मन्नू की हत्या में 13 अपराधी थे शामिल, पुलिस अधिकारियों की कार्यशैली शक के दायरे में
मन्नू की हत्या में 13 अपराधी थे शामिल, पुलिस अधिकारियों की कार्यशैली शक के दायरे में
सिटी पोस्ट लाइव, एक्सक्लूसिव : बीते 18 जून को सत्यम सिंह उर्फ मन्नू सिंह की हत्या, दिन के उजाले में बेहद भीड़-भाड़ वाले इलाके सहरसा के सदर थाना के कोसी चौक के समीप, इलाके के युवा अपराधियों ने गोली मारकर कर दी। हत्या के समय आसपास की लगभग सारी दुकानें खुली हुई थीं और नाले निर्माण का काम भी हो रहा था। लेकिन किसी ने इस हत्या जैसी घटना को रोकने के लिए प्रतिकार नहीं किया। हत्या के बाद शहर में कोहराम मच गया और हत्या का पुरजोर विरोध हुआ। लेकिन यह विरोध वक्ती था, जो लाश के पोस्टमार्टम होते ही थम गया। कहते हैं कि गरजने वाले बादल कभी बरसते नहीं हैं, इस मामले में यह कहावत, सौ फीसदी सच साबित हुई। हत्या की शाम थाना चौक पर गदर मचाने वाले लोग, हत्या के खिलाफ सुनामी लाने की हुंकार भर रहे थे। इस घटना में सबसे अहम बात यह थी कि जब इस हत्या में शामिल मुख्य अपराधी चिन्हित थे, तो बवाल काटने की कोई जरूरत ही नहीं थी। यह वक्त धैर्य से काम लेने का था और पुलिस अधिकारियों के मनोबल को बढ़ाने वाला था।लेकिन कुछ सड़ेले, टपोरी और छुटभैये युवकों ने इस मामले को जातीय और धार्मिक बनाने की असफल कोशिश की, जो कि अति निंदनीय है। घटना के बाबत हमने जो जानकारी इकट्ठी की है, उसके मुताबिक मृतक मन्नू सिंह का छोटा भाई गोलू सिंह कम उम्र में ही ना केवल नशे का आदी था बल्कि छिनतई जैसी घटनाओं को लगातार अंजाम देता था। जिन लोगों ने हत्या की वारदात को अंजाम दिया है, पहले उनलोगों से मृतक पक्ष का काफी याराना और दोस्ताना था।मोबाइल लूटपाट और अन्य छिनतई की घटना की वजह से दोनों पक्षों के बीच हत्या से 10 दिन पूर्व से अदावत थी। हत्या से पूर्व दोनों पक्षों के बीच कई बार मारपीट भी हो चुकी थी। मृतक मन्नू सिंह स्वभाव से मिलनसार और मृदुभाषी था। उसका सदर थाना में उठना-बैठना था और शहर के सभी युवा अपराधियों से उसकी पहचान भी थी। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक समय-समय पर वह पुलिस के लिए मुखबिर का काम भी करता था। हत्या से पूर्व मृतक ने कई बड़े विवाद को अपनी सूझ-बुझ से ना केवल सलटाया था बल्कि शहर को जलने से भी बचाया था।
इस हत्या के चश्मदीद मृतक के छोटे भाई गोलू सिंह के बयान पर पुलिस ने 6 युवा अपराधियों को नामजद आरोपी बनाया था। जिसमें से तीन की गिरफ्तारी पुलिस ने घटना के दिन ही कर ली थी जबकि 2 अपराधी रजनीश यादव और बाबू शर्मा ने कोर्ट में सरेंडर किया है। बाबू शर्मा पर गोली चलाने का आरोप है। इस घटना का नामजद अभियुक्त और मुख्य प्लानर और मास्टर माइंड बबन शर्मा अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। वह कहाँ है और क्या कर रहा है ?पुलिस को इससे कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस उसकी गिरफ्तारी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। इस हत्याकांड के अनुसंधान की जिम्मेवारी एसआई कमलेश कुमार को सौंपी गई। सीसीटीवी फुटेज और फोरेंसिक जांच सहित अन्य वैज्ञानिक जांच के आधार पर 7 नए अभियुक्त को निकाला गया है जिसका जिक्र मृतक के भाई ने नहीं किया था।
ये नए अपराधी, हत्या के समय काफी सक्रिय थे। पुलिस ने इन अपराधियों को भी अब नामजद बना लिया है। नए नामजद किये गए सभी अपराधी कोसी चौक से सटे इलाके के ही हैं। ये अपराधी हैं सूरज सादा,राकेश दास,राहुल दास,मुकेश दास, सूरज सादा नंबर दो,रौशन सादा और उदय सादा।पुलिस इनकी भी गिरफ्तारी करेगी। हद तो यह है कि जब सबकुछ साफ है,तो पुलिस कारवाई में देरी क्यों कर रही है? ऐसे में यह शंका पैदा होना लाजिमी है कि कहीं हत्यारे के रिश्तेदार कोई मोटा सौदा तो नहीं कर रहे हैं ? कहीं कोई बड़ी मजबूत पैरवी का जुगाड़ तो नहीं हो रहा है?
