुझे अम्मा की तरह नहीं होना, कभी नहीं। भाभी की घुटन भरी जिंदगी की नियति मैं कदापि स्वीकार नहीं कर सकती। मैं अपने जीवन को आंसुओं में नहीं बहा सकती। क्या एक बूंद आंसू में ही स्त्री का सारा ब्रह्मांड समा जाए? क्यों? किसलिए? रोना और केवल रोना, आंसुओं का समंदर, आंसुओं का दरिया और तैरते रहो तुम! अम्मा, जीजी, भाभीजी, ताई, चाचियां, यहां तक कि मेरी शिक्षिकाएं भी, जिनकी ओर मैंने बड़ी ललक से देखा, जिनको मैंने क्रांतिचेता पाया था, वे भी तो उसी समंदर को अपने-अपने आंसुओं से भरती चली जा रही थीं।”
एक स्त्री जितनी तन्मयता से परिवार को बनाती है, बच्चों को पालती है, उनके जीवन को संवारती है, पति की खुशी के लिए रात-दिन पिसती है, उनकी सफलता के लिए दुवाएं मांगा करती है, इतनी ही तन्मयता से अपने जीवन को संवारने में लगे तो शायद पुरुष से कहीं आगे हो।औरतें प्रेम को जितनी गम्भीरता से लेती हैं, उतनी गम्भीरता से यदि अपना काम लेतीं तो अच्छा रहता; जितना आंसू … पति के लिए गिरते हैं उससे बहुत कम पसीना भी यदि बहा सके, तो पूरी दुनियां जीत ले सकती है।
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