सिटी पोस्ट लाइव :कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने देश भर में तांडव मचा रखा है. मरीजों के आगे अस्पताल कम पड़ गए हैं. ज्यादातर लोग घर पर खुद अपना ईलाज कर और करवा रहे हैं. कुछ लोग तो कोरोना को मात देने के लिए डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की सुविधा भी घर में रहकर ले रहे हैं. घर पर रहकर कोरोना को मात देने वाले मरीजों के लिए अच्छी खबर है ये है कि वे अस्पतालों के झंझट और अधिक खर्चे से बच जा रहे हैं, दूसरी उन्हें साइड इफेक्ट का खतरा भी कम हो रहा है. एक शोध में दावा किया गया है कि कोविड-19 संक्रमण का घर पर रहकर इलाज कराने वाले मरीजों में गंभीर दीर्घकालिक दुष्प्रभाव का जोखिम कम रहता है.
द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, घर पर इलाज करा रहे कोविड-19 रोगियों में गंभीर दीर्घकालिक प्रभावों का कम जोखिम होता है. हालांकि, डॉक्टर को घर पर भर्ती मरीज के पास अधिक बार जाना पड़ता है. एक समूह पर आधारित इस अध्ययन में डैनिश प्रिस्क्रिप्शन, मरीजों व स्वास्थ्य बीमा रजिस्ट्रियों का इस्तेमाल किया गया है.
अध्ययन में पाया गया है कि सार्स-सीओवी-2 संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता वाली गंभीर तीव्र जटिलताओं का पूर्ण जोखिम कम है. हालांकि, अध्ययन में पाया गया है कि सामान्य चिकित्सकों से परामर्श और अस्पताल में बार-बार डॉक्टर को दिखाने के लिए जाने की वजह से कोविड -19 के फिर से आने का खतरा हो सकता है. कुछ दिनों के बाद उन्हें थ्रोम्बोएम्बोलिज्म की शिकायत भी हो सकती है. कोरोना के कई मरीज ठीक होने के दो हफ्ते से लेकर छह महीने के बाद तक ब्रोन्कोडायलेटर थेरेपी की जरूरत से लेकर डिस्पनिया तक की शिकायत लेकर वापस अस्पताल आ रहे हैं.
इस अध्ययन के अनुसार, भले ही घर पर ठीक होने वाले कोरोना के मरीजों को आगे चलकर इसका कोई गंभीर खतरा न हो लेकिन बार-बार डॉक्टर के पास जाने की जरूरत ये बताता है कि यह संक्रमण शरीर में जरूर कोई न कोई लक्षण छोड़ देता है.इससे पहले कई अध्ययन में यह दावा किया जा चुका है कि कोरोना के मरीजों पर इस बीमारी का असर लंबे समय तक रहता है. इन मरीजों में कई तरह की मानसिक बीमारी, दिल से जुड़ी बीमारी, डायबिटीज की शिकायत और कमजोरी जैसे लक्षण देखे जा रहे हैं.
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