सिटी पोस्ट लाइव : झारखंड एक वन प्रदेश है। उसके नाम में ही उस राज्य का पूरा स्वरुप दिखायी देता हैं जैसे झारखंड यानी ‘झार’ या ‘झाड़’ जिसे हम वन भी कह सकते है और ‘खण्ड’ यानी टुकड़े से मिलकर बना हुआ यानि झारखंड। झारखंड पूर्वी भारत का राज्य है, जिसकी स्थापना 15 नवम्बर 2000 को बिहार राज्य को विभाजित करके की गयी। राज्य की राजधानी रांची।
झारखंड राज्य का इतिहास और जानकारी
जब 1765 में क्षेत्र ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आ गया तब उन्हें स्थानिक लोगो के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा आदिवासियों द्वारा अपने राज्य झारखंड को बचाने का अभियान 1771 से 1900 तक चला। 1771 में ब्रिटिश सरकार और जमींदारो के खिलाफ किये गये पहले आंदोलन का नेतृत्व राजमहल पहाड़ी के पहरिया लीडर, तिलका मांझी ने किया। वे अपने लोगो को अनैतिक जमींदारो के चंगुल से मुक्त करवाना चाहते थे और उन्हें अपने पूर्वजो की जमीन वापिस दिलवाना चाहते थे। इसके बाद ब्रिटिश सेना ने अपनी फ़ौज भेजकर तिलका मांझी के अभियान को कुचल दिया। इसके कुछ समय बाद ही 1779 में भूमिज समुदाय के लोहो ने मनभूम, पश्चिम बंगाल में ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाई। इसके बाद पलामू की चेरो जनजाति ने ब्रिटिश राज का विरोध किया। 1855 में ब्रिटिश कंपनी राज के समय ज़मींदारी प्रथा के खिलाफ संथल विद्रोह की घोषणा की गयी। 1800 AD में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया। इसके सात वर्षो बाद 1807 में बर्वे में ओराव ने श्रीनगर के समृद्ध जमींदार की हत्या कर दी। जल्द ही विद्रोह गुमला तक पहुच गया। आदिवासी अपने विद्रोह को पूर्व की तरफ ले जा रहे थे और धीरे-धीरे विद्रोह मुंडा जनजाति तक पहुच गया।
1811 और 1813 में वे भी विद्रोह में शामिल हो गये। सिंघभुम में होस भी तेजी से बढ़ रहे थे और 1820 में वे भी खुलकर विद्रोह करने लगे और दो सालो तक उन्होंने जमींदारो और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह जारी रखा। इसे 1820-1821 के उभरते हुए लकरा कोल का नाम दिया गया।
इसके बाद 1832 में कोल का विकास होने लगा। यह पहला आदिवासी विद्रोह था जिसने झारखंड में ब्रिटिश प्रशासन को काफी परेशान किया था। यह ज़मींदारो द्वारा आदिवासी लोगो की जमीन हड़पने की कोशिश का परिणाम था। इसके बाद सिधु और कान्हू नामक दो भाइयो के नेतृत्व में 1855 में सिंथल विद्रोह सामने आया। इसके बाद 1895 में बिरसा मुंडा विद्रोह सामने आया और 1900 तक चला। यह इतिहास के सबसे लंबे समय तक चलने वाले विद्रोहों में से एक था। राज्य के अंतिम विधानसभा चुनाव में आर.जे.डी. कांग्रेस पर निर्धारित थी, जिसकी शर्त के अनुसार आर.जे.डी बिहार पुनर्गठन बिल (झारखंड बिल) के समय कोई बाधा उत्पन्न नही करने वाली थी। अंततः आर.जे.डी और कांग्रेस दोनों की सहायता से बीजेपी ने संसद के मानसून सत्र में झारखंड बिल को पास कर दिया। इसके बाद स्वतंत्र झारखंड राज्य बनाने का मार्ग खाली हो गया।
झारखंड की संस्कृति
