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“चुनाव विशेष” : बिहार महागठबंधन के अस्तित्व पर उठ रहे हैं सवाल

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“चुनाव विशेष” : बिहार महागठबंधन के अस्तित्व पर उठ रहे हैं सवाल

सिटी पोस्ट लाइव : चुनाव की घोषणा होने और सीट शेयरिंग से पहले बिहार महागठबंधन, ना केवल काफी ताकतवर दिख रहा था बल्कि लग रहा था कि महागठबन्धन के सभी घटक दल फ्रंट फुट पर खेलते हुए एनडीए के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगे। लेकिन जैसे ही चुनाव आयोग ने चुनाव की तिथि की घोषणा की, तभी से महागठबन्धन में सर फुटौव्वल की तस्वीर बननी शुरू हो गयी। चारा घोटाले में झारखण्ड के रांची स्थित होटवार जेल में लालू प्रसाद यादव के बन्द होने की वजह से महागठबन्धन में बड़े भाई की भूमिका निभा रहे राजद का नेतृत्व लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव कर रहे हैं। तेजस्वी यादव का राजनीति में कम अनुभव,अति महत्वाकांक्षा और व्यक्तिक द्वेष की वजह से राजद बिहार में मजबूत महागठबन्धन बनाने असफल साबित हुआ है ।देश का पहला राज्य बिहार है,जहां एनडीए को पटखनी देने के लिए बने महागठबन्धन में सिर्फ छेद ही छेद हैं।

ये बड़ा अजीबो-गरीब महागठबन्धन है जिसके घटक दल को गठबंधन धर्म के तहत सीटें तो दी गईं लेकिन उनके पास चुनाव लड़ाने के लिए ना तो योग्य उम्मीदवार हैं और ना ही चुनाव लड़ने के लिए मजबूत फंड ।महागठबन्धन में राजद 20, कांग्रेस 9,रालोसपा 5,हम 3 और भीआईपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है ।भीआईपी के सुप्रीमो मुकेश सहनी खगड़िया से चुनाव लड़ रहे हैं ।मुकेश सहनी शेष दो सीटों के लिए राजद से उम्मीदवार मांग रहे हैं ।हम के जीतनराम मांझी गया से चुनाव से लड़ रहे हैं ।अब शेष दो सीटों में से एक के लिए राजद से उम्मीदवार मांग रहे हैं ।रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा 5 सीटों में खुद दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं ।एक सीट पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह के बेटे को उन्होंने टिकट दिया है ।दो सीटों पर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है और उम्मीदवार की तलाश जारी है ।बड़ा सवाल यह है कि जब इन नेताओं के पास उम्मीदवार ही नहीं थे,तो फिर अपने दल के खाते में ज्यादा से ज्यादा सीट लेने के लिए किचकिच क्यों कर रहे थे और हाय-तौबा क्यों मचा रहे थे ?यहाँ यह बताना बेहद लाजिमी है कि बिहार में मोटी रकम वसूल कर टिकट बेचने की रिवायत रही है ।राजद ने तो टिकट बेचने का अपना काम तेजी से कर लिया लेकिन इन नेताओं को ऊंची कीमत अदा कर टिकट के खरीददार नहीं मिल रहे हैं ।

पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को है लेकिन उससे पहले ही महागठबंधन का अंतर्कलह सामने आ चुका है ।सुपौल में कांग्रेस की मजबूत उम्मीदवार रंजीता रंजन को राजद भीतर-भीतर हराने की भगीरथ कोशिश में जुटा हुआ है ।खगड़िया में कृष्णा यादव को 6 साल के लिए राजद ने पार्टी से निष्काषित कर दिया है ।कई जगह कांग्रेस,राजद को पटखनी देने के लिए अंदर-अंदर तैयारी कर रही है ।कुल मिलाकर महागठबन्धन की नीति सीट जितने से ज्यादा,आपसी रंजिश और भड़ास निकालने की है ।लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की बगावत और लालू-राबड़ी मोर्चे के बैनर तले 20 सीटों पर निर्दलीय प्रत्यासी खड़े करने की घोषणा ने महागठबन्धन की मुश्किलें और बढ़ा दी है ।इस तमाम नौटंकी का सीधा फायदा एनडीए को मिलता दिख रहा है ।

