अयोध्या पर फ़ैसले से ख़त्म हो गया है सदियों पुराना विवाद, बढ़ेगा सांप्रदायिक सद्भाव.
सिटी पोस्ट लाइव : अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद ज़मीन के दशकों पुराने विवाद में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने शनिवार को फ़ैसला सुना दिया.जहां बाबरी मस्जिद थी, 2.77 एकड़ की वो ज़मीन अब हिंदू पक्ष को मिलेगी. साथ ही सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पाँच एकड़ ज़मीन उपयुक्त जगह पर दी जाएगी.40 दिनों तक चली सुनवाई के बाद शनिवार को इस दशकों पुराने मामले में पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से अपना फ़ैसला दिया.भारत के ज़्यादातर राजनीतिक दलों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है और लोगों से शांति और भाईचारे की अपील की है.
अपने फैसले में जजों ने एक संतुलन बनाने की कोशिश की है. एक बहुत ही संवेदनशील मसले को क़ानूनी तौर पर सुलझाने का एक अच्छा प्रयास है. आगे आपस में दो समुदाय धर्म को लेकर नहीं लड़ेंगे. कोर्ट ने एक अच्छा प्रयास किया है. पोजेशन पर, मालिकाना हक़ पर, सबूतों पर, कोर्ट के ऑब्ज़र्वेशन को देखने के लिए पूरा जजमेंट देखना ज़रूरी होगा लेकिन इसके ऊपर विवाद करने से किसी भी पक्ष को कुछ हाशिल नहीं होनेवाला है.
कोर्ट को निर्मोही अखाड़े को पूजा कराने का अधिकार दिया जाना चाहिए था क्योंकि वे शुरू से केस लड़ते रहे हैं.कोर्ट को कम से कम निर्मोही अखाड़े को पूजा करने और प्रबंधन करने का अधिकार देना चाहिए था.श्रद्धालुओं को मंदिर बनाने और वहां रहने का जो अधिकार दिया गया है वो ठीक है, स्वागतयोग्य है. साथ ही मुस्लिम पार्टी या सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की कई मांगों को मानकर कोर्ट ने संतुलन की कोशिश की है. सबसे बड़ी बात यह है कि एक जो धारणा बनाई गई थी कि बाबर ने एक राम मंदिर को ध्वस्त करके वहां पर मस्जिद बनाई, सुप्रीम कोर्ट ने उसे ख़ारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने टाइटिल तय करने के लिए एएसआई की रिपोर्ट को आधार मानने से भी इनकार कर दिया.इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने यह भी मान लिया है कि 1949 में जिस तरह से मूर्तियां रखी गईं थीं वो एक ग़ैर-क़ानूनी कृत्य था. अदालत ने यह भी माना कि 1992 में जो ढांचा गिराया गया वो रूल ऑफ़ लॉ और कोर्ट के ऑर्डर की अवहेलना थी.जाहिर है मुस्लिम पक्ष की बहुत सी बातें मान ली गई हैं.ये दीगर बात है कि वे अपने मालिकाना हक़ का कोई पेपर नहीं दिखा पाए और ना ही अपना पोजेशन साबित कर पाए जिसकी वजह से विवादित जमीन से वो बेदखल हो गए.एक संवदेनशील मुद्दे को कोर्ट ने हल करने की एक अच्छी कोशिश की है.
कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता पर बहुत बड़ा फ़ैसला दिया है और अब जब अल्पसंख्यक के धर्म की बात होगी तो कोर्ट उस पर कायम रहेगी, ये उम्मीद की जानी चाहिए.धर्म की स्वतंत्रता का जो आर्टिकल 25 है उसके लिए यह बहुत बड़ा दिन था.यह भी बात सही है कि जब यह विवाद शुरू हुआ तो वो केवल अयोध्या के हिन्दू और मुसलमान के बीच था. लेकिन राजनीति ने इसे पूरे देश के मुसलमानों और पूरे देश के हिन्दुओं के बीच बना दिया.
हिन्दुस्तान के मुसलमान भगवान राम में बहुत आस्था रखते हैं, उन्हें इमाम-ए-हिन्द कहते हैं. मुस्लिम पार्टी ने कभी भी भगवान राम के अयोध्या में जन्म होने को चैलेंज नहीं किया. उनका यह कहना था कि इस बात का क़ानूनी सबूत नहीं है कि जो यहां तीन गुंबद थे उसमें बीच वाले गुंबद के नीचे ही भगवान राम का जन्म हुआ था और बाबरी मस्जिद एक मंदिर को गिराकर बनाई गई.
कोर्ट ने गुंबद गिराये जाने की बहुत आलोचना की है. हालांकि, यह मामला अभी लोअर कोर्ट में है. कोर्ट से फिर हाईकोर्ट में अपील होंगी, फिर सुप्रीम कोर्ट में. पता नहीं फैसला जबतक होगा सजा भुगतने के लिए दोषी जिंदा भी होगें या नहीं.यह हमारे लीगल सिस्टम की बहुत बड़ी नाकामी है.
आमतौर पर क्रिमिनल केस जल्दी तय होता है और सिविल केस देर से तय होता है लेकिन इस मामले में 1992 से लेकर अब तक 27 साल हो गए हैं और जिन लोगों ने एक साज़िश के तहत मस्जिद गिराई उन्हें कोई सज़ा नहीं हुई.
जब सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला करती है तब पार्टियों के पास सीमित विकल्प होता है कि वह रिव्यू में जाएं. इसमें जो संवेदनशीलता शामिल है और हिन्दू भाइयों की भावना शामिल है, इसमें रिव्यू में जाना बहुत ही मुनासिब चीज़ नहीं होगा.इससे आपस में कटुता का भाव और बढेगा.सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ गया है. व्यापक सामाजिक संबंध अच्छा बनाये रखने, सौहार्द का माहौल कायम रखने , समाज में भाईचारा बनाए रखने के लिए इस मामले पर अब कोई विवाद खड़ा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
देश के नागरिकों जो परिपक्वता दिखाई है, उससे साबित होता है कि देश के बहुसंख्यक आज भी ये मानते हैं कि धर्म लड़ने के लिए नहीं बल्कि एक-दूसरे से मिलने के लिए है,कोई धर्म हिंसा नहीं सिखाता, नफ़रत नहीं सिखाता बल्कि भाईचारे का संदेश देता है.ऐसे में इतिहास को दोबारा खोदने की जगह दोनों पक्षों को भविष्य की ओर देखना चाहिए. जो बहुसंख्यक समुदाय है उसकी ज़िम्मेदारी ज़्यादा होती है क्योंकि अल्पसंख्यक के दिमाग में असुरक्षा की एक भावना होती है, डर का एक माहौल रहता है.उसको लगता है कि मेरा धर्म, मेरे कल्चर और मेरी पहचान को ख़तरा है.लेकिन देश के बहुसंख्यक समुदाय जिस तरह से मुसलमानों के इस डर को ख़त्म करने के लिए आगे आया है, वह काबिले तारीफ़ है.
अब सरकार द्वारा दी गई जमीन पर अयोध्या में में मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाकर ये संदेश देना चाहिए कि उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी हार के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे पुराने ऐसे विवाद के खात्मे के रूप में देखता है जिसने दो सम्प्रदाय के बीच सबसे ज्यादा कटुता का भाव पैदा किया.अब अल्पसंख्यक समाज को नेताओं को या फिर किसी को इस ख़त्म हो चुके विवाद को फिर से हवा देने की इजाजत नहीं देनी चाहिए.
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