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क्यों हार गया सुशील मोदी का दावा? रैली जेपी के आंदोलन का रिकार्ड क्यों नहीं तोड़ पायी?

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क्यों हार गया सुशील मोदी का दावा? रैली जेपी के आंदोलन का रिकार्ड क्यों नहीं तोड़ पायी?

सिटी पोस्ट लाइवः क्या राजनीतिक रैलियों की भीड़ और जनांदोलनों के हुजूम के बीच कोई मुकाबला हो सकता है? यह सवाल इसलिए कि अब यह दावा किया जाने लगा हैं कि सियासत की रैली रिकार्ड तोड़ देगी और वह रिकार्ड भी तोड़ेगी जो क्रांति से बना है। पटना का गांधी मैदान कई राजनीतिक रैलियों और जनानंदोलनों का गवाह रहा है। रैलियों की फेहरिस्त लंबी है इसलिए याद नहीं की कौन-कौन सी राजनीतिक रैलियों में किस-किस का रिकार्ड टूटा है चूंकी आंदालनों से व्यवस्था बदलती है, इतिहास बनता है इसलिए यह याद है कि जब जयप्रकाश नारायण यादव की आवाज पर गांधी मैदान में हुजूम उमड़ा था तो बगैर दावे के यह आंदोलन ऐतिहासिक हो गया था। राजनीति इश्तेमाल के तरीके जानती है इसलिए सियासत के डायलाॅग जब बोले जाते हैं तो जेपी आंदोलन जैसे जनांदोलन को राजनीतिक रैली की सफलता का पैमाना समझकर उसका रिकार्ड तोड़ने का दावा कर दिया जाता है।

एनडीए की संकल्प रैली खत्म हो चुकी है। सवाल यह नहीं है कि रैली की सफलता को लेकर क्या दावे किये गये थे बल्कि सवाल यह है कि जो दावे किये गये वो क्यों किये गये खासकर ऐसे दावे। सवाल यही है कि क्या जेपी आंदोलन जैसे जनांदोलन और संकल्प रैली जैसी किसी राजनीतिक रैली का मुकाबला सही है। यह दावा सही है कि रैली ऐसे जनांदोलन का रिकार्ड तोड़ देगी जिसकी उपज बिहार की सत्ता के सिरमौर बने तमाम नेता हैं। सवाल तो यह भी है कि क्या यह दावा पूरा हुआ? जाहिर तौर पर जवाब यही होगा कि नहीं यह दावा पूरा नहीं हुआ। भला जयप्रकाश आंदोलन का हुजूम जो क्रांति की आवाज बुलंद करने को उमड़ा था, जिसमें खालिस क्रांति थी, आंदोलन था सियासत नहीं थी उसका मुकाबला कोई राजनीतिक रैली कैसे कर सकती है। जेपी से एक बात और याद आ गयी। पिछली बार जब पीएम मोदी ने गांधी मैदान में हुंकार रैली को संबोधित किया था तो नीतीश कुमार के बारे में कहा था कि जिसने जेपी को छोड़ दिया वो भला बीजेपी को क्यों नहीं छोड़ देगा? तो जिक्र तब भी जेपी का था और अब भी है दिलचस्प यह कि नीतीश कुमार ने जेपी को छोड़ा या नहीं छोड़ा यह पता नहीं चला लेकिन नीतीश ने बीजेपी को ज्यादा देर तक नहीं छोड़ा तभी तो संकल्प रैली में तस्वीर बदल गयी थी। पीएम मोदी और नीतीश कुमार दोनों एक दूसरे का गुणगान कर रहे थे। पहले बता चुका हूं कि सियासत इश्तेमाल के तरीके जानती है समझती है तो क्या राजनीति और राजनेताओं ने जेपी के इश्तेमाल का तरीका भी समझ लिया है।

बस शायद अंतर नहीं समझ पाए जनआंदोलन और राजनीतिक की रैलियों का इसलिए तो यह कहकर बीजेपी ने रैली के हिट और फ्लाॅप होने का पैमाना ज्यादा बड़ा कर लिया कि यह रैली जेपी की रैली का रिकार्ड तोड़ देगी। जाहिर है कोशिश जेपी के आंदोलन बनाम संकल्प रैली बनाने की हुई, हार सियासत की रैली की होनी थी इसलिए यह दावा हार गया कि जेपी के आंदोलन का रिकार्ड टुटेगा और यह भरोसा एक बार फिर जीत गया कि देश में क्रांति की गुजांईश आंदोलन की गुंजाईश अब भी बची हुई है और यह यकीन अपनी जगह पर अब भी कायम है कि आंदोलन का हुजूम सियासत के मेले की भीड़ का मुकाबला नहीं कर सकती है दावा भले रिकार्ड तोड़ने का हो लेकिन रिकार्ड टूटता नहीं है।

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