राम भरोसे बिहार की शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था, कैसे आगे बढेगा बिहार
सुप्रीम कोर्ट में नीतीश सरकार ने माना- स्वास्थ्य सुविधाओं में फिसड्डी है बिहार
राम भरोसे बिहार की शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था, कैसे आगे बढेगा बिहार
सिटी पोस्ट लाइव : किसी भी राज्य के तरक्की का सबसे बड़ा राज उस राज्य में में रहनेवाले लोगों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर निर्भर करती है. अगर राज्य सरकार अपने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं मुहैया करा दे तो जनता अपने बलबूते खुद आगे बढ़ जाती है और वह राज्य खुशहाल हो जता है. लेकिन जिस राज्य की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था चौपट हो उस राज्य का मालिक तो भगवान् ही है. बिहार भी एक ऐसा ही राज्य है ,जहाँ जनता राम भरोसे है. शिक्षा के क्षेत्र में फिसड्डी साबित हो चुके बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था खस्ता हाल ही नहीं बल्कि बिलकुल राम भरोसे है. ये आरोप विपक्ष का नहीं बल्कि राज्य सरकार का खुद का मानना है. चमकी बुखार को लेकर नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने एफिडेविट में माना है कि राज्य स्वास्थ्य विभाग में सभी स्तरों पर कम से कम 50 प्रतिशत पद रिक्त हैं. डॉक्टरों की 47 प्रतिशत कमी है, वहीं 71 प्नतिशत नर्सों के पद खाली हैं.
जहाँ अस्पताल में 50 फिसद अधिकारियों के,47 फिसद डॉक्टरों और 71 फिसद नर्स का पद खाली हो ,वहां ईलाज तो खुद भगवान् को ही आकर करना पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट में नीतीश सरकार ने माना- स्वास्थ्य सुविधाओं में राज्य फिसड्डी है.स्वास्थ्य सेवा भगवान् भरोसे है. इसी का नतीजा है कि मुजफ्फरपुर जिले में चमकी बुखार से अबतक इस साल डेढ़ सौ और पिछले एक दशक में एक हजार से ज्यादा बच्चों मौत हो चुकी है.एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार पर लगातार सवालों के घेरे में रही बिहार सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर घिर गई है. बिहार में 174 से अधिक बच्चों की मौत मामले पर हुए मुकदमें में सरकार ने जो हलफनामा दाखिल किया है उसमें सरकार ने स्वास्थ्य व्यवस्था में खामी स्वीकार की है. सरकार ने माना है कि बिहार में स्वास्थ्य विभाग के लिए तय मानदंडों के अनुसार उपलब्ध मानव संसाधनों की कमी है.
बिहार सरकार ने कोर्ट के सामने भारी अफसोस जताया कि वो इस मामले में चाहते हुए नवजात बच्चों को बचा नहीं पायी है.सरकार ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि पूरे मामले में व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री की नजर थी. जानलेवा एईएस बीमारी को नियंत्रित करने और इसका इलाज करने के तरीकों को खोजने के लिए सीएम सक्रिय रूप से लगे हुए हैं. सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर बेहतर पोषण मुहैया कराने का आदेश सरकार ने दिया है. खुद मुख्यमंत्री स्वीकार कर चुके हैं कि चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों तक पहुँचने में उन्होंने देर कर दी .लेकिन उनके मंत्री तो अभी भी उटपटांग सफाई दे रहे हैं. भवन निर्माण मंत्री तो बच्चों की मौत का ठीकरा किसी दुसरे के सर पर ही फोड़ने में जुटे हैं.
राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में स्वास्थ्य महकमे की बदहाली को स्वीकार कर फंस गई है. अभी भी विपक्ष बच्चों की मौत के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय को जिम्मेवार ठहरा रहा है. आज भी विपक्ष ने सदन के बाहर जमकर प्रदर्शन किया और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय की बर्खास्तगी की मांग की.जाहिर है राज्य सरकार ने केवल लोकप्रिय फैसले लिए हैं और केवल लोकप्रिय काम किया है और जरुरी कामों को नजर-अंदाज कर दिया है. लोकप्रिय फैसलों के चक्कर में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े जरुरी फैसलों की अनदेखी का ही नतीजा है कि चमकी बुखार जैसी एक मामूली बीमारी ने हमारे सैकड़ों नौनिहालों को मौत के आगोश में ले लिया है.
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