सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की राजधानी पटना के आसरा होम्स की दो महिलाओं की मौत का पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गया है. पहली महिला जिसकी लाश पहले ही जल चुकी थी ,उसके रिपोर्ट में मौत की वजह बीमारी बताया गया है जबकि आज शाम दूसरी महिला के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह नहीं बताया गया है.जाहिर ये दोनों मौतें संदेह के घेरे में आई गई हैं. जोनल आईजी के निर्देश पर प्रिजर्व किए गए बिसरे को जांच के लिए एफएसएल भेजा जाएगा.
सोमवार की शाम जोनल आईजी नैय्यर हसनैन खान ने इस पूरे केस का रिव्यू किया .इस रिव्यू मीटिंग में एसएसपी मनु महाराज, सिटी एसपी सेंट्रल अमरकेश दारपीनेनी, डीएसपी लॉ एंड ऑर्डर और केस के इंवेस्टिगेशन ऑफिसर शामिल हुए. जोनल आईजी ने केस के सुपरविजन का जिम्मा सिटी एसपी सेंट्रल को सौंपा है. अब तक इस केस की जांच का काम राजीव नगर थाने के सब इंस्पेक्टर आरएन शर्मा से छीन कर जोनल आईजी ने डुमरा सर्किल के इंस्पेक्टर ललन कुमार को दे दिया गया है. जोनल आईजी ने चिरंतन और मनीषा दयाल को 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लेकर पूछताछ करने का निर्देश केस के आईओ को दिया है.
आईजी ने आरोपी डॉक्टर अंशुमन प्रियदर्शी और एएनएम खुशबू की गिरफ्तारी पर तत्काल रोक लगा दी है. दरअसल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) अपने लेवल डॉक्टर और एएनम पर लगे आरोपों की जांच करेगा उसके बाद पुलिस आगे की कारवाई करेगी. जिस तरह से आसरा होम के संचालिका मनीषा दयाल और एवीएन सचिव चिरंतन के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया है और मजिस्ट्रेट ने अपनी रिपोर्ट दी है इनका बचना मुश्किल है .कानून के जानकारों के अनुसार अगर ये मौतें बीमारी की वजह से भी हुई हैं तो भी उनके खिलाफ अपराधिक नेग्लिजेंस का मामला बनेगा यानी कम से कम सात सात की सजा होगी.
इस मामले की जांच कर रही पटना जिला प्रशासन की मजिस्ट्रेट नीलू पाल की रिपोर्ट के अनुसार महिला और लड़की की मौत समुचित इलाज के अभाव में हुई है. संस्था के संचालक चिरंतन कुमार, ट्रेजर मनीषा दयाल और अन्य शामिल व्यक्तियों ने मिलकर फर्जीवाड़ा करते हुए सरकारी रुपयों का बंदरबांट किया है. एफआईआर में सचिव चिरतंन कुमार, ट्रेजरर मनीषा दयाल, डॉक्टर अंशुमन प्रियदर्शी और एएनएम खुशबू को नामजद किया गया है.एफआईआर के अनुसार हर दिन चिरंतन कुमार और मनीषा दयाल ने दोनों बीमार महिलाओं के ईलाज में अपराधिक लापरवाही बरती है. दरअसल, आसरा होम्स में रह रही मानसिक रूप से कमजोर लड़कियों और महिलाओं की मेडिकल जांच के हर दिन की निगरानी का जिम्मा इन्हीं दोनों के पास था. लेकिन, इन दोनों ने लापरवाही बरती और अपनी जिम्मेवारी नहीं निभाई. अगर इनकी नजर हर दिन की मेडिकल जांच और इलाज कराने पर होती तो महिला और लड़की की मौत नहीं हुई होती. जाहिर है दोनों महिलाओं की मौत के लिए मजिस्ट्रेट ने ईन दोनों को दोषी ठहरा दिया है.
मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के अनुसार ये संस्था बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग की ओर से दिए गए सरकारी खर्च पर चल रही है. सरकारी रुपए के खर्च का सही रिकॉर्ड भी नहीं मिला है. सरकारी रिकॉर्ड में मिली गड़बड़ी, फर्जीवाड़ा कर रुपयों के बंदरबांट किए जाने पर अपनी मुहर लगा रही है.
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