सिटी पोस्ट लाइव: मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण काण्ड को लेकर पुरे देश भर में हंगामा मचा हुआ है.लोग आरोपियों की बात कर रहे हैं, बच्चियों के यौन शोषण की बात कर रहे हैं.लेकिन उस सख्श की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा जिसकी वजह से सरकारी धन से नौकरशाही और नेताओं की मिलीभगत से चल रहा यह सेक्स रैकेट उजागर हुआ .दरअसल, इस तरह के बालिका या बाल गृह का सोशल ऑडिट कराने की परंपरा किसी राज्य में है ही नहीं.कानूनन इस तरह की संस्थाओं का सोशल ऑडिट का कोई नियम ही नहीं है. फिर सबसे बड़ा सवाल –फिर बिहार सरकार ने ऐसा सोशल ऑडिट क्यों कराया जिससे उसका ही गड़बड़झाला उजागर हो गया.
दरअसल, इस तरह के बालिका आश्रय गृह और महिला रिमांड होम का सिक्यूरिटी सिस्टम बिहार में ध्वस्त हो गया है.कहने के लिए सुरक्षा के लिए चार लेयर के पदाधिकारी जरुर होते हैं.लेकिन सच्चाई ये है कि वो भी रैकेट के हिस्सा बन जाते हैं. मुजफ्फरपुर बालिका गृह के बच्चियों की सुरक्षा के लिए भी असिस्टेंट डायरेक्टर सोशल सेक्योरिटी, असिस्टेंट डायरेक्टर चाइल्ड प्रोटेक्शन, चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर, प्रोबेशन ऑफिसर जैसे तमाम अधिकारी तैनात थे .लेकिन ये खुद अभियुक्त बन गए .यानी पूरी सुरक्षा व्यवस्था को ही ध्वस्त कर दिया .
सबसे बड़ा सवाल अधिकारियों की इतनी बड़ी फ़ौज क्या कर रही थी? कैसे इनमे से किसी को बालिका गृह में चल रहे सेक्स रैकेट की भनक तक नहीं लगी? ये अपनी डीड्यूटी को लेकर लापरवाह थे या फिर किसी दबाव में सच्चाई की अनदेखी करते रहे? आखिर वो सख्श कौन है, जिसके कारण ईन तमाम अधिकारियों ने चुप्पी साध ली? जबाब साफ़ है, ये सभी अपराधिक षड़यंत्र के हिस्सा बन गए थे .कारण चाहे राजनीतिक दबाव रहा हो या पैसा .लेकिन सबसे बड़ा सवाल – इस महापाप के खेल का उद्भेदन करनेवाला असली नायक कौन है?
सबलोग इस खुलासे का श्रेय मुंबई की प्रतिष्ठित संस्था ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ को दे रहे हैं जिसने अपनी सोशल ऑडिट रिपोर्ट में बालिका गृह में यौन उत्पीडन का खुलासा किया. लेकिन सबसे बड़ा सवाल-‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ को सोशल ऑडिट का कम किसने सौंपा? क्यों विभागीय मंत्री अपनी सफाई में यहीं कह रही हैं कि अगर उन्हें बालिका गृह में गड़बड़ होने की आशंका होती या फिर उसमे उनके पति शामिल होते तो वो क्यों ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस’ से सोशल ऑडिट करातीं. बात सही है, मंत्री जी भला अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारनेवाला कम कैसे करतीं? ये फैसला ( सोशल ऑडिट) तो समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद का था. अतुल प्रसाद ने ही सोशल ऑडिट कराने का फैसला लिया जिसकी वजह से वर्षों से चल रहा यह खेल उजागर हो गया.यानी इस पुरे प्रकरण का असली हीरो अतुल प्रसाद ही हैं, जो अपना काम कर चुपचाप गुमनाम बैठे हैं. उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है और न ही वो चाहते हैं कि ऐसा हो.
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