सिटी पोस्ट लाइव :बिहार नगर निकाय चुनाव की तैयारी जोरशोर से चल रही है.लेकिन ये चुनाव तय समय पर हो पायेगा इसको लेकर अभी भी संशय बना हुआ है. बिहार के नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण को लेकर मामला कोर्ट में फंसा है. स्थानीय निकायों के चुनाव में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अहम फैसला सुनाया गया था.दरअसल, बिहार नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट में इन दिनों सुनवाई चल रही है. गुरुवार को सुनवाई पूरी तो हो गई लेकिन कोर्ट 4 अक्टूबर को फैसला सुनाएगा. ऐसे में उस दिन तय हो जाएगा कि नगर निकाय चुनाव पर रोक लगेगी या फिर तय कार्यक्रम के मुताबिक ही चुनाव सम्पन्न होगा.
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मानकों को पूरा नहीं कर लेती है. साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट में मानक तय कर दिए थे. आरोप है कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के मानकों को पूरा नहीं किया और नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इस संबंध में एक मामला पहले से ही पटना हाईकोर्ट में लंबित है. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि बिहार में नगर निकाय चुनाव की पहला फेज 10 अक्टूबर को है. पटना हाईकोर्ट को इस याचिका पर 10 अक्टूबर से पहले सुनवाई पूरी कर फैसला सुना देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्दश के बाद पटना हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई हुई. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर के साथ सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने पक्ष सरकार की तरफ से अपना पक्ष रखा. बिहार सरकार ने कोर्ट में कहा कि चुनाव कराने का फैसला सही है. वहीं, याचिका दायर करने वालों की ओर से बहस करने वाले वकीलों का कहना था कि बिहार सरकार ने गलत फैसला लिया है. नगर निकाय चुनाव में आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी की गई है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने फैसले में कहा गया था कि स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार पहले एक विशेष आयोग का गठन सुनिश्चित करे. सरकार द्वारा गठित आयोग इस बात का अध्ययन करे कि कौन सा वर्ग वाकई में पिछड़ा है. आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही उन्हें आरक्षण देना तय किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें इन शर्तो को पूरा नहीं करती, तब तक अगर किसी राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव होता है तो पिछड़े वर्ग के लिए रिजर्व सीट को भी सामान्य ही माना जाए.