न नियम न कानून, मठाधीश तय कर रहे बिहार डायरी में किसका छपेगा नाम
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार सरकार के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाले ‘बिहार डायरी’ मीडिया संस्थानों और उससे जुड़े पत्रकारों के नाम प्रकाशित कर चुका है. लेकिन कुछ वर्षों से या तो मनमाना रवैया अख्तियार कर किया जा रहा है या फिर यह विभाग बड़े गड़बड़झाले का शिकार है. इसकी पुष्टि हम तो नहीं कर रहे लेकिन जो बिहार डायरी में नाम छापे गए हैं, वो खुद अपने आप में इस बात की पुष्टि करता है. बिहार डायरी 2019 में जिस गड़बड़ी को अंजाम दिया गया 2020 में उसी गड़बड़ी को दुहरा दिया गया है. इस वर्ष भी कई वर्षों से चल रहे प्रतिष्ठित संस्थानों के नाम नहीं है.
बिहार के कई ऐसे संस्थान है जो लोगों की सबसे पहली पसंद हैं. लोग उन्हें देखना पढना पसंद करते हैं, लेकिन उनका नाम दूर-दूर तक बिहार डायरी में दिखाई नहीं देता है. बिहार के कई न्यूज चैनल्स वर्षों से संचालित हैं उसका नाम भी नहीं है. बेव पोर्टल के नाम पर कुछ चार-पांच पोर्टल के नाम प्रकाशित किये गये हैं. सवाल है बिहार डायरी में नाम प्रकाशित करने के लिए जरूरी अर्हताएं क्या हैं? वो कौन से तय नियम और कानून हैं जिसके तहत यह तय होता हो कि किस संस्थान और उसके प्रतिनिधियों का नाम प्रकाशित होगा.
आखिर क्यों ऐसा हो रहा है कि जो संस्थान ढंग से संचालित भी नहीं हो रही उसके नाम को प्रकाशित किया जा रहा है, जबकि दूसरे संस्थानों को छोड़ दिया जा रहा. क्या यह विभाग पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कार्य कर रहा है? क्या इस विभाग पर कुछ चंद मठाधीशों का का कब्जा है? सबसे बड़ा सवाल तो यह भी है कि चाटुकारिता के भरोसे कुछ लोग चांदी काट रहे हैं और जिन्हें जगह मिलनी चाहिए उन्हें नहीं मिल रही है! इन सवालों के जवाब मिलना बेहद जरूरी हैं. ताकि लोगों को यह पता रहे कि उनका नाम उस अहर्ता में आएगा या नहीं. अगर ऐसा नहीं हो सकता तो वेब पोर्टल को बंद कर देना चाहिए.
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