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# मी टू मूवमेंट : पश्चिमी देशों से आई बीज ने भारतीय समाज में नई संस्कृति पैदा की

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# मी टू मूवमेंट : पश्चिमि देशों से आई बीज ने भारतीय समाज में नई संस्कृति पैदा की

सिटी पोस्ट लाइव : जैसे हीं पश्चिमी देशों में लोगों को ठंढ महशूस होती है कि हम अपने यहां कम्बल निकाल लेते हैं, और जैसे हीं वहां गर्म हवा चलने लगती है हम अपने घरों में लगे एयरकंडिशनर का तापमान कम कर देते है ताकि हम गर्मी में झुलस न  जाए। हमारी फितरत ही कुछ ऐसी है, ऐसा नहीं है कि हमारे यहां के मौसम गर्मी और ठंढक का एहसास भलि-भांति नहीं कराते हैं, लेकिन हम नजरअंदाज करके इस इंतजार में बैठे रहते हैं कि कब पश्चिमि देशों में मौसम बदले और हम अपने घरों में उससे बचने के उपाय ढूढंने में लग जाऐं। हमारे यहां  नैतिकता और सदाचार कि हवा हमेशा पश्चिम से हीं बहती है।

कुछ ऐसा हीं है इन दिनो हमारे देश में चलने वाला # मी टू मूवमेंट। हमारे देश में इसकी शूरूआत होती है, बॉलिवुड की अदाकारा तनुश्री  दत्ता द्वारा अभिनेता नानापाटेकर पर लगाये गये आरोपों से। तनुश्री ने आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व भी नाना पर यही आरोप लगाये थे, लेकिन उस समय अमेरिका और यूरोप के देशों में कोई  # मीटू मूवमेंट नहीं चल रहा था, शायद इसलिए किसी ने उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, बहरहाल अब शुरूआत तो हुई, धीरे- धीरे इस आंदोलन में कई चेहरे और कई आवाजें शामिल हुई, आज तो आलम यह है कि विदेश मामलो के राज्यमंत्री एम0जे0 अकबर को अपने पद से ईस्तीफा तक देना पङ गया।

मैं इस झंझट में बिल्कुल भी नहीं पङना चाहता हूं कि इन आरोपों में सच और झूठ के अनुपात का प्रतिशत कितना है। हो सकता है कि सारे आरोप सच्चे हों या उनमें से कुछ सच्चे हो या फिर इन आरोपों की कानुनी अहमियत कितनी है, ये कानून के जानकार बेहतर बता सकते हैं या फिर आरोप लगाने वाले या आरोपी। लेकिन इतना अवश्य है कि मी टू मूवमेंट से समाज में एक नए संस्कृति के बीज का बीजारोपण हो गया है।

आरोपो में सच या झूठ का प्रतिशत कुछ भी हो , इसके आधार पर हम इस सच्चाई से तो भाग नहीं सकते हैं कि समाज में ऐसी भयावह घटनाऐं हमारे आस-पास प्रतिदिन घटती होती हैं, यौन उत्पीङन की कई घटनाऐं तो हम अपनी आंखो के सामने ही घटित होते देखते है, लेकिन हम उनके प्रति इतने यूज टू हो चुके है कि हमें यह आभास हीं नहीं होता है कि हम अनजाने में ही किसी के यौन उत्पीङन के साक्षी, या आरोपी बन गये हैं

अभी तक # मी टू मूवमेंट में जितनी भी आवाजे शोषण के खिलाफ आई है, या जो भी आरोपी हैं वे सभी समाज के एक खास वर्ग से आते हैं,यह वर्ग वह है जो प्रबुद्ध है ,प्रगतिशील है, अपने अधिकारों के प्रति सजग है,कोई फिल्म निर्माता है, तो कोई अभिनेता , कोई लेखक है, तो कोई पत्रकार, ये वही लोग है जो महिलाओं के अधिकारो की लङाई में झंडा लेकर सबसे आगे चलते है, मै यह सोचकर हीं भयभीत हो जाता हूं कि जब समाज के इस तबके में स्थ्ति इतनी भयावह है तो  सोचिए कि मध्यमवर्गीय समाज और वे लोग जो समाज के निचले पायदान  पर है वहां स्थिति कैसी होगी ?

इस  प्रबुद्ध समाज के अंदर कि सङांध आज जब आयातित आधुनिक विचारों की चकाचौंध से बाहर निकल रही है, तब कुछ लोग जो उसी समाज का हिस्सा हैं खुद को अप्रत्याशित या ऐसा दिखाने की कोशिश में लगे है जैसे उन्हें आज से पहले अपने आस-पास  होने वाले महिलाओं के यौन उत्पीङन के विषय में कोई जानकारी थी हीं नहीं ।

एक प्रसिद्ध पत्रकार जो इंडिया के जायके से भी भलि-भांति परिचित हैं, वे इस मुवमेंट की शुरूआत में अपने कार्यक्रम में इस मुवमेंट का पुरजोर समर्थन करते हुए, पीङित महिलाओं के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए, आरोपित पुरूषों को चवन्नी और अठन्नी वर्ग का बताते हुए उन्हें विशाखा गाईडलाइन्स के बारे में समझाते हुए और महिलाओं के प्रति जो उनके हृदय में अगाध सम्मान था उसकी झलक दिखाते हुए अपनी जिम्मेदारी से फारिग हुए हीं थे कि उनपर भी एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशिका ने यौन उत्पीङन के आरोप लगा दिये।

कमोबेश ये पत्रकार महोदय स्वंय में उस समाज का ही वास्तविक चित्रण कर रहे थे जिस समाज से ये स्वंय आते हैं। उधार की संवेदनाओं से और आयात किए हुए विचारों से एक आदर्श समाज के निर्माण करने का जो उतावलापन है , यही उतावलापन इन समस्याओं के मूल में है। अब समय आ गया है कि हम अपने समाज के लिए नैतिकता के नए मापदंड स्थापित करें जो बनावटी नहीं हो और जिसकी बुनियाद संवेदनाओं के आधार पर रखी गई हों और सबसे अहम् कि वो संवेदनाऐ हमारी अपनी हो उधार कि नहीं।

अनुराग मधुर   

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