पार्टी और महागठबंधन में अपनी साख बनाए रखने की उपेन्द्र कुशवाहा की चुनौती
सिटी पोस्ट लाइव : कभी सभी दलों के लिए जीत की गारंटी माने जानेवाले रालोसपा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा लगातार कमजोर पड़ते जा रहे हैं. राजनीतिक दलों के लिए हॉट केक बने उपेंद्र कुशवाहा आज अकेले पड़ते जा रहे हैं. एक के बाद एक उनके सहयोगियों के अलग होने से उपेन्द्र कुशवाहा परेशान हैं. वो पार्टी को जितना ज्यादा सँभालने की कोशिश कर रहे हैं, बात उतनी ही बिगड़ती जा रही है. पूर्व केंद्रीय मंत्री कुशवाहा की हर बाजी आज उल्टी पड़ती जा रही है.
रालोसपा के तीन सांसद हैं जिसमे से एक खुद उपेन्द्र कुशवाहा हैं. कुशवाहा के दाहिने हाथ माने जाने वाले अरुण कुमार बहुत पहले ही उपेन्द्र कुशवाहा को छोड़ चुके हैं. विधायक ललन पासवान भी कुशवाहा से अलग हो चुके हैं. उन्होंने तो पार्टी पर ही अपना दावा ठोक दिया है. विधायक सुधांशु शेखर भी साथ छोड़कर नीतीश कुमार के भरोसेमंद साथी बन चुके हैं.अब उपेन्द्र कुशवाहा के पास केवल एक ही सांसद रामकुमार बचे हैं. वो भी बहुत भरोसेमंद नहीं हैं. वो NDA के साथ जाने की हिमायत करते रहे हैं.
अब कुशवाहा की पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि ने भी उस समय साथ छोड़ा है जब कुशवाहा को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. एक तरफ लाठी बरसने के बाद कुशवाहा हॉस्पिटल में रहे. वहीं दूसरी ओर नागमणि कुशवाहा के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी नीतीश कुमार के साथ मंच साझा करते रहे. पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद नागमणि ने साफ कर दिया है कि उनके रास्ते अब अलग हो गए हैं.बहरहाल, लगातार पार्टी से अलग हो रहे सहयोगियों के बाद कमजोर पड़ रहे कुशवाहा को महागठबंधन में कितनी अहमियत मिलेगी, कह पाना मुश्किल है.अपनी पार्टी को बचाए रखना और महागठबंधन में अपनी साख बनाए रखना उपेन्द्र कुशवाहा की सबसे बड़ी चुनौती है.
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