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आखिर क्यों उपेन्द्र कुशवाहा को NDA को छोड़ने का लेना पड़ा फैसला ?

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आखिर क्यों उपेन्द्र कुशवाहा को NDA को छोड़ने का लेना पड़ा फैसला ?

सिटी पोस्ट लाइव : आखिरकार दो ढाई महीने के उहापोह के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने सोमवार को NDA को छोड़ने का बड़ा फैसला ले लिया. उपेन्द्र कुशवाहा केवल NDA के घटक दल के नेता के रूप में ही नहीं थे. वो केंद्र सरकार में मंत्री भी थे. ऐसे में NDA छोड़ने का फैसला लेना उनके लिए बहुत आसान काम नहीं था. उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़ने के बाद किस ओर रूख करते हैं ये तो साफ नहीं हो पाया है. लेकिन ऐसी संभावना जताई जा रही है कि वो महागठबंधन का ही हिस्सा बनेंगे.एनडीए में लगातार अपनी उपेक्षा का आरोप लगा रहे कुशवाहा जिस तरह से NDA छोड़ने के अपने फैसले को महीनों तक टालते रहे, वो क्या करेगें इसको लेकर संशय बना हुआ था. आखिर वो क्या कारण थे कि उपेन्द्र कुशवाहा को इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा.

सीट शेयरिंग

उपेन्द्र कुशवाहा BJP द्वारा JDU के साथ बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने के एलान से भड़क गए. उपेन्द्र कुशवाहा पिछलीबार से ज्यादा सीटों की उम्मीद लगाए बैठे थे. लेकिन नीतीश कुमार के NDA में आ जाने से उनके मंशा पर पानी फिर गया. जैसे ही BJP ने JDU के साथ बराबर -बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया. दबाव बनाने के लिए उन्होंने तेजस्वी यादव से मुलाकात की. अपनी पार्टी के नेताओं को लालू यादव से बातचीत में लगा दिया. लेकिन फिर भी BJP ने उनको गंभीरता से नहीं लिया. फिर उन्होंने BJP को अल्टीमेटम दे दिया. फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा.उपेन्द्र कुशवाहा को अहसाश हो गया कि नीतीश कुमार के रहते NDA में उनकी दाल गलनेवाली नहीं है. फिर मजबूर होकर उन्हें NDA छोड़ने का फैसला लेना पड़ा.

 नीतीश कुमार से विवाद

नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी के साथ ही उपेन्द्र कुशवाहा NDA में असहज मह्सुश करने लगे थे.उन्होंने नीतीश सरकार के खिलाफ अपना अभियान तेज कर दिया. किसी न किसी बहाने वो हर रोज नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर निशाना साधने लगे. फिर क्या था नीतीश कुमार ने भी ऑपरेशन उपेन्द्र कुशवाहा शुरू कर दिया. उनके दल के दोनों विधायकों और एक बचे संसद रामकुमार शर्मा को भी अपने साथ कहदा कर लिया. फिर क्या था दोनों तरफ से खुलकर जंग की शुरुवात हो गई. लड़ाई इस हदतक पहुँच गई कि गठबंधन में उपेन्द्र कुशवाहा रहते तो भी उसका फायदा न उन्हें मिलता और ना ही नीतीश कुमार को.नीतीश कुमार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया. उन्होंने ये सन्देश BJP को दे दिया कि अब दोनों NDA में एकसाथ नहीं रह सकते. BJP को दोनों में से एक को चुनना होगा. फिर क्या था ,नीतीश कुमार का पलड़ा भारी पड़ा.

बिहार कैबिनेट में अनदेखी

जिस वक्त बिहार में दुबारा एनडीए की सरकार बनी तो कुशवाहा को ये आशा थी कि एनडीए का हिस्सा होने के कारण उनको भी मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी .लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके अलावा उनके किसी नेता को एनडीए के कोटे से विधान परिषद में भी जगह नहीं मिली. कुशवाहा इस बात को लेकर खासे नाराज थे और वो इस पीड़ा को गागे-बगाहे उजागर भी करते थे.उपेन्द्र कुशवाहा की नीतीश कुमार से नाराजगी को देखते हुए उनके दल के नेता नागमणि ने महागठबंधन के साथ नजदीकियां बढानी शुरू कर दी. उन्होंने उपेन्द्र कुशवाहा के लिए एक नया रास्ता खोज लिया.फिर क्या था उपेन्द्र कुशवाहा ने भी मन बना लिया कि अगर NDA में उन्हें नीतीश से ज्यादा या बराबर तरजीह नहीं मिली तो वो महागठबंधन के साथ जाकर NDA को सबक सिखा सकते हैं.

उप-चुनाव में उपेक्षा

उपेन्द्र कुशवाहा ने इस बात का खुलासा आज खुद प्रेस कांफ्रेंस के दौरान किया कि  एनडीए से उनकी  दूरी का एक और कारण उनकी पार्टी की उप चुनाव में अनदेखी थी. दरसअल बिहार में हुए उप चुनाव के दौरान कुशवाहा को सीटें मिलनी की उम्मीद थी. लेकिन ऐसा हो न सका. ऐसे में अब उनको 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अपनी अनदेखी का डर सताने लगा था. कुशवाहा ने शुरू में तो अपनी सीटों को लेकर दावेदारी ठोकी. लेकिन कोई भाव मिलता न देख वो लगातार अलग-अलग तरीके से अपनी मांग मोदी-शाह की जोड़ी तक पहुंचाते रहे.कुशवाहा ने एनडीए छोड़ा है लेकिन अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि वो आगामी भविष्य में कहां जाएंगे. उन्होंने कांग्रेस, महागठबंधन के साथ-साथ तीसरे मोर्चे का भी विकल्प खुला रखा है.जाहिर है महागठबंधन में अगर मनमाफिक सीटें मिल गई तो वहां चले जायेगें या फिर पप्पू यादव और मुकेश सहनी और जीतन राम मांझी जैसे छोटे लेकिन प्रभावशाली दलों को मिलकर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर सकते हैं. उपेन्द्र कुशवाहा पहले भी मुकेश सहनी और जीतन राम मांझी के साथ बैठक कर चुके हैं.

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