सिटीपोस्टलाईव विशेष.
कोंच-कोंच कर पैसा भर रखे हैं IPS विवेक कुमार . लाकर्स से अब निकल रहा है विदेशी डालर .आईपीएस के आवास से मिली विदेशी मुद्रा,4.35 करोड़ की प्रॉपर्टी का खुलासा .नीतीश कुमार के शराबबंदी को फेल करना चाहते थे विवेक कुमार .गिरफ्तार नहीं होगा खाकी वर्दीवाला गुनहगार.
इस तरह के हैडलाइन के साथ खबरें चलीं मिडिया में .ऐसा लगा कि देश का सबसे भ्रष्ट पुलिसवाला विवेक कुमार ही है. लेकिन पांच दिनों की छापेमारी के बाद जब ऍफ़आईआर दर्ज हुआ तो सब टांय-टांय फिस्स हो गया . एफआईआर को ठीक से पढ़ने और समझने की शायद किसी ने कोशिश नहीं की या फिर सबकुछ जानकार भी कुछ लोगों ने चुप्पी साध ली .सिटीपोस्ट विवेक कुमार के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर एक विशेष रिपोर्ट पेश कर रहा है ,जिसे जानकर आप दांतों तले उंगुली नहीं दबायेगें बल्कि दांतों से अपनी उंगुली चबा जायेगें. चप -चप चलनेवाले मुंह तोड़ -फोड़ डालेगें.
एफआईआर का सार —–
सिटीपोस्टलाईव मुजफ्फरपुर के पूर्व एसएसपी विवेक कुमार के घर पर विशेष निगरानी विभाग की छापेमारी पांच दिनों तक चली. इस छापेमारी के दौरान कई आपतिजनक चीजों के साथ-साथ आय से अधिक सम्पति अर्जित करने का मामला दर्ज हुआ है .निगरानी विभाग के एफआईआर के अनुसार विवेक कुमार और उनके रिश्तेदारों की कुल 4 करोड़ 35 लाख की सम्पति का खुलासा हुआ है.जिसमे लगभग 75 लाख का बैंक बैलेंस और 1 करोड़ 27 लाख का बैंक एफडी ,27 लाख का आभूषण ,4.40 लाख रुपये के किसान विकास पत्र भी शामिल है.
सबसे खास बात – ये सारी सम्पति ( सारा पैसा-एफडी और बैंक बैलेंस ) केवल विवेक कुमार के नाम पर नहीं बल्कि उनकी पत्नी और उनके दूसरे करीबी रिश्तेदारों ( सास -ससुर -भाई -भाभी ) के नाम से है.विवेक कुमार के नाम से मुजफ्फरपुर ,एसबीआई के सेविंग अकाउंट में 27 लाख 59 हजार रुपये और पीपीएफ अकाउंट में 9 लाख 70 हजार रुपये है. पत्नी निधी कर्णवाल के मुज़फरनगर के एसबीआई के पीपीएफ अकाउंट में 1 लाख 57 हजार 883 रुपये . निधि कर्णवाल और उनकी रिश्तेदार उमा रानी कर्णवाल के जॉइंट सेविंग अकाउंट में 13 हजार 133 रुपये है.
निलंबित एसएसपी विवेक कुमार और उनकी पत्नी कर्णवाल के मुज़फ्फरनगर के एसबीआई बैंक में एफडी का विवरण इस प्रकार है. नीधी कर्णवाल के नाम से 22 लाख 50 हजार का एफडी है. गौरतलब है कि इसमे से 20 लाख रुपये नोट्बंदी के पांच दिन पूर्व 3 नवम्बर 2016 को जमा किये गए हैं.नीधी कर्णवाल और उनकी रिश्तेदार उमा कर्णवाल के नाम से 2 लाख 90 हजार का एफडी है. पूर्व एसएसपी के नाम से 8 लाख रुपये का भू-खंड और पत्नी के नाम से 15 लाख का एक भू-खंड उत्तर-प्रदेश में है. दोनों के नाम से 27 लाख के आभूषण हैं .गौरतलब है कि भूखंड- आभूषण और एफडी पकडे नहीं गए हैं बल्कि उनके द्वारा अपनी घोषित सम्पति में दर्ज हैं . नतीजा जाहिर है.खोदा पहाड़ निकली चुहिया .यानी एसएसपी और उनकी पत्नी के नाम से केवल 64 लाख 40 हजार रुपये,23 लाख के भू-खंड और 27 लाख के आभूषण ही हैं .खास बात ये कि ये सभी जमीन के अन्दर से खोदकर नहीं निकाले गए हैं बल्कि उनके बैंक अकाउंट और बैंक लाकर्स में थे .इनमे से ज्यादातर का विवरण सरकार को सौंपी गई उनकी सम्पति के ब्यौरे में पहले से दर्ज हैं.हुई न बात “खोदा पहाड़ निकली चुहिया.
