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जब TTE के पीछे पड़ गये पंडित दीनदयाल उपाध्याय, थक-हारकर 2 घंटे का किराया लिया

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जब TTE के पीछे पड़ गये पंडित दीनदयाल उपाध्याय, थक-हारकर 2 घंटे का किराया लिया

सिटी पोस्ट लाइव : पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज 102वीं जयंती है. उपाध्याय संघ विचारक और भारतीय जनता पार्टी के अग्रदूत भारतीय जनसंघ पार्टी के सह-संस्थापक थे. वह दिसंबर के 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने थे. इनका जन्म 25 सितंबर 1916 में मथुरा के छोटे से गांव नगला चन्द्रभान में हुआ. भगवती प्रसाद उपाध्याय और रामप्यारी माता पिता थे. माता धार्मिक विचारों की और पिता पेशे से एक ज्योतिषी थे. तीन साल की छोटी उम्र में दीनदयाल के पिता चल बसे. चार साल बाद मम्मी भी उनको छोड़कर भगवान को प्यारी हो गईं. 7 साल की उम्र में ही दीनदयाल अनाथ हो गए. मां-बाप रहे नहीं तो वो अपने ननिहाल चले आए.

आजीवन अविवाहित रहे दीनदयाल उपाध्याय

बता दें दीनदयाल उपाध्याय ने कभी विवाह नहीं किया. उनके बारे में अक्सर एक अफवाह का जिक्र किया जाता है. अंदर की कहानी यूं है कि जब दीनदयाल छोटे थे, तब उनके नाना चुन्नीलाल शुक्ल के मन में अपने नाती का भविष्य जानने की इच्छा हुई. इसके लिए उन्होंने एक जाने-माने ज्योतिषी को घर बुलाया. ज्योतिषी  ने कुंडली के ग्रह-नक्षत्र देखकर कहा कि लड़का बहुत तेज है और बहुत आगे जाने वाला है. सेवा, दया और मानवता के गुण इसमें कूट-कूटकर भरे होंगे. यह बालक युग पुरुष के रूप में उभरेगा और देश-विदेश में अतुलनीय सम्मान प्राप्त करेगा. इतिहास के पन्नों में इसका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा, लेकिन लड़का शादी-बियाह नहीं करेगा. इतना सुनते ही नाना चुन्नीलाल दुखी हो गए. फिर भी उन्होंने खुद को दिलासा दिया और यह सोचा कि ‘बड़ा होने पर समझा-बुझाकर विवाह करा देंगे. लेकिन इस कहानी के हिसाब से ही सब कुछ चला और दीनदयाल ने कभी शादी नहीं की, तो नहीं ही की.

पंडित दीन दयाल उपाध्याय की मृत्यु एक रहस्य 

पंडित दीन दयाल उपाध्याय का शव 11 फरवरी 1968 को मुगल सराय रेलवे स्टेशन के पास मिला था. दीन दयाल उपाध्याय की मौत हुई थी या फिर हत्या ये अब तक राज बना हुआ है. हाल ही में यूपी सरकार ने इसकी जांच करवाने का फैसला भी किया है. बताया जाता है कि 11 फरवरी, 1968 को सुबह तकरीबन 3.30 बजे के प्लेटफॉर्म से करीब 150 गज पहले रेलवे लाइन के दक्षिणी ओर के बिजली के खंभे से लगभग 3 फीट की दूरी पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय शव मिला था. अमरजीत सिंह की किताब ‘एकांत मानववाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय’ के मुताबिक लोहे और कंकड़ों के ढेर पर दीनदयाल उपाध्याय पीठ के बल सीधे पड़े हुए थे और कमर से मुंह तक का भाग दुशाले से ढका हुआ था. उनकी जेब से प्रथम श्रेणी का टिकट नं 04348 रिजर्वेशन रसीद नं 47506 और 26 रुपये बरामद हुए. उनके दाएं हाथ में एक घड़ी बंधी हुई थी, जिस पर ‘नानाजी देशमुख’ लिखा था. कहा जाता है कि उस दौरान उनके हाथ में एक पांच का नोट भी था. इस बीच जब सुबह करीब 9.30 बजे दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस मुकामा रेलवे स्टेशन पहुंची. यहां गाड़ी की प्रथम श्रेणी बोगी में चढ़े यात्री ने सीट के नीचे एक लावारिस सूटकेस देखा. उसने इसे उठाकर रेलवे कर्मचारियों के सुपुर्द कर दिया. बाद में पता चला कि यह सूटकेस पंडित जी का था.

कार्यक्रम में शिरकत करने पटना जा रहे थे

बताया जाता है कि बिहार प्रदेश के जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री अश्विनी कुमार के आग्रह पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय पटना में बिहार प्रदेश भारतीय जनसंघ की कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए जा रहे थे. दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ में अपनी मुंहबोली बहन लता खन्ना के घर पर ठहरे हुए थे. उन्होंने पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस में प्रथम श्रेणी की टिकट करवा ली और गाड़ी का समय शाम 7 बजे था और पंडित जी सही वक्त पर स्टेशन पर पहुंच गए. उस दौरान उनके पास एक सूटकेस, बिस्तर, टिफिन और किताबों का थैला था. उन्होंने बिना आस्तीन वाली बनियान, उसके ऊपर तीन स्वेटर पहन रखे थे. इन सबसे ऊपर उन्होंने कुर्ता और जैकेट पहन रखा था. उस दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री रामप्रकाश गु्प्त और उत्तर प्रदेश के एमएलसी पीतांबर दास भी थे.

एक बार TTE के पीछे पड़ गए पंडित जी

एक किस्सा दीनदयाल उपाध्याय की ईमानदारी के बारे में भी लोग सुनाते हैं. कि एक बार पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे. इत्तेफाक से उसी रेलगाड़ी मे गुरू गोलवरकर भी यात्रा कर रहे थे. जब गोलवलकर को यह पता चला कि उपाध्याय भी इसी रेलगाड़ी में हैं तो उन्होंने खबर भेजकर उनको अपने पास बुलवा लिया. उपाध्याय आए और लगभग एक घंटे तक सेकेंड क्लास के डिब्बे में  गुरू गोलवलकर के साथ बातचीत करते रहे. उसके बाद वह अगले स्टेशन पर थर्ड क्लास के अपने डिब्बे में वापस चले गए. अपने डिब्बे में वापस जाते समय टीटीई के पास गए और बोले- श्रीमान मैंने लगभग एक घंटे तक सेकेंड क्लास के डिब्बे में ट्रैवेल किया है, जबकि मेरे पास थर्ड क्लास का टिकट है. नियम के हिसाब से  मेरा एक घंटे का जो भी किराया बनता है. वह आप मेरे से ले लीजिए. TTE ने कहा- कोई बात नहीं आप अपने डिब्बे में चले जाइए. लेकिन पंडित जी स्वाभाव से इतने ईमानदार थे कि उन्होंने TTE का पीछा नहीं छोड़ा. वे बार-बार आग्रह करते रहे कि समय के हिसाब से ही किराया बना लीजिये. जब TTE ने देखा की पंडित जी मानने वाले नहीं हैं तो थक हारकर TTE ने दो घंटे का किराया जोड़ा और उनसे ले लिया.

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