एसपी की नादानी
सहरसा पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार ने इस हत्याकांड के अनुसंधानकर्ता एसआई कमलेश कुमार को बसनही थाने का थानेदार बना दिया है। अभीतक जिस तरीके से एसआई कमलेश कुमार ने इस हत्याकांड में अनुसंधानन कर विभिन्य साक्ष्य जुटाए थे, उसपर अब कार्रवाई होनी थी। लेकिन अचानक उनके तबादले से अब इस हत्याकांड मामले में कोई नए अनुसंधनकर्ता बनाये जाएंगे। जाहिर तौर पर इससे जांच प्रभावित होगी और कारवाई की गति मन्थर होगी। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि रजनीश यादव और मुख्य आरोपी बाबू शर्मा जिसने कोर्ट में सरेंडर किया,उन दोनों को पुलिस रिमांड पर लेकर पूछताछ क्यों नहीं कर रही है? नए अपराधियों की धड़-पकड़ से ईतर बबन शर्मा के खिलाफ कुर्की-जब्ती का आदेश माननीय न्यायालय से क्यों नहीं लिया जा रहा है? हत्या की शाम गदर मचाने वाले लोग इस हत्याकांड के खुलासे के लिए अब क्यों नहीं सामने आ रहे हैं? बस खेल एक रील का ही था। सीसीटीवी फुटेज, फोरेंसिक और वैज्ञानिक जांच के आधार पर 7 युवा अपराधियों के नाम पुलिस ने अलग से जोड़े हैं। ये नए 7 अपराधी हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जो बबन शर्मा पहले भी हत्या के एक मामले में जेल जा चुका है, वह अभीतक पुलिस के हत्थे क्यों नहीं चढ़ा है? हम खुलकर कहते हैं कि इस हत्याकांड के खुलासे को लेकर पुलिस के बड़े अधिकारी तनिक भी गम्भीर नहीं हैं। उनके लिए महज यह एक घटना भर है, जिसकी तफ्तीश हौले-हौले चल रही है। मृतक के परिजन को इस मामले में मानवाधिकार की शरण में भी जाना चाहिए और पूरे साक्ष्यों को समेटकर उन्हें सौंपना चाहिए। हद तो इस बात की भी है कि घटना के इतने दिनों बाद भी पुलिस की डायरी के चंद पन्ने भी नहीं लिखे गए हैं।
पुलिस अधिकारियों को सलाह
पहले इस मामले में एसडीपीओ सदर प्रभाकर तिवारी थोड़ा गम्भीर और सक्रिय थे लेकिन अब वे भी इस मामले को भूलने की राह पर हैं।इस मामले में अनुसंधान की जिम्मेवारी खुद सदर एसएचओ आर.के.सिंह को उठानी चाहिए थी। सदर एसडीपीओ, जांच अधिकारी, एसपी सहित डीआईजी को भी इस मामले में पारदर्शी और तटस्थ होकर चट्टान की तरह शख्त होना चाहिए लेकिन किन्हीं की मंसा साफ और तेवर तल्ख नहीं दिख रहे हैं। आखिर किस बूते और दम से हम यह स्वीकार करें कि मृतक मन्नू के साथ सही तरीके से न्याय हो सकेगा?आखिर वजह जो भी हो, पुलिस अधिकारी इस मामले को कतई भी गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। इस मामले में पुलिस के खिलाफ समवेत और लामबंद होकर बड़े आंदोलन होने चाहिए। आखिर अधिकारी मोटा वेतन किस लिए उठा रहे हैं? जनता की हितों की रक्षा करना उनका धर्म और कर्तव्य है। वे पीड़ित जनता पर कोई उपकार नहीं करते हैं ।बेरंग हो चुकी खाकी को अब उसमें हनक और चमक लानी होगी।
सहरसा से संकेत सिंह की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
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