सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में अबतक सरकारी आंकड़े के मुताबिक़ तीस लाख से ज्यादा प्रवासी आ चुके हैं. सरकार की सबसे बड़ी चुनौती ईन मजदूरों को काम देना है. कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा बुरा हाल कामगारों का है. लाखों की संख्या में महानगरों से मजदूर घर वापस आ गए हैं. बिहार सरकार ईन मजदूरों को काम देने की योजना बनाने में जुटी है. सरकार ने वैसे जिलों की पहचान की है जहां सबसे ज्यादा मजदूर लौटे हैं. अब ऐसे 32 जिलों में सरकार के द्वारा सामाजिक कल्याण के तहत रोजगार दिलाने की योजनाओं पर काम किया जाएगा.
देशभर में ऐसे 6 राज्यों और 116 जिलों की पहचान की गई है. सबसे ज्यादा बिहार के कामगार हैं जो बाहर से वापस लौटे हैं. रोजगार दिलाने के लिए खाका तैयार कर लिया गया है ताकि घर लौटे मजदूरों को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके. इसके तहत कौशल विकास गरीब कल्याण सुविधाओं का सीधा लाभ मजदूरों को मिल पायेगा. घर लौटे करोड़ों प्रवासी मजदूरों के पुनर्वास और रोजगार के लिए केंद्र सरकार ने जिन जिलों का चयन किया है उनमे से बिहार के 32 जिले हैं. सरकार का मानना है कि लॉक डाउन की वजह से लाखों मजदूर बिहार के 32 जिलों में अपना काम छोड़कर वापस लौट गए हैं. इन जिलों में कौशल विकास जनधन खाद्य सुरक्षा किसान कल्याण मनरेगा पीएम आवास योजना समेत अन्य केंद्रीय योजनाओं पर तेजी से काम कर इन्हें रोजगार दिलाने का काम किया जाएगा ताकि जल्द से जल्द ही आत्मनिर्भर हो सकें.
जिन 32 जिलों का चुनाव किया गया है उनका नाम इस प्रकार है.दरभंगा, अररिया, पश्चिम चंपारण, गया, मधुबनी, कटिहार, पूर्वी चंपारण, नवादा, जमुई, गोपालगंज, कैमूर, सिवान, पटना, नालंदा, सीतामढ़ी, किशनगंज, मधेपुरा, वैशाली, औरंगाबाद, बक्सर, भोजपुर, सहरसा, बेगूसराय, सुपौल, भागलपुर, बांका, सारण, खगड़िया, समस्तीपुर,पूर्णिया, रोहतास और मुजफ्फरपुर. बिहार सरकार के श्रम मंत्री श्रवन कुमार का दावा है कि मनरेगा और दूसरी सरकारी योजनाओं में अबतक 30 लाख मजदुर काम कर रहे हैं.मंत्री का दावा है कि सरकार 50 लाख श्रमिकों को कम देने की तैयारी कर रही है.
लेकिन नेता प्रतिपक्ष श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सरकार की घेराबंदी में जुटे हुए हैं. तेजस्वी यादव का आरोप है कि बिहार सरकार प्रवासी मजदूरों की समस्या से बेपरवाह है. वह केवल चुनावी तैयारी में जुटी हुई है. रोज नई नई घोषणाएं हो रही हैं लेकिन काम कुछ नहीं हो रहा है.तेजस्वी यादव का मानना है कि प्रवासी मजदूरों को कम देना बिहार सरकार के वश की बात नहीं है.
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