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बड़ी राजनीतिक ताकत बनने की चाह में उपेंद्र कुशवाहा ने बदले अपने रास्ते

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बड़ी राजनीतिक ताकत बनने की चाह में उपेंद्र कुशवाहा ने बदले अपने रास्ते

सिटी पोस्ट लाइव : 2 फरवरी 1960 को बिहार के वैशाली में एक मध्यम वर्गीय हिंदू परिवार में जन्मे उपेन्द्र कुशवाहा आज बिहार पॉलिटिक्स में सबसे ज्यादा चर्चा में बने हुए हैं. पटना के साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम.ए करने के बाद लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुवात करनेवाले उपेन्द्र कुशवाहा ने 1985 में राजनीतिक शुरुवात की. 1988 तक युवा लोकदल के राज्य महासचिव रहे. 1994 में उन्हें समता पार्टी का महासचिव बनाया गया और यहीं से उनकी राजनीतिक पहचान बननी शुरू हो गई. समता पार्टी के प्रमुख नीतीश कुमार के के वो खासमखास बन गए.

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद कुशवाहा बिहार की राजनीति में 2003 में एक बड़ा नाम बनकर उभरे . मुख्यमंत्री  के बाद  सबसे ताकतवर कुर्सी कुशवाहा के पास आ गई. अपने को नेता विपक्ष बनानेवाले नीतीश कुमार के प्रति कुशवाहा हमेशा वफादार बने रहे. उनके पक्ष में हवा बनाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. लेकिन आगे चलकर दोनों के रिश्ते में बहुत कडवाहट बढ़ गई. जब 2005 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा का बंगला खाली कराने के लिए उनकी गैरमौजूदगी में उनके घर का सामान तक बाहर फिंकवा दिया.

राजनीति के खेल में कुशवाहा के लिए यह पहला सबक था. उन्होंने उसी समय समता पार्टी का मोह छोड़ दिया और अपनी राष्ट्रीय समता पार्टी बना ली. यहां से उन्होंने अपनी खोई राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करने की जद्दोजहद शुरू की. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बिहार की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए अपनी चुनावी ताकत का स्पष्ट संकेत दिया.बिहार की जातीय राजनीति की जमीन पर कुशवाहा की जड़ें जमने लगीं तो उसकी आहट नीतीश कुमार तक भी जा पहुंची.नीतीश कुमार ने कुशवाहा की एक सार्वजनिक सभा में पहुंचकर उन्हें गले लगा लिया. सारी शिकवा  शिकायतें दूर करने का भरोसा दिया और उन्हें राज्य सभा में भेज दिया.

राज्यसभा के गलियारे ने कुशवाहा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को और भी बढ़ा दिया. 2013 में कुशवाहा राज्यसभा से इस्तीफा देकर नीतीश कुमार के खिलाफ फिर से मोर्चा खोल दिया. अपने जीवन में कई बड़े दांव लगाने वाले कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नाम से नई पार्टी बनाकर फिर पासा फेंका और 2014 में एनडीए में शामिल होने के बाद लोकसभा चुनाव में तीन सीटें जीतकर केंद्र में मंत्री बन गए.

अब उपेन्द्र कुशवाहा नि नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. उन्हें पता है जबतक नीतीश कुमार हैं, उन्हें मौका नहीं मिलनेवाला. इसलिए लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने एकबार फिर से नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लेकिन नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत की वजह से bjp उपेन्द्र कुशवाहा को ज्यादा तरजीह नहीं दे पाई. आखिरकार कुशवाहा ने नदा को छोड़ दिया है. अब वो महागठबंधन के साथ हैं.आज की तारीख में  देशभर में राजनीतिक समीकरण बहुत तेजी से बदल रहे हैं. दुश्मनी और दोस्ती की नई परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं और आस्था और विश्वास के नए केंद्र उभर रहे हैं. ऐसे में मोदी सरकार में मंत्री रहे उपेंद्र कुशवाहा का एनडीए से हटना एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनने का रास्ता तलाश करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.अब ये देखना बाकी है कि क्या आनेवाले दिनों में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार का विकल्प बन पाते हैं.

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