ये दीगर बात है कि जांच टीम का दावा है कि उनके सारे रिश्तेदारों के नाम जो भी सम्पति है वह निलंबित एसएसपी की अवैध कमाई है.जांच टीम का कहना है कि विवेक कुमार ने अपनी अवैध कमाई के पैसे को अपने और अपनी पत्नी के अकाउंट तक लाने के लिए अपने रिश्तेदारों के बैंक अकाउंट का गलत इस्तेमाल किया.यानी दो नंबर के पैसे को अपने रिश्तेदारों को दिया और उनके रिश्तेदारों ने उसे अपने बैंक अकाउंट में डालकर उसे वापस विवेक और उनकी पत्नी के बैंक अकाउंट में वापस कर दिए .जी हाँ “काइट्स फ्लाइंग ट्रांजेक्शन ” का सहारा लिया गया .पुरे एफआईआर का लब्बो-लुआब ये है कि विवेक कुमार की ज्ञात स्त्रोत से अर्जित आय केवल 80 लाख है जिसमे से उन्होंने 46 लाख से ज्यादा खर्च किये .यानी कुल बचत केवल लगभग 33 लाख होनी चाहिए थी लेकिन जांच में मिली उनकी सम्पति की कीमत लगभग एक करोड़ रुपये से ज्यादा है .यानी 72 लाख से ज्यादा सम्पति अज्ञात स्त्रोत से है जिसे आय से अधिक सम्पति कहा जाता है .
लेकिन सबसे बड़ा सवाल -जांच टीम ये कैसे साबित कर पायेगी कि विवेक कुमार के सारे रिश्तेदारों के बैंक अकाउंट में जो पैसे जमा हुए वो विवेक कुमार के ही थे ? दूसरा सवाल रिश्तेदारों के पास कहाँ से इतना पैसा आया, इसका जबाब विवेक कुमार देंगें या फिर विवेक कुमार के रिश्तेदार देंगें ? मिडिया में छापेमारी के दौरान लगातार खबरें चल रही थीं कि एसएसपी के और उनके रिश्तेदारों के बैंक लाकर्स में ठूंस ठूंस कर नोट भरे गए थे ,ये नोट कहाँ हैं ? अगर ये खबर गलत थी तो जांच टीम ने इसका खंडन क्यों नहीं किया ?
निलंबित एसएसपी आय से ज्यादा सम्पति अर्जित करने के दोषी हो सकते हैं .लेकिन इस वजह से उनके खिलाफ बढ़ा चढ़ाकर झूठी खबरें फ़ैलाने की छूट किसी को भला कैसे मिल सकती है ? क्यां ये जांच का विषय नहीं होना चाहिए कि पांच दिनों तक छापेमारी के दौरान किसके द्वारा मिडिया को गलत फीडबैक दिया जा रहा था ? ये फीडबैक तो जांच टीम से जुड़ा कोई अधिकारी ही मिडिया को दे रहा होगा . उसका मकसद क्या था ? क्या इसका मकसद पांच दिनों तक चली छापेमारी को जस्टिफाई करना था ?
सिटीपोस्ट की तरफ से भी खबर के प्रसारण में कुछ भूल हुई है और इसके लिए सिटीपोस्टलाईव टीम को अपने पाठकों से क्षमा मांगने में कोई संकोच नहीं .लेकिन सिटीपोस्टलाईव की नजर में जब इस छापेमारी का सच अब सामने आ गया है तो इसे जनता तक पहुंचाने में भी वह उतना ही जोर लगाएगी जितना जोर उसने छापेमारी की खबर को जनता तक पहुँचाने के लिए लगाईं थी.
डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति सिटीपोस्टलाईव उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार सिटीपोस्टलाईव के नहीं हैं, तथा सिटीपोस्टलाईव उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
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