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“विशेष”: बिहार के डीजीपी की बात नहीं मानते हैं विभिन्न जिले के एसपी

पुलिस की सुस्त गश्ती और अपराधियों के बढ़े मनोबल पर जता रहे हैं चिंता पुलिस की सुस्त गश्ती और अपराधियों के बढ़े मनोबल पर जता रहे हैं चिंता पुलिस की सुस्त गश्ती और अपराधियों के बढ़े मनोबल पर जता रहे हैं चिंता पुलिस की सुस्त गश्ती और अपराधियों के बढ़े मनोबल पर जता रहे हैं चिंता

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“विशेष” : बिहार के डीजीपी की बात नहीं मानते हैं विभिन्य जिले के एसपी

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : बिहार के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के.एस. द्विवेदी बिहार के सभी जिलों के पुलिस कप्तान और उन जिलों में पुलिस की सुस्त और बिगड़ैल कार्यशैली को लेकर बेहद खफा और चिंतित हैं. सूबे के शीर्षस्थ पुलिस अधिकारी का अपनी ही पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करना,सूबे में पुलिस के काम-काज के तरीके को कटघरे में खड़े कर रहा है. डीजीपी के.एस.द्विवेदी ने कुछ दिनों पहले यह कहा था कि उनके आदेशों का पालन बिहार के विभिन्य जिलों के पुलिस अधीक्षक ससमय नहीं कर रहे हैं . इंस्पेक्टर,एएसआई और पुलिस जवानों के महीनों पूर्व हुए तबादले के बाद उन्हें जिले से विरमित नहीं किया गया. यह सही परिपाटी नहीं है.

उन्होनें फिर से सभी जिलों के एसपी को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. जाहिर तौर पर राज्य के सर्वोच्च पुलिस अधिकारी के इस पत्र से पुलिस महकमें में खलबली मच गई है. संप्रेषित पत्र में डीजीपी ने कहा है कि सूबे में पुलिस की रात्रि गश्ती की बात तो बहुत दूर की है यहां तक की दिन में भी पुलिस नियमित गश्ती नहीं कर रही है.  हालांकि इस कड़ी में उनका मानना है कि इस कमी और लापरवाही के बाद भी बिहार में अपराध में कमी आई है. डीजीपी ने स्पष्ट लहजे में कहा है कि -“पुलिस के नरम तेवर की वजह से अपराधियों के बढ़े मनोबल में कोई कमी नहीं आई है.” डीजीपी की मानें तो,अपराधियों के मन में यह बात घर कर गयी है कि बड़े से बड़े अपराध को अंजाम देकर वे लोग आराम से फरार हो जाएंगे. इस कड़ी में यह बताना भी लाजिमी है कि डीजीपी ने शराब, हथियार,प्रतिबंधित दवा और प्रतिबंधित वस्तुओं की बिक्री को रोकने के लिए विभिन्य तरह से नाकेबन्दी का सुझाव दिया था. लेकिन इस सुझाव का पालन भी किसी जिले में नहीं किया गया ।इस बार डीजीपी ने सेंसेटिव जगह पर नाके लगाने के निर्देश दिए हैं.

उस समय जब के.एस.द्विवेदी खुद किसी जिले के पुलिस कप्तान हुआ करते थे,तो उनकी पहचान एंटी क्रिमिनल्स और एक कड़क अधिकारी के रूप में होती थी. उनके काम करने के तरीके से उन्होंने जिस-जिस जिला में बतौर एसपी अपनी सेवा दी,वहां पुलिसिंग की एक अमिट छाप छोड़ी. लंबा सफर तय कर के जब वे डीजीपी बने,तो वे आज खुद को लाचार और बेबस पा रहे हैं. उनकी मनोदशा यह साबित कर रही है कि बिहार की स्थिति सही नहीं है. हम इसके लिए सीधे तौर पर सरकार को जिम्मेवार ठहराएंगे. विभिन्य जिलों में एसपी की पोस्टिंग पैसे लेकर और जिले के जातीय समीकरण देखते हुए होती है. यह बेहद दुर्भाग्य का मसला है कि बिहार में शासन और प्रशासन दोनों जातीय आधार पर चलायमान है. अब जिस राज्य में डीजीपी खुद अपने कनीय अधिकारियों से खफा और दुःखी हों,उस राज्य की जनता पर क्या बीत रही होगी,आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है. हम तो आखिर में यह ताल ठोंककर कहते हैं कि बिहार के डीजीपी को अब खुद डर लग रहा है. यानि खाकी पर पूरी तरह से अपराध तंत्र हावी है .

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

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