उपेन्द्र कुशवाहा के स्टैंड्स से उनकी पार्टी में आ गई है बगावत की नौबत
सिटी पोस्ट लाइव : रालोसपा सुप्रीमो से नीतीश कुमार और बीजेपी से ज्यादा परेशान रालोसपा के नेता हैं. पार्टी के एक बड़े नेता के अनुसार गेस्ट हाउस में एक महिना पहले उपेन्द्र कुशवाहा ने पार्टी के सभी 6 बड़े नेताओं के साथ बैठक की थी. इस बैठक में एक नेता को छोड़कर बाकी सभी 5 नेता एनडीए के साथ रहने के पक्ष में थे. उनकी राय सूनने के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने साफ़ कहा था कि वो एनडीए में ही बने रहेगें. लेकिन जिस तरह से वो लगातार स्टैंड बदल रहे हैं और बीजेपी के साथ साथ नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं उससे एनडीए के साथ रहने के पक्षधर नेता परेशान हैं. एक नेता ने सिटी पोस्ट लाइव से कहा कि कभी उपेन्द्र कुशवाहा बीजेपी को तो कभी जेडीयू को पांच पांच सीट पर लड़ने का बयान दे देते हैं तो कभी कहते हैं कि लालू यादव इतिहास हो गए हैं और उनके बेटे तेजस्वी अभी राजनीति के ट्रेनी हैं. किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वो करना क्या चाहते हैं.
उनके बार बार स्टैंड बदले जाने से महागठबंधन और एनडीए दोनों के साथ जाने के पक्षधर नेता कन्फ्यूज्ड हैं. उनका कहना है कि एनडीए में रहना है तो नीतीश कुमार के खिलाफ इस तरह से मोर्चा खोलने का कोई मतलब नहीं है. और महागठबंधन में जाना है तो लालू को इतिहास बताना और उनके बेटे तेजस्वी को ट्रेनी कहने का क्या मतलब निकलता है. इस तरह के बयान से तो यहीं लगता है कि जल्द से जल्द मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में उपेन्द्र कुशवाहा बउरा गए हैं.वो तय ही नहीं कर पा रहे कि किसके साथ रहना है. उनके बयान से एनडीए के नेता कार्यकर्त्ता तो नाराज हैं ही महागठबंधन में भी नाराजगी बढ़ रही है.
रालोसपा के एक नेता का कहना है कि जिस तरह से वो नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं एनडीए का दरवाजा भी बंद हो जाएगा और महागठबंधन का दरवाजा भी उनके लिए नहीं खुलेगा. उपेन्द्र कुशवाहा केवल एनडीए में ही नहीं पार्टी में भी पूरी तरह से अलग थलग पड़ चुके हैं.रालोसपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पासवान अपने बेटे के साथ नीतीश कुमार के सामने जाकर सरेंडर कर चुके हैं. बोल चुके हैं कि उन्हें एनडीए के साथ ही रहना है. दूसरी तरफ उनके नेता नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.ऐसे में एनडीए में उनके बने रहने की संभावना भी ख़त्म हो जायेगी.रालोस्पा के एक नेता का कहना है कि आपस में रिश्ते इतना ख़राब कर लेने के बाद साथ रहने का भी कोई मतलब नहीं रह जाएगा क्योंकि पार्टी के कार्यकर्त्ता याएक दूसरे घटक दल को जिताने की जगह हराने में लग जायेगें.
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