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कब नीतीश कुमार होगें बीजेपी से अलग और क्यों लालू होगें बीजेपी के साथ ?

क्यों लालू के पक्याष में कमजोर हुई यादव-मुसलमान की गोलबंदी

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कब नीतीश कुमार होगें बीजेपी से अलग और क्यों लालू होगें बीजेपी के साथ ?

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में लोक सभा चुनाव का परिणाम बहुत चौंकाने वाला है. लालू यादव की पार्टी RJD का यादव और अल्पसंख्यक वोट बैंक 28 फिसद से ज्यादा है. इसी समीकरण की वजह से वो बिहार की राजनीति में बहुत कामयाब हुए हैं. इसबार लोक सभा चुनाव में उनकी पार्टी का अलायंस कुशवाहा समाज के नेता उपेन्द्र कुशवाहा, महा-दलित के नेता जीतन राम मांझी और मल्लाह के नेता मुकेश सहनी के साथ साथ कांग्रेस पार्टी के साथ भी था. यानी अपने पुराने राजनीतिक समीकरण को उन्होंने विस्तार देने की कोशिश की. लेकिन फिर भी एक से ज्यादा सीट खाते में नहीं आई.

अब सबके जेहन में सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. दरअसल, पहले लालू यादव केवल यादवों के ही नहीं बल्कि दलित-पिछड़ा और अति-पिछड़ा समाज के नेता माने जाते थे. उनके दल में हर जाति के कदावर नेता हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ लालू यादव की राजनीति बदली. दूसरी जातियों के नेता पीछे छूटते गए और उनका सारा ध्यान यादव समाज पर जा टिका. इसबार के चुनाव में उन्होंने इसकी भरपाई के लिए सभी जातियों के बड़े एताओं के साथ गठजोड़ किया. नेता तो उनके साथ आ गए लेकिन उनका वोटर नहीं आया.

सवाल ये उठता है कि जब यादव लालू यादव को छोड़ देगें और अल्पसंख्यक नीतीश कुमार के साथ खड़े हो जायेगें तो क्या होगा. आप ठीक ही सोंच रहे हैं .बिहार का राजनीतिक समिकराब बदल जाएगा. अपना अस्तित्व बचाने के लिए आरजेडी बीजेपी के साथ जाने के लिए मजबूर हो जायेगी और नीतीश कुमार को बीजेपी को छोड़ कर फिर से राज्य में एक दूसरी बड़ी राजनीतिक ताकत बनने का मौका मिल जाएगा. नीतीश कुमार को अगर मजबूत किया जाए तो बीजेपी से लड़ाई लड़ सकते हैं. यहीं कारण है कि अल्पसंख्यकों का झुकाव नीतीश कुमार की तरफ बढ़ा. अल्पसंख्यक बहुल ईलाकों के मतदान केन्द्रों से जो रिपोर्ट सामने आई उसके मुताबिक़ भी अल्पसंख्यकों ने जेडीयू के पक्ष में खुलकर वोट किया.

यादवों की गोलबंदी टूटने की एक वजह तो आरजेडी का कमजोर दिखना है और दूसरा बीजेपी की तरफ से यादवों को ज्यादा तरजीह दिया जाना है. यादव भले भावनात्मकरूप से लालू यादव से जुड़े हैं लेकिन वो बीजेपी को अपना शत्रु नहीं मानते. उन्हें सत्ता में जो भी भागेदारी देगा उसका साथ वो देगें. बीजेपी ने ज्यादा यादवों को उम्मीदवार बनाया तो यादवों ने उन्हें जिताया भी. पारिवारिक कलह की वजह से भी यादवों का लालू परिवार से मोहभंग हुआ.

सवाल ये उठता है कि जब यादव लालू यादव को छोड़ देगें और अल्पसंख्यक नीतीश कुमार के साथ खड़े हो जायेगें तो क्या होगा. आप ठीक ही सोंच रहे हैं .बिहार का राजनीतिक समिकरण बदल जाएगा. अपना अस्तित्व बचाने के लिए आरजेडी बीजेपी के साथ जाने के लिए मजबूर हो जायेगी और नीतीश कुमार को बीजेपी को छोड़ कर फिर से राज्य में एक दूसरी बड़ी राजनीतिक ताकत बनने का मौका मिल जाएगा. लेकिन आरजेडी और बीजेपी दोनों दलों के नेता एक दुसरे के साथ जाने की संभावना को सिरे से खारिज कर रहे हैं.

लेकिन ये तो सबको पता है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं. जब नीतीश कुमार अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए लालू यादव के साथ जा सकते हैं तो अपने पक्ष में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी कमजोर पड़ने पर अपनी राजनीतिक वजूद बचाने के लिए आरजेडी भी बीजेपी के साथ खडी हो सकती है. लेकिन इतना बड़ा उलटफेर एक झटके में नहीं होनेवाला. इसी अगले साल होनेवाले राज्यों के विधान सभा चुनाव के बाद बात आगे बढ़ेगी.  नीतीश कुमार के लिए बीजेपी को छोड़ना कोई बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन लालू यादव तो तभी बीजेपी के साथ जायेगें जब मरने की नौबत आ जायेगी. मरता क्या न करता?

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