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“विशेष” : आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को केंद्र सरकार का तोहफा, सरकारी नौकरियों में मिलेगा 10 प्रतिशत आरक्षण

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“विशेष” : आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को केंद्र सरकार का तोहफा, सरकारी नौकरियों में मिलेगा 10 प्रतिशत आरक्षण

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : केंद्र की मोदी सरकार ने 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मास्टर स्ट्रोक लगाते हुए आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का कैबिनेट से फैसला लिया है। राजनीतिक समीक्षक इस तोहफे को जिस रूप में लें,लेकिन यह फैसला ना केवल स्वागत योग्य है बल्कि यह फैसला वर्षों पूर्व लिया जाना चाहिए था। सही मायने में देश के तमाम संसाधनों पर कमजोर तबके के सवर्णों का भी पूरा अधिकार है। इस आरक्षण के लिए देश भर के सवर्ण वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं। यही नहीं यह हक लेने के लिए सवर्ण के कई संगठन और राजनीतिक पार्टी तक बन चुकी है। आजादी के बाद से सामाजिक भिन्नता की खाई भरने की जगह और अधिक गहरी ही होती चली गयी। हालिया वर्षों में तो,देश में सामाजिक संघर्ष की हवा भी बहने लगी। निसन्देह अभी देश संक्रमणकाल से गुजर रहा है। ऐसे में नरेंद्र मोदी के कैबिनेट का यह फैसला ऐतिहासिक है।

पूर्वाग्रह से मुक्त होकर देखें, तो यह देश हित के लिए फैसला है। देश के अंदर कांग्रेस की सरकार के अंदर गरीब सवर्ण के लिए कभी ऐसी सोच भी नहीं पनप सकी थी। राजसिंहासन के लोभ में न्याय और हित हासिये पर चले गए थे। आज के इस महान फैसले पर अभी विपक्षी के हमले सहित दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के मसीहाओं के बयान आने अभी बांकि है। वैसे पूर्व में जिन्हें जिस तरह से आरक्षण के लाभ मिल रहे थे, उसमें कोई बदलाव नहीं किये गए हैं। सभी कुछ यथावत हैं। आपको बताते चलें कि जब अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी,उस समय गरीब सवर्णों को आरक्षण देने पर पुरजोर बहस चल रही थी। बाजपेयी जी पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने के पक्ष में थे लेकिन उस समय बाजपेयी जी के बेहद करीबी जसवंत सिंह ने ऐसी पट्टी पढ़ाई की बाजपेयी जी की एक ना चली।

राजस्थान की राजनीति में खुद को सबसे ताकतवर नेता साबित करने की गरज से जसवंत सिंह ने जाटों को आरक्षण दिलवाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। सही मायने में यह देश सभी का है। आरक्षण का आधार ही आर्थिक रूप से पिछड़ापन होना चाहिए था लेकिन संसद में कम पढ़े-लिखे और विभिन्य कोटे से सांसद बने लोगों को देश हित और समाज हित से कोई लेना-देना ही नहीं था। बीते कुछ दिन पहले लोजपा के सांसद चिराग पासवान ने यह खुलकर कहा था कि समर्थ और आर्थिक रूप से सबल दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहिए। सरकार ने जिस तरह से आर्थिक रूप से हासिये पर लुढ़के सवर्णों के लिए आरक्षण का यह अजीम फैसला लिया है, ठीक इसी तर्ज पर दलित-महादलित, पिछड़ा,ओबीसी और अल्पसंख्यक के लिए भी कैबिनेट में यह फैसला भी लेना चाहिए कि जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, सिर्फ उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिलेगा।

इस देश में ज्यादातर फैसले राजनीतिक लाभ के लिए लिए जाते रहे हैं। लेकिन पिछड़े सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान देश हित में लिया गया दूरदर्शी फैसला है। इस फैसले से समाज में प्रेम, सहकार, सहयोग और मिल्लत की एक नई परिपाटी का आगाज होगा। देश के विभिन्य हिस्सों में सवर्णों के सुलगते आंदोलन को अब यक ब यक ब्रेक लग जाएंगे। मोदी सरकार के इस फैसले का असर निसन्देह आगामी लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा। लेकिन इस फैसले को सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखना कतई जायज नहीं है। सवर्ण समाज अपने ही देश में आजतक खुद को ठगा महसूस कर रहे थे ।मोदी सरकार का आज का यह फैसला सवर्ण समाज के लिए संजीवनी का काम करेगा। वैसे अभी विभिन्य राजनीतिक सूरमाओं की बयानबाजी आनी बांकि है। आखिर में हम यह जरूर कहेंगे कि मोदी कैबिनेट का यह फैसला गेम चेंजर साबित होगा। अब नोटा-नोटा पर भी देश स्तर पर बड़ी बहस होगी।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप से सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

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