राज्य मुख्यतः आदिवासियों से घिरा हुआ है और इसीलिए राज्य की संस्कृति और जीवन शैलि में प्रकृति की महत्वपुर्ण भूमिका है। पारंपरिक रूप से लोग यहाँ पेड़ लेकर उसे आँगन में लगाते है। यहाँ के लोगो द्वारा मनाये जाने वाले रीती-रिवाजो में जितिया पूजा, कर्मा पूजा, सरहुल इत्यादि।
मकर संक्रांति के समय टुसू मेला उर्फ़ पौष मेले का आयोजन किया जाता है, जो वास्तव में फसल की कटाई का उत्सव होता है। लोगो का मानना होता है की यह रंग और उत्साह का महोत्सव होता है। सम्पूर्ण छोटानागपुर पठार क्षेत्र धूमधाम से करम महोत्सव मनाता है।
कुंवार – शुक्ल – पक्ष के बाद इसे 15 दिनों तक मनाते है। उत्सव की तयारी करने के लिए लोग नये कपडे खरीदते है, तेल, दलिया, सिन्दूर, इत्यादि लाते है और नये पकवान बनाते है। इस दिन घर के लडको और लडकियों को उनके परिवार वाले बड़े सम्मान से देखते है।
झारखंड की भाषा
हिंदी राज्य की प्रधान भाषा है। यहाँ के लोग दूसरी भाषा का भी उपयोग करते है। साधारणतः राज्य के जम्तारा, गोड्डा, साहिबगंज, दुमका, पाकुर, सराइकेला-खरसावाँ और सिंघभुम जिले में संताली भाषा का उपयोग किया जाता है। मंदारी भाषा का उपयोग रांची, खूंटी, लतेहर जिले, पश्चिम सिंघभुम, सिमडेगा और घुमला इत्यादि जगहों पर किया जाता है। सराइकेला-खरसावाँ जिले और पश्चिम सिंघभुम में हो भाषा का उपयोग किया जाता है।
झारखंड की मुख्य नदियाँ
सोन नदी, सुबर्णरेखा नदी, दक्षिण कोयल नदी, अजय नदी, दामोदर नदी, फाल्गु नदी, मयूराक्षी नदी।
झारखंड का पर्यटन
राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य जंगलो और पहाड़ी इलाको और वन्यजीव संग्रहालयो से समृद्ध है। जो लाखो यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करते है। साथ ही बहुत सी राष्ट्रिय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की वजह से राज्य व्यावसायिक पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। राज्य में देखने योग्य मुख्य जगहों में निम्न शामिल है :
- रांची पहाड़ी
- दासम फाल्स
- सूर्य मंदिर
- जमशेदपुर
- बैद्यनाथ धाम
- नेतार्हत
झारखंड का भोजन
राज्य का पारंपरिक भोजन, झारखंड क्षेत्र के विभिन्न इलाके का एक संयोजन है। यहां का भोजन सुपाच्य और हल्का होता है। प्राकृतिक चीजों से बना और अच्छे वातावरण के कारण, यहां आकर पर्यटकों को भोजन का स्वाद बहुत अच्छा लगता है।
यहां का मुख्य भोजन लिट्टी और चोखा है। यहां का मांसाहारी भोजन, मुंह में पानी ला देने वाला होता है जो विशेष तरीके से बनाया जाता है। इस राज्य के बनाएं जाने वाले भोजनों में ताजगी दिखती है जो मुगलकाल की समृद्धता से काफी मिलते – जुलते है।
यहां कई प्रकार की स्थानीय शराब या पेयपदार्थ भी मिलते है जिनमें हाडिंया, राइस बियर आदि शामिल है। हांडिया को मिट्टी के बर्तन में इकठ्ठा करके बनाया जाता है। यह आदिवासियों का मुख्य पेयपदार्थ होता है जिसे पुरूष और महिलाएं दोनो ही पीते है। यहां की अन्य शराब को माहू कहा जाता है जो महुआ पेड़ के फूलों और फलों से मिलकर बनती है।
भारत देश के हर राज्य की बात ही कुछ अलग हैं वैसेही झारखंड राज्य जंगलो और पहाड़ी इलाको और वन्यजीव से भरा हैं, जिन्हेँ जंगल और पहाड़ी घुमना पसंद हैं। उन्हें झारखंड जरुर जाना चाहियें।
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