क्यों बे-वजह बदनाम हो गई मुजफ्फरपुर की लीची, क्या बच्चों की मौत की वजह है लीची ?
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम की वजह से बच्चों के मरने का सिलसिला जारी है. सरकार अपनी चमड़ी बचाने के लिए फलों की रानी ‘लीची’ के सर पर ठीकरा फोड़ दिया है. चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ साथ बिहार सरकार के मंत्री भी बच्चों की हो रही मौत की वजह लीची को बता रहे हैं. उनका कहना है कि लीची के बीज में मेथाईलीन प्रोपाइड ग्लाईसीन की सम्भावित मौजूदगी को ‘पहले से ही कम ग्लूकोस स्तर वाले’ कुपोषित बच्चों को मौत के कगार पर ला खड़ा कर दिया है. यानी लीची ही बच्चों के लिए काल बन गई है.
हालांकि सच्चाई ये है कि अभी कुछ निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि लीची बच्चों की मौत की वजह हो सकती है.अभी तक हुए शोधों के अनुसार लीची को बच्चों की मौत के पीछे छिपे कई कारणों में से सिर्फ़ एक ‘सम्भावित’ कारण माना जा रहा है और लीची बदनाम हो गई है. लीची ईन मौतों के लिए जिम्मेवार है या नहीं ,पता नहीं लेकिन विवाद में आने की वजह से वह बदनाम जरुर हो गई है .इस रसीली लीची के व्यापारी और किसान बर्बादी के कगार पर खड़े हो गए हैं.बिना किसी निर्णायक सबूत के ही लीची दोषी ठहरा दी गई है और इससे होने वाली कमाई पर पूरी तरह आश्रित मुज़फ्फरपुर क्षेत्र के किसान तबाही के करीब पहुँच गए हैं. बिना निर्णायक सबूत के उनकी फ़सल की इस बदनामी से उनकी बिक्री पर बुरा असर पड़ने लगा है.
शहर की आम जनता भी मानती है कि मासूमों की मौत का असली कारण न ढूंढ पाने वाली बिहार सरकार लीची पर ठीकरा फोड़ रही है. लोगों का कहना है कि इसी लीची को बेचते और खाते खाते वो बूढ़े हो गए ,उन्हें आजतक कुछ नहीं हुआ . यहां के बच्चों सदियों से लीची खाते हुए ही बड़े हो रहे हैं. लेकिन आज बच्चों की मौत के लिए वगैर किसी ठोस प्रमाण के लीची को दोषी करार दे दिया गया है. धूप की वजह से बच्चे बीमार पड़ सकते हैं.बिहार में ऐसी 45-46 डिग्री वाली गर्मी पहलीबार लोग झेल रहे हैं. ‘बिहार के लीची किसानों का कहना है कि लीची को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इनसेफ़िलाइटिस की वजह से बच्चों के जान गंवाने और लीची की फ़सल का समय और मौसम लगभग एक है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल “अगर लीची खाने से बच्चे मर रहे हैं तो अच्छे और बड़े शहरी घरों के बच्चे लीची खाने से क्यों बीमार नहीं पड़ रहे. सिर्फ़ ग़रीब परिवारों के कुपोषित बच्चे ही लीची खाने से इनसेफ़िलाइटिस के शिकार क्यों हो रहे हैं. मुजफ्फरपुर की लीची पटना से लेकर दिल्ली बम्बई तक के लोग खा रहे हैं फिर मौतें सिर्फ़ ग्रामीण मुज़फ़्फ़रपुर के सबसे ग़रीब घरों में क्यों हो रही है? कोई कारण नहीं मिल रहा तो लीची को सिर्फ़ इसलिए दोषी ठहराया जा रहा है क्योंकि लीची की फ़सल का और बच्चों के बीमार पड़ने का सीज़न लगभग एक है”.
बिहार के बीचों-बीच से बेहने वाली गंडक नदी के उत्तरी भाग में लीची का उत्पादन होता है. हर साल समस्तिपुर, पूर्वी चंपारन, वैशाली, और मुज़फ़्फ़रपुर जिलों की कुल 32 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर लीची का उत्पादन किया जाता है. मई के आख़िरी और जून के पहले हफ़्ते में होने वाली लीची की फ़सल से सीधे तौर पर इस क्षेत्र के 50 हज़ार से भी ज़्यादा किसान परिवारों की आजीविका जुड़ी है.
गर्मियों के 15 दिनों में ही यहां ढाई लाख टन से ज़्यादा की लीची का उत्पादन होता है. एक अनुमान के अनुसार “मुज़फ़्फ़रपुर और बिहार से बाहर भारत के अन्य राज्यों में भेजी जाने वाले लीची 15 दिनों की सालाना फ़सल में ही गंडक नदी के क्षेत्र वाले बिहार के किसानों को अनुमानित 85 करोड़ रुपए तक का व्यवसाय दे जाती है. ऐसे में लीची की हो रही इस बदनामी से यहां के किसानों के पेट पर हमला हो रहा है.
लीची के किसानों को लगता है कि लीची को बदनाम करने के पीछे ‘आम’ के व्यापारियों की लॉबी का हाथ है.किसानों का आरोप बड़ा है. उनका कहना है कि कि कुछ मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई की मैंगो लॉबी इस तरह से लीची को बदनाम करने की कोशिश कर रही है. क्योंकि सीज़न में उनका मौंगो बिकता है 10-12 रुपए के रेट पर, वहीं भारत के महानगरों में लीची 250 रुपए तक के रेट पर बेचा जाता है. इसीलिए लीची किसानों को इस तरह से बदनाम करने की कोशिशें की जा रही है. कोई भी सबूतों के साथ कुछ नहीं कह रहा, सिर्फ़ क़यासों के आधार पर एक पूरी फ़सल को बदनाम किया जा रहा है”.
आखिर लीची बदनाम क्यों हो गई है. दरअसल,”दक्षिण अमरीका के कुछ हिस्सों में लीची के जैसा ही दिखने वाला ‘एकी’ नाम के फल के बीज में एमसीपीजी के ट्रेसेस पाए गए हैं.वनस्पति विज्ञान की नज़र में एकी और लीची ‘सापंडेसिया’ नामक एक ही प्लांट फ़ैमिली से आते हैं. इसलिए जब बंगलादेश में इनसेफ़िलाइटिस के कुछ मामले आना शुरू हुए तो इस पर शोध कर रहे कुछ बाल रोग विशेषज्ञों ने एक ही प्लांट फ़ैमिली और फ़सल के एक ही मौसम की वजह से इसी ‘लीची डीसीज़’ या ‘लीची रोग’ कहना शुरू कर दिया. जबकि सच्चाई ये है कि लीची से इनसेफ़िलाइटिस के सीधे तौर पर जुड़े होने के कोई निर्णायक सबूत आजतक नहीं है”.
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