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रेलवे टेंडर घोटाले में एक अधिकारी को बचाने के चक्कर में अबतक सेफ है लालू फैमिली

रेल अधिकारी के खिलाफ मुक़दमा दायर करने की अनुमति नहीं मिलाने से रेलवे टेंडर घोटाले में अब तक शुरू नहीं हुआ मुकदमा, इसी मुद्दे पर नीतीश ने छोड़ा था लालू का साथ

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सिटी पोस्ट लाइव : IRCTC के अधिकारी बी के अग्रवाल को आखिर रेलवे मंत्रालय क्यों बचाना चाहता है ? क्यों रेलवे की तरफ से उनके खिलाफ मामला दर्ज करने की अनुमति सीबीआई को नहीं दी जा रही है. सीबीआई की चार्जशीट में IRCTC के अधिकारी बी के अग्रवाल पर रेलवे के होटल्स के टेंडर में नियमों को बदलने और मामले में कोताही बरतने के गंभीर आरोप हैं. सीबीआई के मुताबिक घोटाले में तब के IRCTC के अधिकारी बी के अग्रवाल की बड़ी भूमिका रही. सीबीआई इनके खिलाफ केस चलाना चाहती है. लेकिन रेलवे ने अभी तक इसकी मंज़ूरी नहीं दी है , जिसकी वजह से आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पा रही है.

बी के अग्रवाल उस वक्त IRCTC के जीजीएम टूरिज्म थे.फिरहाल वे रेलवे बोर्ड के एडिशनल मेंबर हैं. उनके ऊपर  नियमों को बदल कर सुजाता होटल्स को रेलवे के दो बड़े होटल्स के टेंडर को दिए जाने का आरोप है. टेंडर में बदलाव क्यों किए गए इसके लिए कोई तर्क संगत वजह नहीं बतायी गई. टेंडर खोलने की प्रक्रिया में कोताही बरती, बिना IRCTC के किसी अधिकारी को नामित किए टेंडर खुलवाया गया.  सिर्फ मौखिक आदेश पर अपने अधीनस्थ अधिकारी से टेंडर खुलवाया.

सीबीआई ने अग्रवाल के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए रेलवे से अनुमति देने के लिए  साल 14 अप्रैल को रेलवे बोर्ड के प्रिंसपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर विजिलेंस को पत्र लिखा.इस पत्र के जरिये सीबीआई ने IRCTC के तत्कालीन ग्रुप जनरल मैनेजर और मौजूदा रेलवे बोर्ड के एडिशनल मेंबर के तौर पर काम कर रहे बी के अग्रवाल के खिलाफ केस चलाने की अनुमति मांगी. तीन महीने गुजर गए लेकिन आजतक सीबीआई को अनुमति नहीं मिली है . इसका परिणाम ये हुआ है कि  एक अधिकारी की वजह से ना तो अदालत मामले में संज्ञान ले रही है और ना ही लालू यादव, राबड़ी और तेजस्वी के खिलाफ चार्जशीट होने के बावजूद केस शुरू हो पा रहा है. सूत्रों के अनुसार अगर  रेलवे ने अनुमति दे दी होती तो अबतक आरोप तय हो गए होते और आरोपी गिरफ्तार हो चुके होते. गौरतलब है कि इस मामले के प्रमुख आरोपी पूर्व रेलमंत्री आलू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव है. यानी इस चर्चित मामले में अगर अबतक केस नहीं हो पाया है और तेजस्वी यादव समेत तमाम आरोपी जो अबतक जेल में होते बाहर हैं.

दरअसल, 2005 में जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे, झारखंड के रांची और ओडिशा के पुरी में रेलवे के दो होटलों को मेसर्स सुजाता होटल प्राइवेट लि. को लीज पर दिया गया. आरोप है कि होटल को लीज पर देने के लिए टेंडर के नियमों में ढील दी गयी. इस डील के बदले लालू यादव के परिवार की डिलाइट मार्केटिंग कंपनी को पटना में 3 एकड़ जमीन सुजाता होटल्स के मालिक ने दिया. ये जमीन चाणक्य होटल के डायरेक्टर विनय कोचर ने 1 करोड़ 47 लाख में बेची जबकि बाज़ार में उस वक्त इस जमीन की कीमत करीब दो करोड़ रुपए थी.

डिलाइट मार्केटिंग कंपनी आरजेडी सांसद प्रेम चंद गुप्ता की पत्नी सरला गुप्ता के नाम पर थी. सीबीआई का आरोप है कि ये कंपनी लालू परिवार की बेनामी कंपनी थी. 2014 में डिलाइट मार्केटिंग कंपनी के शेयर लारा प्रोजेक्ट के नाम ट्रांसफर कर दिए गए. लारा प्रोजेक्ट कंपनी में लालू की पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी डायरेक्टर हैं. जब सारे शेयर डिलाइट मार्केटिंग कंपनी से लारा प्रोजेक्ट में ट्रांसफर हो गए तब इस जमीन की कीमत करीब 32 करोड़ रूपए हो गयी. यहां पर जो बात सबसे ज्यादा हैरान करनेवाली  ये है कि 32 करोड़ की इस ज़मीन को लालू के परिवार की कंपनी लारा प्रोजेक्ट को सिर्फ 65 लाख रूपए लेकर ट्रांसफर कर दिया गया.

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