सिटी पोस्ट लाइव :कुढ़नीसमेत बिहार विधान सभा के तीन सीटों में से बीजेपी के दो सीट जीत जाने के बाद महागठबंधन के भविष्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.एक सीट मोकामा जिसे महागठबंधन ने जीता है, उसे महागठबंधन की जीत कम अनंत सिंह की व्यक्तिगत ताकत का नतीजा माना जा रहा है.मतलब साफ़ है नीतीश कुमार के RJD के साथ आने के बाद वावजूद महागठबंधन के वोट बैंक में कोई ईजाफा नहीं हुआ है.फायदे में बीजेपी है.
सबसे ख़ास बात ये है कि बीजेपी अभी अकेले मैदान में है.उसके बाद मुकेश सहनी और चिराग पासवान को साथ लाने के लिए पर्याप्त सीटें हैं.लेकिन महागठबंधन के पास तो अपने वर्तमान सहयोगी दलों को देने के लिए भी सीट नहीं है.किसी भी सूरत में RJD 100 से कम सीटों पर चुनाव नहीं लडेगी.नीतीश कुमार RJD से कम सीट पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं होगें.ऐसे में केवल 43 सीटों में कांग्रेस पार्टी, बाम दल और जीतन मांझी को कैसे महागठबंधन संतुष्ट कर पायेगा .इतनी सीटें तो अकेले कांग्रेस पार्टी मांगेगी फिर बाम दलों और हम पार्टी का क्या होगा.मुकेश सहनी और ओवैशी को महागठबंधन कैसे साथ ला पायेगा.
कुढ़नी, गोपालगंज उप चुनाव के नतीजे से साफ़ है कि मुकेश सहनी और ओवैशी की पार्टी अलग से मैदान में उतरेगीं तो सबसे ज्यादा नुकशान महागठबंधन को ही होगा.बीज्पी के पास मुकेश सहनी और चिराग पासवान दोनों को देने के लिए पर्याप्त सीटें हैं.बीजेपी 200 सीटों पर लड़कर भी मुकेश सहनी और चिराग पासवान को 43 सीटों से मैनेज कर लेगी.लेकिन तेजस्वी यादव कैसे 43 सीटों से कांग्रेस,बाम दल, हम पार्टी जो पहले से महागठबंधन में है और फिर मुकेश सहनी और ओवैशी को कहाँ से सीट देगी?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इसबार बिहार में कांग्रेस के नेत्रित्व में तीसरा मोर्चा बन सकता है.कांग्रेस पार्टी मुकेश सहनी, ओवैशी और दुसरे छोटे दलों के साथ मिलकर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.तीसरा मोर्चा भी सबसे ज्यादा नुकशान महागठबंधन को ही पहुंचायेगा क्योंकि सबका जनाधार एक ही है.जाहिर है तेजस्वी यादव के सामने बड़ी चुनौती है.कुढ़नी और गोपालगंज चुनाव के नतीजे के बाद वो नीतीश कुमार के सहारे सीएम की कुर्सी तक नहीं पहुँच पायेगें.वो नीतीश कुमार को कम से कम सीटों पर निबटाने की कोशिश कर सकते हैं.
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