CITY POST LIVE – शहर की संजय नगर कॉलोनी में श्याम महिला मंडल और माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने भुवनेश्वरी माता मंदिर में 16 दिवसीय गणगौर पूजन का आयोजन किया। महिलाओं की ओर से गुडला की पंरम्परा को भी निभाया। गणगौर पूजन करने वाली महिलाओं और लड़कियों ने गणगौर के गीत गाए। महिला मंडल की ओर से मलकेश्वर मठ से मंदिर परिसर तक गणगौर की पूर्व संध्या पर लोटिया कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। महिला मंडल की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में कई महिलाएं शामिल हुई।
अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी
गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है। गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ माता पार्वती। शास्त्रों के अनुसार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी। उसी तप के प्रभाव से भगवान शिव को उन्होंने पति रूप में पाया था। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने समस्त स्त्री जाति को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया था। मान्यता है कि तभी से इस व्रत की शुरुआत हुई थी।
गणगौर होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक यानी 17 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा (मां पार्वती) होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद भगवान शिव (इसर जी) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। फिर चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। होली के दूसरे दिन यानी कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानी की गण एवं माता पार्वती यानी की गौर बनाकर प्रतिदिन पूजन करती हैं।
इन 17 दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठ कर दूब और फूल चुन कर लाती हैं। दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। फिर चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं। दूसरे दिन यानी कि चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। पूजा स्थल गणगौर का पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल माना जाता है। विसर्जन के दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और दोपहर तक व्रत रखती हैं।
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