कोरोना वायरस से पीड़ित मारीज के लिए वेंटिलेटर कितना जरुरी?
सिटी पोस्ट लाइव: कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को कब वेंटिलेटर की जरुरत पड़ती है.कोरोना के संक्रमण के गंभीर मामलों में वायरस फेफड़ों को नुक़सान पहुंचाने लगता है. इंसान के फेफड़े शरीर में वो जगह हैं जहां से ऑक्सीजन शरीर में पहुंचना शुरू होती है और कार्बन डाई ऑक्साइड शरीर से बाहर निकलती है.अगर ये वायरस आपके मुंह से होते हुए सांस की नली में प्रवेश करता है और फिर आपके फेफड़ों तक पहुंचता है तो आपके फेफड़ों में छोटे-छोटे एयरसैक बना देता है.कोरोना के बनाए छोटे-छोटे एयरसैक में पानी जमने लगता है. इस कारण सांस लेने में तकलीफ़ होती है और आप लंबी सांस नहीं ले पाते.
इस स्टेज में मरीज़ को वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे में वेंटिलेटर फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाता है. वेंटिलेटर में ह्यूमिडीफायर भी होता है जो हवा में गर्माहट और नमी शामिल करता है और उससे शरीर का तापमान सामान्य बना रहता है. तेज़ बुखार और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है तब मरीज़ को अस्पताल में एडमिट किया जाता है और उसे ऑक्सीजन दी जाती है. तीसरे कैटेगरी के मरीज़ों में फेफड़ों को नुक़सान हो जाता है. इससे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने की फेफड़ों की क्षमता बहुत कम हो जाती है.ये मल्टी ऑरगन फेलियर की स्थिति होती है. इसलिए मरीज़ को वेंटिलेटर पर डाला जाता है. तब मशीन एक तरह से फेफड़ों का काम करती है.
भारत में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में इस वक्त 80 हज़ार से एक लाख तक वेंटिलेटर हैं.अगर इटली, सऊदी अरब की रफ़्तार से यहां भी बीमारी आगे बढ़ी तो मौजूदा वेंटिलेटर्स की संख्या कम पड़ सकती है. लेकिन, भारत में ऐसा नहीं लग रहा है. अभी जो आंकड़ा है उसके हिसाब से यहां पर्याप्त वेंटिलेटर्स हैं. जब ये आंकड़ा 10 हज़ार या 20 हज़ार पहुंचेगा तब थोड़ा चिंता की बात होगी.”लेकिन, जिस तरह सरकार ने लॉकडाउन किया है और लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं तो इस आंकड़े तक पहुंचने में दो-तीन हफ़्ते का वक़्त लगेगा और इस बीच सरकार को ज़रूरी उपकरणों की आपूर्ति का समय मिल जाएगा. वैसे ज़रूरी भी नहीं भारत में आंकड़ा इतना ज़्यादा हो जाए.
अमूमन लोगों के बीच वेंटिलेटर को लेकर डर होता है. ये धारणा होती है कि वेंटिलेटर से लौट कर आना बेहद मुश्किल है.कोरोना वायरस के मामले में वेंटिलेटर पर पहुंचने के बाद क्या संभावना होती है.डॉक्टरों के अनुसार वेंटिलेंटर पर आने के बाद भी मरीज़ ठीक होते हैं.कोरोना वायरस के अलावा दूसरी बीमारियों में तो 70 से 85 प्रतिशत मरीज ठीक होकर निकलते हैं. कोरोना वायरस में ये प्रतिशत थोड़ा कम होता है.
वेंटिलेंटर को लेकर हमें प्रैक्टिल नज़रिया अपनाना चाहिए. कोरोना वायरस से निपटने के लिए हमारे पास जो इंतज़ाम हैं उसका वेंटिलेंटर एक हिस्सा भर है, वो सबकुछ नहीं है.कोरोना वायरस के 100 में से 80 मरीज़ों को घर में ही इलाज़ की ज़रूरत होती है. अनुमान के मुताबिक बचे हुए 20 में से 4 से 5 लोगों को ही वेंटिलेटर की ज़रूरत होती है.
पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विमेंट, मास्क और मरीज़ की देखभाल में लगे स्वास्थ्य कर्मचारियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. वेंटिलेटर तो कुछ मरीज़ों के लिए चाहिए होता है लेकिन सुरक्षा संबंधी उपकरण और नर्स व डॉक्टर तो हर मरीज़ के लिए चाहिए. हमें इलाज़ में दिन-रात जुटे डॉक्टर, नर्स और सफाईकर्मियों की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करना होगा.
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