सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना के बढ़ते संक्रमण ने बिहार सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है. सरकार दावे तो बड़े बड़े कर रही है लेकिन दूसरी तरफ हाथ भी खडी करती नजर आ रही है.बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच राजधानी पटना के समीप स्थित बिहटा में 500 बेड के कोविड अस्पताल का संचालन करने के लिए बिहार सरकार ने सेना से 50 डॉक्टरों की मांग की है. जाहिर है बिहार में कोरोना संक्रमण की स्थिति विकराल हो गई है, तभी तो राज्य सरकारने सेना से मदद की गुहार लगाईं है. पिछले साल भी जब राज्य में कोरोना की स्थिति बेकाबू हो गयी थी तो सेना को कमान संभालना पड़ा था. मगर क्या सचमुच बिहार की स्थिति इतनी विकराल है, या फिर राज्य सरकार की तैयारियों और व्यवस्थाओं में कोई ऐसी कमी रह गई है कि उसे इस स्थिति में सेना की शरण में जाना पड़ रहा है.
बिहार में रोज 4000 से अधिक मरीज मिल रहे थे, बुधवार को यह संख्या 6000 के पार चली गई. मगर अमूमन पूरे देश की यही स्थिति है. निश्चित तौर पर हाल के दिनों में बिहार में मरीजों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. मगर यह संख्या अभी भी महाराष्ट्र, यूपी, पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के मुकाबले काफी कम है. यहां तक कि पश्चिम बंगाल में जहां इन दिनों चुनाव आयोजित हो रहे हैं, रोज बिहार से अधिक मरीज मिल रहे हैं.
स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए मंगलवार तक आंकड़ों के मुताबिक कोरोना के कुल सक्रिय मरीजों की संख्या 20,148 थी. इनमें से सिर्फ 974 मरीजों का इलाज अस्पताल में हो रहा है. इन 974 मरीजों में से 438 कोविड केयर सेंटर में भर्ती हैं. यानी उनकी स्थिति गंभीर नहीं है. शेष 536 मरीजों कोविड डेडिकेटेड अस्पतालों में भर्ती हैं. मतलब साफ है कि स्वास्थ्य विभाग के जिम्मे यही 536 मरीज हैं, जिन्हें गंभीर इलाज की जरूरत है. मगर 11,875 सरकारी अस्पतालों वाले राज्य बिहार का स्वास्थ्य विभाग कोरोना के 536 गंभीर या कुल मिलाकर 974 मरीजों की देखरेख में खुद को अक्षम पा रहा है, तभी तो वह सेना से डॉक्टरों की मांग कर रहा है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, यह बड़ा सवाल है.
दिलचस्प है कि सरकार की तरफ से खुद यह आंकड़ा जारी किया गया है कि राज्य के अस्पतालों में 21,203 बेड पर कोरोना मरीजों के इलाज के इंतजाम हो सकते हैं. अभी भी कोविड के इलाज के लिए तय अस्पतालों में 14,909 बेड खाली हैं. तो फिर दिक्कत कहां है. संभवतः दिक्कत डॉक्टरों की ही है, तभी सरकार सेना से डॉक्टरों की मांग कर रहा है.
वस्तुतः सिर्फ 20 हजार सक्रिय मरीजों को संभाल पाने में राज्य का स्वास्थ्य महकमा इसलिए विवश नजर आ रहा है, क्योंकि उसके पास मैनपावर की भीषण कमी है. और यह कमी पिछले तीन-चार साल है, इसलिए हर गंभीर मौके पर विभाग असहाय और हताश नजर आता है.चमकी बुखार के हालात में भी बेबस था विभागअगर आप याद कर सकते हैं तो 2019 का वह दृश्य याद कीजिये जब मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में रोज बड़ी संख्या में बच्चों की मौत चमकी बुखार की वजह से हो रही थी. उस वक्त भी स्वास्थ्य विभाग इसी तरह असहाय नजर आ रहा था. उस वक्त जुलाई में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि उसके यहां डॉक्टरों के 57 फीसदी और नर्सों के 71 फीसदी पद खाली हैं. तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लगभग फटकार लगाते हुए यह कहा था कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की बहाली करना क्या कोर्ट का काम है?
मगर इस फटकार के बाद भी स्वास्थ्य विभाग ने डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की बहाली नहीं की. तभी 16 मई, 2020 को एक याचिका की सुनवाई के दौरान विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव संजय कुमार ने पटना हाईकोर्ट को बताया कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल 11,645 पदों के एवज में अभी सिर्फ 2877 डॉक्टर सेवारत हैं. मतलब यह कि एक साल में डॉक्टरों की संख्या बढने के बदले और घट गयी और एक चौथाई रह गयी. पूरे कोरोना काल में स्थिति यही रही. सरकार झूठे वादे करती रही कि वह डॉक्टरों और नर्सों की बहाली करेगी. मगर बहाली नहीं हुई.
अक्तूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर से यह मुद्दा बना. उस वक्त सत्ताधारी दलों की तरफ से वादा किया गया कि सभी खाली पड़े सरकारी पदों को भरा जायेगा. मगर नयी सरकार बनने के बाद उस वादे को भुला दिया गया. यह बात पिछले महीने विधानसभा के पटल पर रखी गयी कैग की रिपोर्ट से जाहिर हुई, जिसमें बताया गया कि राज्य में अभी भी डॉक्टरों की संख्या में 61 फीसदी और नर्सों की संख्या में 92 फीसदी की कमी है. बुधवार को पटना हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग की बदलाव व्यवस्था पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दिन में दो बार सुनवाई की. हालांकि कोर्ट ने भी अपना फोकस बेड की संख्या बढ़ाने और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने पर रखा. उसने मैनपावर के मसले पर कोई बात नहीं की. जबकि असल परेशानी वहीं है.
जुलाई, 2019 से अप्रैल 2021 तक देखें तो राज्य में डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या लगातार जरूरत से आधी और तीन चौथाई कम रही है. इस बीच राज्य में अमूमन हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति बनी रही. फिर भी सरकार ने अस्पतालों में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के खाली पड़े पदों को भरने में कोई रुचि नहीं ली. जैसे-तैसे काम चलता रहा.आज भी अगर सरकार के पास स्वीकृत पदों के मुताबिक डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी होते तो ऐसी नौबत नहीं आती. मगर जो सरकार का रवैया है, उससे साफ है कि वह खाली पड़े पदों को भरने में कोई रुचि नहीं रखती. वह मान कर चलती है कि संकट के दिन किसी न किसी तरह गुजर जायेंगे. फिर लोग भूल जायेंगे. मगर इन सबका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ रहा है.
राज्य में कोरोना की वजह से अगर सबसे बुरी स्थिति में कोई है तो वे 19,174 मरीज हैं, जिन्हें होम आइसोलेशन में रहने की सलाह देकर सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है. उनकी न निगरानी हो रही है, न उन्हें स्वास्थ्य संबंधी नियमित सलाह मिल रही है. और तो और उन्हें बाहर से सामान लाने और दूसरे कामकाज में भी कोई सहयोग नहीं मिल रहा. ऐसे में जो सामान्य मरीज हैं, वे खुद बाहर जाकर अपना काम करने को विवश हैं. उन्हें नियमित डॉक्टरी सलाह नहीं मिल रही तो वे अपने तरीके से अपना इलाज कर रहे हैं. जब घर में पड़े-पड़े उनकी स्थिति बिगड़ती है तो कोई उनकी मदद करने वाला नहीं होता है.
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