इसी बीच कांग्रेस ने अपनी पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया है जिसमें कांग्रेस ने सत्तासीन होने के बाद नीति आयोग हटा देंगे,राफेल कैंसिल कर देंगे,देशद्रोह कानून हटा देंगे और सेना के अधिकार कम करेंगे की बात कर के देश के अंदर खलबली मचा दी है ।जनता को यह शंका होने लगी है कि कांग्रेस अलगाववादियों की मदद के मूड में है ।इस चुनावी घोषणा पत्र का भी बिहार महागठबन्धन पर व्यापक असर पड़ता दिख रहा है ।इधर बेगुसराय सीट पर सी.पी.आई. के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कन्हैया कुमार का व्यापक विरोध शुरू ही गया है ।जाहिर सी बात है कि हिंदुस्तान वाम विचारधारा से कभी भी प्रभावित नहीं रहा है ।दशकों से पश्चिम बंगाल में वाम दल की सरकार रही लेकिन अभी देश में सबसे ज्यादा गरीबी और बेकारी पश्चिम बंगाल में ही है ।यानि वामदल अपनी विचारधारा से लोगों के जीवन को बदलने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ ।यह नंगा सच है कि वाम विचारधारा से नक्सलवाद का अभ्युदय जरूर हुआ है,जो आजतक देश के लिए नासूर बना हुआ है ।

राजद, कांग्रेस से मिलकर बने बिहार महागठबन्धन के नेताओं को लोकतंत्र और संविधान बचाने की चिंता अलग से खाये जा रही है ।आठवीं तक स्कूल जाने वाले बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव संविधान बचाने की सौगंध खा चुके हैं ।हम इस बात से बेहद परेशान हैं कि आखिर संविधान को अचानक कौन सा खतरा हो गया है कि कम पढ़े-लिखे लोग भी उसे बचाने के लिए महासंग्राम की तैयारी में जुटे हुए हैं ।विश्व के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश भारत का संचालन संविधान के द्वारा ही हो रहा है ।कांग्रेस को भी संविधान बचाने की अलग से चिंता है ।जिसने कभी संविधान को ठीक से देखा भी नहीं है,वे सभी भी संविधान बचाने की मुहिम में शामिल हैं ।
इन सभी चीजों के बीच,बिहार की सबसे गरम सीट मधेपुरा में तरह-तरह के नारों के साथ चुनावी दौरे शुरू हैं ।23 अप्रैल को मधेपुरा में मतदान होगा ।शुरुआती समय में जाप के पप्पू यादव काफी मजबूत दिख रहे थे लेकिन अब एनडीए के जदयू के उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव तेजी से मजबूत हो रहे हैं ।

स्टिंग ऑपरेशन में फंसे मधेपुरा सीटिंग सासंद पप्पू यादव

मधेपरा के सिटिंग सासंद सह जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव इस बार ज्यादा बड़ी मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं ।हमेशा अपने अनर्गल बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले पप्पू यादव इस लोकसभा चुनाव के वक्त जिस नयी मुसीबत में फंसे हैं उससे उनकी राजनीतिक राह मुश्किल हो सकती है ।गौरतलब है कि पप्पू यादव एक निजी टीवी चैनल के स्टिंग में फंस गये हैं । चैनल के स्टिंग में सांसद पप्पू यादव ने पैसे के दम पर चुनाव लड़ने और जीतने की बात कबूल की है ।उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान उन्हें तकरीबन ढ़ाई करोड़ रूपये बांटने पड़ते हैं ।चैनल के छुपे हुए कैमरे में पप्पू यादव पत्नी के लिए रूपये मांगते भी कैद हुए हैं ।वीडियो में पप्पू यादव यह कहते नजर आ रहे हैं कि जो दिखता है वही बिकता है ।

