“बिहार चुनाव विशेष” बिहार लोकसभा चुनाव में राजपूत उम्मीदवारों की कितनी है अहमियत
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में लोकसभा की बात करें तो,यहाँ कुल 40 सीटें हैं। इस सूबे में चुनावी लड़ाई बीजेपी समर्थित एनडीए और राजद समर्थित महागठबंधन के बीच में है। सियासी दांव-पेंच के जरिये अधिक से अधिक वोटों को अपने पाले में लेने के लिए दोनों गठबन्धन हर तरह के पासे फेंक रहे हैं। वैसे पूरे देश को पता है कि बिहार का चुनाव, अमूमन जाति और धर्म के समीकरण के आधार पर लड़े जाते रहे हैं। इसबार बिहार में भाजपा ने जहाँ 5 राजपूतों को टिकट दिया है वहीँ भाजपा की सहयोगी पार्टियाँ जदयू और लोजपा ने क्रमशः एक-एक राजपूत को टिकट दिया है ।इस तरह से भाजपा नीत एनडीए ने कुल 40 सीटों में से 7 सीट राजपूतों को दिया है जो बिहार में राजपूतों की जनसंख्या के हिसाब से तो,एक मायने में सही प्रतीत होता है लेकिन जहाँतक राजनीतिक हिस्सेदारी का सवाल है तो,उस लिहाज से एक-दो सीट कम है ।
राजपूत उम्मीदवारों की बात करें तो, एनडीए ने बीजेपी से राधा मोहन सिंह को मोतिहारी से,बीजेपी से सुशील कुमार सिंह,औरंगाबाद से, बीजेपी से राजीव प्रताप रुढ़ी,सारण से बीजेपी से जनार्दन सिंह सिग्रीवाल,महाराजगंज से,बीजेपी से राज कुमार सिंह,आरा से,एनडीए की सहयोगी पार्टी लोजपा से वीणा देवी,वैशाली से और जदयू से कविता सिंह को सिवान से उम्मीदवार बनाया गया है ।राजद नीत महागठबन्धन में राजद नें 3 राजपूतों को तो कांग्रेस ने 1 राजपूत को टिकट दिया है । इस तरह महागठबंधन ने 40 में से कुल 4 राजपूत उम्मीदवारों को टिकट दिया है जो बिहार में राजपूतों की जनसंख्या और राजनीतिक हिस्सेदारी,दोनों लिहाज से बेहद कम है ।
महागठबन्धन के राजद ने रघुवंश प्रसाद सिंह को वैशाली से, राजद ने जगदानंद सिंह को बक्सर से और राजद ने रणधीर सिंह को महाराजगंज से अपना उम्मीदवार बनाया है ।महागठबन्धन के साथी कांग्रेस ने उदय सिंह को पुर्णिया से अपना उम्मीदवार बनाया है ।यहाँ यह बताना बेहद लाजमी है कि राजद ने राज्यसभा में जहाँ सामान्य वर्ग को दिए जाने वाले दस प्रतिशत आरक्षण बिल का पुरजोर विरोध करते हुए बिल के विरुद्ध नजे केवल वोट किये थे,बल्कि महागठबन्धन के नायक और राजद के युवराज तेजस्वी अपने कई भाषणों में यह कहते रहे हैं कि सवर्ण उनके कभी भी वोटर नहीं रहे हैं ।यानि राजद को सवर्ण अछूत मानते हैं ।जब तेजस्वी यादव को यह लगता है कि सवर्ण उनकी पार्टी राजद को वोट नहीं देते हैं और नहीं देंगे,तो फिर सवर्ण राजपूत उम्मीदवार को चुनावी समर में उतारने की क्या जरूरत थी ?इस तरह की जातीय राजनीति करने वाले तेजस्वी यादव से समाज की सभी जातियों और धर्म के लोगों को साथ लेकर चलने की उम्मीद पालना, सिरे से बेमानी साबित होगी।
बिहार में अनुमानित किस जाति के कितने वोट हैं ।
यादव-14.4 %
कोईरी-6.4 %,
कुर्मी-3.5 %
पासवान-4%
मुसहर-2.8%
भूमिहार-4.7%
ब्राह्मण-5.7%
राजपूत-5.2%
कायस्थ-1.5%
आदिवासी- 1.3%
रविदास-4 से 5%
मुस्लिम-16.9% और शेष वैश्य और दलित-महादलित हैं।
इस बार के चुनाव में बिहार का बाँका सीट भी काफी चर्चित सीट में से एक है,जहाँ से पुतूल कुमारी निर्दलीय लड़ रहीं हैं और 18 अप्रैल को दूसरे चरण के हुए मतदान के बाद वे सीधी टक्कर में हैं ।आपको बताते चलें कि जदयू के संस्थापक सदस्यों में से एक स्वर्गीय दिग्विजय सिंह की धर्मपत्नी पुतूल कुमारी का टिकट नितीश कुमार के इशारों पे काट कर गिरधारी यादव को दिया गया। यहाँ कयास यह लगाया जा रहा है कि 2009 का इतिहास, फिर से यहाँ की जनता के द्वारा दोहरा दिया जायेगा ।
गौरतलब है कि जदयू की लहर में भी दिग्विजय सिंह,2009 में बतौर निर्दलीय विजयी हुए थे। बिहार में 2 जगहों पर राजपूत बनाम राजपूत की लड़ाई है। वैशाली लोकसभा से एक तरफ लोजपा से वीणा देवी मैदान में हैं,तो दूसरी तरफ राजद से रघुवंश प्रसाद सिंह।महराजगंज सीट पर जहां राजद से रंधीर सिंह उम्मीदवार हैं तो उनके खिलाफ भाजपा से जनार्दन सिंह सिग्रिवाल चुनाव समर में डटे हैं। ये दो सीटे एसी हैं जहां का परिणाम कुछ भी हो पर सांसद राजपूत ही होगा। राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो, कुल 10 राजपूत उम्मीदवारों में से 7 के संसद पहुंचने की पूरी संभावना है ।यह तय माना जा रहा है कि संख्यां 7 से बढ़ सकती है लेकिन कम नहीं हो सकती है।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह का ‘”चुनाव विश्लेषण”
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