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कोरोना संकट से कैसे निपट रहा है बिहार, जानिए सच्चाई, खुल जायेगीं आँखें..

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सिटी पोस्ट लाइव :66 साल के डॉ ओम प्रकाश सिंह अपने हमनाम कोरोना मरीज की वजह से संकट में फंस गए.उनका एक हमनाम कोरोना पॉज़िटिव था जिसके चलते जिला प्रशासन ने उन्हें जबरन अस्पताल भेंज दिया.27 अप्रैल से 28 मई तक वो अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे और उन्हें क्वारंटीन में भी रहना पड़ा.ओमप्रकाश सिंह कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं.वो  इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए जैसी प्रतिष्ठित संस्था की बिहार यूनिट में रोहतास ज़िले के सचिव है.

ओम प्रकाश सिंह ने बताया कि उनकीरिपोर्ट बार-बार निगेटिव आती थी. लेकिन फिर भी उन्हें और उनके परिवार को प्रताड़ित किया गया. 13 मई को जब उन्हें इलाज का पर्चा मिला तो उसके ऊपर उनके  पिता की जगह किसी दूसरे का नाम लिखा था. उनका आरोप है कि किसी हमनाम की वजह से उनके साथ प्रतिशोध लिया गया.ओम प्रकाश सिंह ने अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर कहा है कि क्वारंटीन में रहने के चलते और सही समय पर खाना नहीं मिलने के चलते उनका शुगर बढ़ गया है. उनकी किडनी ख़राब होनी शुरू हो गई है. उन्होने आशंका जताई है कि अब अगर उनकी मृत्यु हो जाती है तो लोग इसे कोरोना से मृत्यु मानेंगे. ओम प्रकाश सिंह का ये मामला जाहिर करता है कि बिहार में कोरोना को लेकर पूरा प्रशासनिक सिस्टम किस तरह से काम कर रहा है.

कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों के साथ प्रशासनिक और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर अमानवीय रवैये की ख़बरें लगातार आती रहती हैं.लेकिन सिटी पोस्ट की टीम जब रियलिटी चेक करने गोपालगंज के मीरगंज के उर्दू अकेडमी में बने क्वारंटीनसेंटर पहुंची तो तस्वीर बिलकुल अलग थी.वहां पीने के लिए मिनरल वाटर के बीस लीटर वाले बोतल की व्यवस्था थी.वहां रह रहे लोगों के अनुसार उन्हें सुबह चाय बिस्किट मिलता है. फिर दोपहर में चावल,दाल शब्जी खाना मिलता है.शाम में फिर चाय बिस्किट और रात में पुदी शब्जी खाने में दिया जाता है.खाने को लेकर कोई शिकायत नहीं थी.

लेकिन ज्यादातर प्रवासियों की शिकायत थी कि उनका क्वारंटीन पीरियड ख़त्म होने के बाद भी उन्हें घर नहीं भेंजा जा रहा है.अधिकारी कहते हैं कि उनके जिले के प्रशासन को खबर दे दी गई है,वहीँ ले जाएगा.लेकिन वहां से कोई नहीं आ रहा है.उनकी शिकायत ये भी थी कि दवा के नाम पर केवल, सर्दी-खांसी और बुखार की दवा यहाँ मिलता है.कोरोना जांच रिपोर्ट को लेकर ये शिकायत थी कि ज्यादातर लोगों का जांच नहीं हुआ है.जिन्कहुआ है, एक सप्ताह के बाद भी रिपोर्ट नहीं आई है.

बिहार में कोरोना पॉज़िटीव मामलों की बात करें तो 5 जून तक यहां 4551 मरीज़ मिले थे, जिसमें से 2233 मरीज़ ठीक हुए और 29 मरीजों की मौत हुई.कुल 91,903 सैंपल की जांच हुई है. सबसे ज़्यादा कोरोना पॉज़िटिव मामले खगडिया, पटना, बेगूसराय में 273, 268 और 254 क्रमश: है. शिवहर ज़िले में कोरोना के सबसे कम मरीज़ मिले हैं जिनकी संख्या 21 है.

राज्य स्वास्थ्य समिति के आंकड़ो के मुताबिक़, 3 मई से लेकर 5 जून तक प्रवासियों की हुई जांच में 3311 कोरोना पॉज़िटिव मिले हैं. वहीं 5 लाख 17 हज़ार होम क्वारंटीन में रह रहे प्रवासी व्यक्तियों का घर जाकर सर्वेक्षण किया गया है जिसमें से 211 व्यक्तियों को बुख़ार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायत मिली है.अगर जांच की रफ़्तार की बात करें तो बीते तीन दिनों में रोज़ाना 3500 जांच ही हो रही है जबकि खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके है कि राज्य में रोज़ाना दस हज़ार व्यक्तियों की जांच होनी चाहिए.

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