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कोरोना काल में 1417 करोड़ की कटौती पर असंवैधानिक, अनैतिक व संघीय ढांचे पर प्रहार: हेमंत

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सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे मुलाकात के लिए समय देने का आग्रह किया है और डीवीसी के बकाया के रूप में 1417करोड़ रुपये की राशि काट लिये जाने के फैसले पर अपना विरोध दर्ज कराया है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के उस निर्णय की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है, जिसमें राज्य सरकार के आरबीआई में संघारित राजकीय कोष से 1417 करोड़ रुपये की कटौती कर ली गयी है। उन्होंने कहा कि यह कार्रवाई यद्यपि राज्य सरकार, केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच त्रिपक्षीय समझौते के प्रावधानों के तहत की गयी है, परंतु वे इस निर्णय से व्यथित तथा आहत होकर यह बताना चाहते है कि वर्त्तमान परिस्थितियों में भारत सरकार को यह कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी।

उन्होंने बताया कि त्रिपक्षीय समझौता केंद्रीय विद्युत उत्पादन कंपनियों से ऊर्जा क्रय करने के क्रम में इन कंपनियों के वित्तीय हितों की रक्षा के लिए किया गया है। यह समझौता सामान्य काल को ध्यान में रख कर किया गया था और इसके प्रावधानों को महामारी काल में लागू करना प्रथम दृष्टया असंवैधानिक, अनैतिक एवं संघीय ढांचे पर प्रहार करता दिख रहा है। उन्होंने कहा कि आजाद भारत के इतिहास में इस तरह की कटौती दूसरी बार हुई है, झारखंड से ज्यादा बकाया कई राज्यों का है, झारखंड का बकाया तो मात्र 5500 करोड़ का था, तब भी कटौती झारखंड जैसे आदिवासी दलित, अल्पसंख्यक बहुल गरीब राज्य से की गयी है।

हेमंत सोरेन ने बताया कि जनवरी 2020 से उनके नेतृत्व में कार्य करना शुरू किया और इस दौरान डीवीसी की कुल देयता 1313 करोड़ बनती है, जिसके विरूद्ध इस महामारी के समय में भी उन्होंने डीवीसी को 741 करोड़ का भुगतान किया, 5514 करोड़ की देनदारी विगत पांच वर्षां की भाजपा सरकार के कार्यकाल में सृजित हुई, जो उन्हें विरासत में मिली। 90 दिन से अधिक समय बीतने पर भुगतान नहीं होने की परिस्थिति में ऐसी कटौती करने का प्रावधान त्रिपक्षीय समझौते हैं, परंतु इस प्रावधान का उपयोग पूर्व की राज्य सरकार के समय कभी नहीं किया गया। मुख्यमंत्री ने बताया कि इस राशि का उपयोग राज्य के गरीब, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति एवं महिलाओं के विकास तथा कल्याण के लिए किया जाना था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य विद्युत उत्पादक केंद्रीय कंपनियों के बकाये का ससमय भुगान सुनिश्चित करना है।

मुख्ययतः ये संस्थान कोयला आधारित है और विद्युत उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत लागत कोयले से संबंध रखता है। इसलिए बकाया राशि का लगभग 70 प्रतिशत अंश उत्पादन कंपनियों के माध्यम से कोयला के उपक्रमों को जाता है। कोयला मंत्रालय के विभिन्न उपक्रमों के विरू; राज्य सरकार की एक बड़ी राशि बकाया के रूप में दर्ज है, इस समस्या कस समग्र समाधान तभी संभव हो सकेगा, जब केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय को भी इस त्रिपक्षीय समझौते में चौथे पक्ष के रूप में जोड़ा जाएगा। ऐसा होने पर कोयला मंत्रालय के उपकमों से राज्य सरकार को होने वाली प्राप्तियों को ध्यान में रखते हुए सभी प्रकार की देयता का निष्पादन किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि वे विद्युत मंत्रालय को यह निर्देश दे कि महामारी के इस दौर में इस प्रकार की कटौती भविष्य में भी नहीं की जाए और इस त्रिपक्षीय समझौते से कोयला मंत्रालय को एक प़क्ष के रूप में जोड़ा जाए।उन्होंने यह भी आग्रह किया कि उन्हें मंत्रिपरिषद के कुछ सहयोगियों के साथ मिलने का समय दिया जाए, ताकि वे वस्तुस्थिति से उन्हें अवगत करा सके।

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