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उपेन्द्र कुशवाहा BJP के लिए हेडक नहीं बल्कि नीतीश कु. के खिलाफ हैं एक बड़ा हथियार

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उपेन्द्र  कुशवाहा BJP के लिए हेडक नहीं बल्कि नीतीश कु. के खिलाफ हैं एक बड़ा हथियार

कनक कुमार ; बिहार एनडीए में सीटों के बटवारे को लेकर घमशान मचा हुआ है. बीजेपी ने जेडीयू के साथ बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर नीतीश कुमार को शांत तो कर दिया है लेकिन दूसरे सहयोगी दलों रालोसपा और एलजेपी को बेहद नाराज कर दिया है. नीतीश कुमार को मनाया गया तो उपेन्द्र कुशवाहा नाराज हो गए. अब अगर उपेन्द्र कुशवाहा को मनमाफिक सीटें बीजेपी दे देती है तो उसे एलजेपी के कोटे की सीट ज्यादा काटनी पड़ेगी यानी उपेन्द्र कुशवाहा खुश तो रामविलास पासवान नाराज होगें.

उपेन्द्र कुशवाहा और रामविलास पासवान की वजह से एनडीए में सीटों का बटवारा अंतिम रूप नहीं ले पा रहा. नीतीश कुमार और अमित शाह के बीच अंतिम दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा और पासवान की वजह से अंतिम ऐलान नहीं हो पा रहा है. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को दिल्ली में बैठे लोग भले गंभीरता से नहीं ले रहे हों  लेकिन बिहार की राजनीति में कुशवाहा बीजेपी के लिए सबसे बड़े हथियार हैं. कुशवाहा ऐसे हथियार हैं जिसका इस्तेमाल समय आने पर बीजेपी  नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल कर सकती है. यही वजह है कि तेजस्वी के साथ खुल्लेयाम बैठक करने के वावजूद और नागमणि के द्वारा नीतीश कुमार पर लगातार निशाना साधे जाने के वावजूद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कुशवाहा के साथ हर कीमत पर सुलह करना चाहते हैं.

दरअसल, उपेन्द्र कुशवाला बिहार में अपने-आप को कोईरी जाति के सर्वमान्य नेता मानते हैं. जातिगत आकड़ों के अनुसार भी  बिहार में कोईरी मतदाताओं की संख्या ओबीसी वोटरों में यादवों के बाद सबसे ज्यादा है. हालांकि बीजेपी भी सम्राट चौधरी के बहाने इन कोईरी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश हमेशा करती रही है. नीतीश कुमार भी धानुक-कोईरी सम्मेलन के बहाने इन वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश लगातार कर रहे हैं. उपेन्द्र कुशवाहा को अपनी इस ताकत का अंदाजा है .इसे और भी मजबूत करने के लिए ही  उन्होंने पुराने वामपंथी और इस जाति के कद्दावार नेता जितेन्द्र कुशवाहा को उन्होंने अपनी पार्टी का  उपाध्यक्ष बनाया है.

जहाँ तक नीतीश कुमार का सवाल है ,बिहार में उनकी बिरादरी कुर्मी जाति के मात्र 3 फीसदी वोटर हैं और अगर वो धानुकों को अपने साथ मिला लेते हैं, तो भी दोनों को जोड़कर मतदाताओं की संख्या साढ़े चार फीसदी होती है. उपेन्द्र कुशवाहा एक महत्वाकांक्षी नेता हैं.हमेशा से उनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रही है. उपेन्द्र कुशवाहा के करीबी लोगों का मानना है कि अगर 11 फीसदी वोटों वाले लालू बिहार में सीएम की कुर्सी पर जा सकते हैं और सिर्फ साढ़े चार फीसदी वोटों के सहारे नीतीश देश में गैर यादव पिछड़ों के सबसे बड़े नेता बन सकते हैं, तो उपेंद्र कुशवाहा क्यों नहीं? उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार से मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो जाने की मांग भी खुल्लेयाम करते रहे हैं.

बीजेपी के सामने कुशवाहा  के साथ-साथ गैर यादव पिछड़ा वर्ग के वोटरों को भी साधने की चुनौती है. पिछले दो चुनावों के परिणाम बताते हैं कि पिछड़ों और दलितों पर नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ है. आज की तारीख में अगर बीजेपी के साथ अति-पिछड़ा वर्ग जुड़ा  हुआ है तो इसकी वजह नीतीश कुमार ही हैं. इसीलिए बीजेपी की मजबूरी अभी नीतीश कुमार बने हुए हैं. लेकिन बीजेपी  बिहार में नीतीश कुमार का विकल्प भी तलाश रही है. क्योंकि नीतीश कुमार कब क्या करेगें ,इसको लेकर बीजेपी ज्यादा आश्वस्त नहीं है. पीछालिबार जिस तरह से वो महागठबंधन के साथ चले गए थे, बीजेपी को उनके ऊपर भरोसा नहीं रहा. वैसे भी नरेन्द्र मोदी का विरोध कर चुके नीतीश कुमार बीजेपी को फूटी आँख भी नहीं सुहाते. बीजेपी और नीतीश कुमार के रिश्ते में प्रेम कम घृणा ज्यादा है. अगर फिर भी साथ हैं तो इसके पीछे दोनों की मज़बूरी है.

बीजेपी उपेन्द्र कुशवाहा को अंजर-अंदाज कर नीतीश को बिहार के साथ-साथ देश की राजनीति में पिछड़ों का बड़ा चेहरा बनाने देना नहीं चाहती. फिर्हाल बिहार में उसके पास उपेन्द्र कुशवाहा ही ऐसे नेता हैं जो नीतीश कुमार की काट बन सकते हैं.इसलिए मानकर चलिए कि सीटों के बटवारे को लेकर चल रहा घमाशान केवल ज्यादा से ज्यादा सीटों की बारगेनिंग को लेकर चल रही है . अगर उपेन्द्र कुशवाहा को सीएम बनाना है तो बीजेपी को नहीं छोड़ सकते और अगर बीजेपी को नीतीश कुमार को निबटाना है तो वह उपेन्द्र कुशवाहा को नहीं छोड़ सकती .

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