किस कंपनी के चक्कर में डूबा पटना, पढ़िए इनसाइड स्टोरी
सिटी पोस्ट लाइव : पटना शहर 10 दिनों तक जल जमाव में डूबा रहा.राज्य आम लोगों के साथ साथ सरकार की इस वजह से बहुत फजीहत हुई.लेकिन नगर निगम जो शहर की नालों की साफ़ सफाई का काम देखता है, वो सुधारने का नाम नहीं ले रहा.नगर निगम ने एकबार फिर से उसी कंपनी को काम दे दिया है जिसे पटना को जल जमाव से मुक्ति का कॉन्ट्रैक्ट वर्ष 2009 में दिया गया था. सिंगापुर की इस कंपनी मैनहर्ट प्राइवेट लिमिटेड को DPR तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया था. इस काम को तीन वर्ष में पूरा किया जाना था, लेकिन वो अब तक पूरा नहीं हो पाया है.
वर्ष 2012 में कांट्रेक्ट (अनुबंध) खत्म होने के बाद भी जब DPR तैयार नहीं हुआ तो कंपनी को एक साल का एक्सटेंशन दे दिया गया. 2012 तक भी जब कंपनी कुछ नहीं कर पाई तो यह काम बुडको (BUDCO) को दिया गया.अभी पटना के डूबने तक बुडको ही पटना के जल निकासी की व्यवस्था का मॉनिटरिंग कर रहा था. नगर विकास विभाग की तरफ से जब कंपनी पर दबाव बनाया गया तो जैसे-तैसे रिपोर्ट बनाकर सौंप दी गई. खास बात है कि ये रिपोर्ट भी अधूरी थी क्योंकि इसमें पूरा पटना नहीं बल्कि राजधानी के कुछ इलाके ही शामिल किए गए थे. जाहिर है इसको लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
नगर विकास विभाग और बुडको के कारनामे यहीं खत्म नहीं होते. मैनहट कंपनी का पटना में फिलहाल न तो कोई कार्यालय है और न ही इसमें काम करने वाला कोई व्यक्ति पटना में बैठता है. इतना ही नहीं ये मैनहर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पड़ोसी राज्य झारखंड में भी ब्लैक लिस्टेड है. यानी जो कंपनी दस साल में एक डीपीआर नहीं तैयार कर सकी, जो पडोसी राज्य में पहले से ब्लैकलिस्टेड है,उस कंपनी को काम देने में बिहार सरकार के अधिकारी बेताब हैं. कायदे इस कंपनी को बिहार में भी ब्लैकलिस्टेड किया जाना चाहिए लेकिन उसे फिर से वहीँ काम दे दिया गया, जिसे वो दस साल में नहीं कर पाई.अन नगर विकास मंत्री मामले की जांच की बात कर रहे हैं.
गौरतलब है कि पटना शहर दो दिनों की बारिश में ही डूब गया. दस दिनों तक डूबा रहा. जल जमाव ने सरकार के दावे और प्रशासन के इंतजामों की पोल खोल कर रख दी.लेकिन इतना सबकुछ होने के वावजूद नगर विकास विभाग सुधरने का नाम नहीं ले रहा. नगर विकास विभाग ने उसी कंपनी को फिर से काम दे दिया है जो पिछले 10 वर्षों में भी पटना के जल निकासी का डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट यानी (DPR) तैयार नहीं कर सकी.यहाँ तक की पटना हाईकोर्ट ने भी 2015 में इस कंपनी के आधे-अधूरे डेटा को उपयोग में नहीं लाने का निर्देश दिया था लेकिन फिर उसी डेटा से सरकार ने काम चलाया. एकरारनामे के अनुसार समय पर काम पूरा नहीं होने पर साढ़े सात प्रतिशत की दर से जुर्माना वसूलने की शर्त थी, पर आज तक जुर्माना भी नहीं वसूला गया.
कंपनी की साख देखिये वार्ड के पार्षद से लेकर जनप्रतिनिधि तक कई बार इस कंपनी को लेकर सवाल उठा चुके हैं लेकिन अधिकारी सभी बातों से अपने को अनजान बता रहे हैं. हद तो अब हो गई है जब नकारा साबित हो चुकी इस कंपनी को फिर से एसटीपी को मॉनिटरिंग करने का जिम्मा दे दिया गया है.
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