सिटी पोस्ट लाइव :पिछले सप्ताह बक्सर जिले में गंगा नदी में सैकड़ों लाशें मिलने से खलबली मच गई थी.ये लाशें किसकी और कहाँ की हैं, इसको लेकर विवाद शुरू हो गया था.लेकिन अब ईन लाशों का सच सामने आ गया है.उत्तर प्रदेश के उन्नाव के शुक्लागंज इलाके के एक गांव सरोसी में कुछ लोगों की मौत हो गई तो ज्यादातर लोगों ने गंगा नदी के किनारे रेती में अपनों को दफना दिया. इस गांव की अधिसंख्य आबादी हिंदू है, इसलिए शवों को दफनाने की मान्यता नहीं है. बावजूद इसके इस गांव और आसपास के अधिकतर गांवों के लोग मृत स्वजनों को गंगा किनारे रेती में ही दफन कर रहे हैं. इसकी वजह गांव के लोग कोरोना का खौफ बताते हैं. उनका कहना है कि महामारी के डर के मारे लोग शव की अंत्येष्टि तुरत-फुरत कर देना चाहते हैं. इसीलिए वे उन्हें दफना रहे हैं या गंगा मैया में विसर्जित कर रहे हैं.
ईन ईलाकों के लोगों का कहना है कि गंगा के किनारे बसे हिंदू बाहुल्य आबादी वाले इलाकों में शवों को दफनाने का चलन ही नहीं है. लेकिन वह कहते हैं कि इतनी मौतें हो रहीं है कि लोग सहमे हुए हैं. उनको डर लग रहा है कि शव को जलाएं भी तो कहां? गाँव के लोगों का कहना है ऐसी भयावहता कभी नहीं देखी. लोग अपनों को जलाने के लिए कोई मिन्नत तक नहीं करते हैं बल्कि लोग दूर-दूर से आकर गंगा की रेती में शवों को दफना रहे हैं.
कानपुर के लोगों का कहना है कि आज तक तो उन्होंने इन इलाको के गांव वालों को कभी भी शवों को दफनाते हुए नहीं देखा. लेकिन आज आलम यह है कि सबसे ज्यादा शव यहीं दफनाए जा रहे हैं. जगत के मुताबिक वह इन इलाके के गांव वालों को बखूबी पहचानते हैं, लेकिन इस वक्त यहां आने वालों में कानपुर के ही नहीं दूर दराज के जिलों के लोग भी पहुंच रहे हैं. जगत कहते हैं शुरुआत से ही इन गांवों में शवों के दफनाने की मान्यता ही नहीं रही. जगत का कहना है कि इस आपदा के वक्त आने वाले लोग सिर्फ डर के मारे ही अपनों के शवों को दफनाने की बजाय शवों को एक तरह से ऐसे ही छोड़ जाते हैं। बस थोड़ी सी रेती में शव को छिपा देते हैं.लगातार इतनी मौतें हो रहीं हैं कि लोग रात को भी शवों को दफनाने के लिए आते हैं. कई लोग तो रातों को शवों को बहा जाते हैं.
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