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शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट से नीतीश को बड़ा झटका, सरकार की याचिका खारिज

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सिटी पोस्ट लाइव : एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर दिनरात अभियान चला रहे हैं वहीँ सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तगड़ा झटका दे दिया है. कोर्ट ने बिहार में शराबंदी के केस में आरोपियों की जमानत को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है.बिहार में शराबबंदी से जुड़े मामले में नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट का ये बड़ा झटका माना जा रहा है. उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार को झटका देते हुए मंगलवार को राज्य के कड़े शराब कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती देने वाली अपीलों के अपने बैच को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पटना हाईकोर्ट के 14 -15 जज पहले से ही ऐसे मामलों की सुनवाई कर रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिहार सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि आरोपी से जब्त की गई शराब की मात्रा को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत जमानत आदेश पारित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएं. CJI एन वी रमना ने कहा कि ‘आप जानते हैं कि इस कानून (बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016) ने पटना उच्च न्यायालय के कामकाज में कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है और सभी अदालतें शराब की जमानत याचिकों से भरी हुई हैं.’

CJI एन वी रमना ने अग्रिम और नियमित मामलों के अनुदान के खिलाफ राज्य सरकार की 40 अपीलों को खारिज कर दिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘मुझे बताया गया है कि पटना हाईकोर्ट के 14-15 न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और कोई अन्य मामला नहीं उठाया जा पा रहा है. सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष कुमार ने कहा कि शिकायत यह है कि उच्च न्यायालय ने कानून के गंभीर उल्लंघन में शामिल आरोपियों को बिना कारण बताए जमानत दे दी है, जबकि कानून में 10 साल की जेल का प्रावधान है. इसके तहत गंभीर अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा का भी प्रावधान है. कुमार ने कहा कि ‘हमारी समस्या यह है कि शराब के मामलों में उच्च न्यायालय की ओर से लगातार जेल में बिताए गए कुछ समय के आधार पर जमानत के आदेश पारित किए जा रहे हैं.’

इस तर्क पर CJI एनवी रमना ने टिप्पणी की कि ‘तो आपके हिसाब से हमें सिर्फ इसलिए जमानत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि आपने कानून बना दिया है.’ पीठ ने तब हत्या पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि जमानत और कभी-कभी, इन मामलों में अदालतों की ओर से अग्रिम जमानत भी दी जाती है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने बिहार में शराबबंदी कानून का उदाहरण अदूरदर्शिता के तौर पर दिया था. कुछ दिन पहले ही चीफ जस्टिस ने कहा था कि ‘देश की अदालतों में मुकदमों का अंबार लग जाता है. इसका कारण ऐसे कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी होती है. उदाहरण के लिए बिहार मद्यनिषेध निषेध अधिनियम 2016 की शुरुआत के चलते हाई कोर्ट में जमानत के आवेदनों की भरमार हो गई. इसकी वजह से एक साधारण जमानत अर्जी के निपटारे में एक साल का समय लग जाता है. बिना ठोस विचार के लागू कानून मुकदमेबाजी की ओर ले जाते हैं.’

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