लाइव सिटीज डेस्क : आरक्षण के मुद्दे पर गुरुवार को सुप्रीमकोर्ट में दिनभर सुनवाई का दौर चला. इस दौरान आरक्षण पर खूब जोरदार बहस हुई. प्रोन्नति में आरक्षण का समर्थन कर रही केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों और संगठनों की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, पीएस पटवालिया, इंद्रा जयसिंह समेत कई वकीलों ने एम. नागराज के फैसले में दी गई व्यवस्था को गलत बताते हुए उसे दोबारा विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की. दूसरी तरफ आरक्षण का विरोध कर रहे संगठनों के वकील पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया.
आरक्षण के मुद्दे पर हुई बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने उच्च पदों पर आसीन लोगों के बच्चों को आरक्षण दिए जाने पर सवाल उठाते हुए पूछा कि आखिर इसका औचित्य क्या है ? सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर के सिद्धांत के तहत यह भी सवाल उठाया कि संपन्न वर्ग को आरक्षण के लाभ से बाहर करने वाला क्रीमीलेयर का जो सिद्धांत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मामले में लागू होता है, वह अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में क्यों नहीं लागू होता?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ गुरुवार को इसकी सुनवाई कर रही थी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी टिप्पणी में कहा- ‘नौकरी की शुरुआत में आरक्षण का नियम तो ठीक है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेकर राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है तो क्या यह तर्कसंगत होगा कि उसके बच्चों को पिछड़ा मानकर प्रोन्नति में आरक्षण दिया जाए और जिससे परिणामी वरिष्ठता भी मिलती हो’. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 2006 के एम. नागराज फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की जरूरत पर सुनवाई कर रहा है. बता दें कि इस मामले पर अब बुधवार को सुनवाई जारी रहेगी.
गौरतलब है कि 2006 के एम. नागराज फैसले में पांच जजों की पीठ ने फैसला किया था कि सरकार एससी और एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले उनके पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े एकत्र करे. धवन का कहना था कि नागराज का फैसला बिल्कुल सही है. उस फैसले के पीछे की पृष्ठभूमि और उसमें दी गई व्यवस्था का बारीकी से विश्लेषण किया जाना चाहिए. फैसले के एक-दो पैराग्राफ को देखकर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता.जाहिर एकबार फिर से आरक्षण एक बहुत बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है.
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