मेरा कसूर क्या है जो कार्रवाई होगी:सुधाकर सिंह.
कहा-अगर मेरे खिलाफ कारवाई हुई तो किसानों के लिए खुलकर काम करने का मिलेगा मौका.
सिटी पोस्ट लाइव :RJD के विधायक सुधाकर सिंह की वजह से महागठबंधन में घमाशान मचा है.वो लगातार नीतीश कुमार पर हमला बोल रहे हैं.JDU उनके खिलाफ कारवाई की मांग कर रही है.तेजस्वी यादव ने उन्हें बीजेपी का एजेंट बता दिया है.उन्होंने संकेत दे दिया है कि अगर अभी भी वो नहीं रुके तो कारवाई तय है.लेकिन सुधाकर सिंह नहीं मानते कि उन्होंने महागठबंधन के खिलाफ कुछ भी गलत नहीं बोला है. उनका कहना है कि उन्हें उनकी पार्टी का 100 फीसदी समर्थन है.
अपने को बीजेपी का एजेंट बताये जाने और बीजेपी के ईशारे पर नीतीश कुमार के खिलाफ बोले जाने के आरोप पर सुधाकर सिंह का कहना है कि अपनी पार्टी के सिपाही के नाते उसी के डिमांड को पूरा कराने में वो लगे हैं. खेती-किसानी की बेहतरी के लिए मंडी कानून को लागू करना, राजद का बहुत पुराना एजेंडा है. यह पूरा न हो, इसलिए तमाम किसान विरोधी ताकतों (पार्टियों/नेताओं) ने बहुत चालाकी से मेरी मुहिम को बहुत सतही राजनीति से जोड़कर यह सब कंफ्यूजन पैदा कर दिया है.
उन्होंने कहा कि ये उपेंद्र कुशवाहा और शिवानंद तिवारी क्या बोलेंगे? कौन नहीं जानता कि शिवानंद जी, हमारे नेता लालू प्रसाद को जेल भिजवाने वालों में रहे. उपेंद्र जी का पाला बदल किसी से छुपा है क्या? उनकी बातों की नोटिस नहीं लेता.सुधाकर का कहना है कि जनहित के व्यापक मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में ये बहुत छोटे मसले हैं. उलझाने की बातें हैं. और फिर मैं कोई अपनी या नई बात कह भी नहीं रहा. अपनी ही पार्टी के लाइन पर हूं. हमारे नए राजनीतिक दोस्तों की तरफ से भी, अब भी ‘खौफनाक मंजर’ या ‘पहले कुछ भी था क्या’, जैसे तंज रुके हैं क्या?
सुधाकर सिंह का दावा है कि उनकी पार्टी उनके समर्थन में है.उन्होंने कहा कि मेरे इस्तीफे के ठीक चार दिन बाद मेरी पार्टी के 6 अक्टूबर के आर्थिक प्रस्ताव में वो सारी बातें आ गई जिसे मैं अंजाम तक पहुंचाने में लगा हूँ.सुधाकर सिंह ने कहा कि उन्होंने कुछ नया नहीं बोला है.सुधाकर सिंह ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते हुए कहा कि राजनीति में स्टाम्प पेपर पर लिखकर कुछ नहीं होता.सुधाकर सिंह का कहना है कि अगर उनके खिलाफ कारवाई हुई तो वो किसानों के लिए खुलकर काम करेगें.उन्होंने लगे हाथ अपना अजेंडा भी गिना दिया. आज की तारीख में बिहार के किसान सालाना सवा लाख करोड़ रुपए का लाभ पाने से वंचित हैं.
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