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समुद्र के बीचो-बीच मुंबई स्थित हाजी अली दरगाह का क्या है राज, जानिए

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समुद्र के बीचो-बीच मुंबई स्थित हाजी अली दरगाह का क्या है राज, जानिए

सिटी पोस्ट लाइव : कुछ जगह इतनी पाक होती है कि धर्म की दीवार को लांग कर भी लोग खिंचे चले आते हैं ऐसे ही स्थानों में से एक है मुंबई की हाजी अली दरगाह, हिंदू हो या मुस्लिम यहां पर सभी धर्मों के लोग इबादत करने आते हैं. समुद्र के बीचो-बीच यह कोई साधारण जगह नहीं बल्कि एक चमत्कारिक दरगाह है. दुनिया भर के लोग यहां अपनी मन्नतें लेकर सर झुकाने चलें आतें हैं। हाजी अली दरगाह अली शाह बुखारी की है। इस दरगाह के बारे में ये मान्यता है कि यहां पर हर किसी की मन्नत पूरी होती है.

अल्लाह सब का भला चाहता है और किसी को भी निराश नहीं लौटाता. मुंबई के वर्ली में स्थित इस दरगाह को 15वीं शताब्दी में बनवाया गया था. इसकी खास बात यह है कि इसे जमीन से लगभग 500 गज की दूरी पर समुद्र में बनाया गया है और यहां पर पहुंचने के लिए एक पुल को बनवाया गया. यह पुल दोनों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है और समुद्र में ज्वार आने पर इसे बंद कर दिया जाता है इस समय में दरगाह में आना जाना बंद हो जाता है. इस दरगाह की चमत्कारिक बात यह है कि ज्वार के वक्त दरगाह के अंदर एक बूंद भी पानी नहीं जाता, चढ़ते हुए समुद्र में यह नजारा बेहद खूबसूरत हो जाता है.

जानकारों का कहना है कि एक बार वह अपनी मां से अनुमति लेकर घर से पहली बार व्यापार के लिए निकले तब वह मुंबई में वर्ली के इसी इलाके में रहने लगे थे. वक्त के साथ उन्हें महसूस हुआ कि वह अपना आगे का जीवन धर्म प्रचार में बिताएँगे. अपने इस निर्णय की जानकारी उन्होंने अपनी मां को पत्र लिख कर दी और अपनी पूरी संपत्ति गरीबों में दान कर धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निकल पड़े, सब मोह माया त्याग कर हाजी अली सबसे पहले हज यात्रा पर गए लेकिन दुर्भाग्यवश इस यात्रा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई.

कहा जाता है कि उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनको दफनाया ना जाए बल्कि समुद्र में प्रवाह कर दिया जाए, उनके अनुयायियों ने ऐसा ही किया और उनका ताबूत अरब सागर से होता हुआ मुंबई की इसी जगह आकर एक चट्टान से टकराकर रुक गया. हैरान करने वाली बात यह है कि इतनी दूरी तय करने के दौरान ताबूत ना तो कहीं डूबा और ना ही कहीं रुका इसलिए जहां उनका ताबूत रुका उसी जगह पर उनकी याद में दरगाह बनाई गई. मान्यता है कि समुद्र आज भी हाजी अली शाह को अपने दायरे में रहकर सलाम करता है और इसकी एक बूंद भी दरगाह के अंदर नहीं जाती.

आशुतोष झा की रिपोर्ट

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