उन्होंने 2014 के चुनाव में 4 से 5 करोड़ और पत्नी रंजीता रंजन के चुनाव में 7 से 8 करोड़ रुपये खर्च किये जाने की बात कही है ।पप्पू यादव वीडियो में यह भी कहते देखे जा रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार आएगी तो उनकी पत्नी रंजीता रंजन केन्द्र में मंत्री बनेंगी ।जाहिर है इस स्टिंग आॅपरेशन के सामने आने के बाद पप्पू यादव की मुश्किलें काफी गहरा गयी हैं । पहले ही,राजद के युवराज और महागठबन्धन के नायक तेजस्वी यादव ने महागठबंधन में उनकी एंट्री नहीं होने दी और पप्पू यादव के खिलाफ मधेपुरा से शरद यादव को मैदान में उतार दिया । यही नहीं तेजस्वी यादव उनकी पत्नी रंजीता रंजन की राह भी मुश्किल करने में भीतर-भीतर लगे हुए हैं ।हमारी समझ से यह स्टिंग आॅपरेशन पप्पू यादव के विरोधियों के लिए रामवाण और संजीवनी साबित होगी ।

राजद के मजबूत उम्मीदवार शरद यादव बाहरी होने का दंश झेलते नजर आ रहे हैं ।वैसे जातीय आधार पर राजद का अपना जनाधार है ।एम.वाई. समीकरण का कुछ लाभ शरद यादव को जरूर मिलेगा ।लेकिन इससे वे जीत के करीब पहुंच जाएंगे,ऐसा संभव नहीं है ।जेएनयू में विवादित रहे कन्हैया कुमार का राजनीति में प्रवेशोप्रांत बेगुसराय से सी.पी.आई. के टिकट पर खड़े होने के बाद,मधेपुरा के जाप प्रत्यासी पप्पू यादव का यूँ खुलकर कन्हैया का समर्थन करना और कन्हैया के हाथ थामकर,उसमें देश का भविष्य देखना,पप्पू यादव के लिए भी घातक साबित होगा ।वर्षों से राजनीति में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले पप्पू यादव के दिल्ली स्थित उनके आवास का सेवा सदन में तब्दील रहना,देश की नजर में है ।उनके सेवा सदन में बिहार सहित देश के विभिन्य प्रांतों के लोग,ना केवल उनके घर पर रहकर मरीजों विभिन्य अस्पतालों में ईलाज करवाते हैं बल्कि भोजन तक करते हैं ।

पप्पू यादव ने हजारों मरीजन का ईलाज अपने खर्चे पर करवाया है और लगातार यह सिलसिला जारी है ।उनके पिछले विवादित जीवन को भूलकर,लोग उन्हें मसीहा का दर्जा देने लगे हैं ।वाकई दिल्ली में उनकी सेवा का देश कायल है ।लेकिन एक निजी चैनल के स्टिंग से उनके राजनीतिक कैरियर पर बड़ा ग्रहण लग सकता है ।मोटे तौर पर ताजा हालात पर गौर करें तो,मधेपुरा सीट पर एनडीए के जदयू प्रत्यासी के पक्ष में शमां बंधने लगी है ।चुनाव निकट आते-आते जदयू उम्मीदवार दिनेश चन्द्र यादव मोदी लहर का भरपूर फायदा उठाएंगे ।जदयू और बीजेपी कैडर वोट के साथ-साथ दिनेश चंद्र यादव का अपना जनाधार अलग से है । बिहार की तमाम 40 सीटों पर पूर्वाग्रह से मुक्त होकर हमारी पड़ताल बताती है कि एनडीए को बम्पर सीट मिलने की प्रबल संभावना बनती जा रही है ।

पीटीएन न्यूज मीडिया के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “चुनाव विशेष ” रिपोर्ट

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