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12 सूर्य धाम में प्रसिद्ध है बड़गांव का सूर्य मंदिर और तालाब, छठ व्रतधारी करते है सूर्योपासना   

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12 सूर्य धाम में प्रसिद्ध है बड़गांव का सूर्य मंदिर और तालाब, छठ व्रतधारी करते है सूर्योपासना

सिटी पोस्ट लाइव : नालंदा का बड़गांव सूर्य मंदिर वैदिक काल से सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहां छठ करने से सभी मनोकामना पूरी होती हैं. यही कारण है कि देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु यहां चैत एवं कार्तिक माह में चार दिनों तक प्रवास कर छठव्रत करते हैं. कहा जाता है सूर्य मंदिर तालाब में स्नान कर सूर्योपासना करने से कुष्ट रोगी रोग से मुक्त हो जाते है. भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा बड़गांव से ही शुरू हुई थी, जो आज पूरे भारत में लोक आस्था का पर्व बन गया है. मगध में छठ की महिमा इतनी उत्कर्ष पर थी कि युद्ध के लिए राजगीर आये भगवान कृष्ण भी बड़गांव पहुंच भगवान सूर्य की आराधना की थी. इसकी चर्चा सूर्य पुराण में है.

ऐसी मान्यता है कि महर्षि दुर्वाशा जब भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ विहार कर रहे थे. उसी दौरान अचानक किसी बात पर भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को हंसी आ गई. महर्षि दुर्वाशा ने उनकी हंसी को अपना उपहास समझ लिया और राजा साम्ब को कुष्ट होने का श्राप दे दिया. इस कथा का वर्णन पुराणों में भी है. इसके बाद श्रीकृष्ण ने राजा साम्ब को कुष्ट रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी. उनके आदेश पर राजा शाम्ब  ने 49 दिनों तक बड़गांव में रहकर सूर्य की उपासना और अर्घ्यदान भी किया. इससे उन्हें श्राप से मुक्ति मिली. उनका कुष्ष्ट रोग पूरी तरह से ठीक हो गया.

राजा साम्ब ने गड्ढे वाले स्थान की खुदाई कर के तालाब का निर्माण कराया. इसमें स्नान करके आज भी कुष्ट जैसे असाध्य रोग से लोग मुक्ति पाते हैं. आज भी यहां कुष्ठ से पीड़ित लोग आते हैं और तालाब में स्नान कर सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करने पर उन्हें रोग से निजात मिलती है. यहां सालों भर हर रविवार को हजारों श्रद्धालु इस तालाब में स्नान कर असाध्य रोगों से मुक्ति पाते हैं. लेकिन कार्तिक एवं चैत माह में लाखों श्रद्धालु यहां आकर विधि विधान से छठव्रत करते हैंं. अगहन और माघ माह में भी रविवार को यहां भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.

नालंदा से प्रणय राज की रिपोर्ट

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